World Water Day: जल और जीवन के पैराडॉक्स के बीच फँसा है पानी का भविष्य

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हम भोजन के बिना रह सकते हैं लेकिन हम एक दिन भी पानी के बिना नहीं रह सकते। ये टीचरों की पहली लाइन हुआ करती थी, जब वो क्लास में पानी के बारे में पढ़ाना शुरू किया करते थे. लेकिन आज हमारी लाइफ इन-सीक्योरीटी से भरी हुई है. शायद इसीलिये अब हमे पानी की असली कीमत समझ मे आ रही है, और हम सब उसके लिये सजग भी होते जा रहे है.

यूनइटेड नेशन्स ने वर्ल्ड वॉटर डे 2021 को कई तरह से देखने की कोशिश की है.  बढ़ती जनसंख्या, कृषि और उद्योग की बढ़ती माँगों और क्लाइमेट चेंज के बिगड़ते प्रभावों से पानी अत्यधिक खतरे में है।

पानी की खपत के साथ बढ़ रही है डिमांड 

इकोनॉमिक डेवलपमेंट और बढ़ती जनसंख्या, खोती और इंडस्ट्री दिनों-दिन वॉटर इंटेन्सिव होते रहे है, और उसी दर से इनकी डीमांड भी बढ़ती जा रही है. क्लाइमेट चेंज का भी इसमे बढ़ा योगदान रहा जिसकी वजह से ये परेशानी और ऊग्र होती जा रही है.

इस वर्ष का विषय है कि हम पानी को उसकी कीमत से परे कैसे महत्व देते हैं। यह निर्धारित करता है कि यह कैसे प्रबंधित और साझा किया जाता है। पानी का महत्व घरों, संस्कृति, स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थशास्त्र और हमारे प्राकृतिक वातावरण की अखंडता के बीच परस्पर जुड़ा हुआ है। यदि हम इसमे से किसी को भी अनदेखा करते है, तो उस लापरवाही से हम खुद अपने आप को एक बढ़े ज़ोखिम मे ढकेल सकते है.

जल प्रदुषण से आई साफ़ पानी की किल्लत 

जल प्रदुषण भी एक बड़ा कारण बनता जा रहा है, जिसकी वजह आज इंडिया में करीब 76 million लोंगों को आज के डेट में साफ पानी पीना नसीब नहीं हो पाया है. इंडिया में पानी की दो प्रॉब्लम से लोग गुज़रते है; एक- जिसमे लोगों को साफ़ पानी नहीं मिलता, दूसरा जिसमे लोगों को पानी ही नहीं मिलता है, और ये एक पैराडॉक्स की तरह हमारे परिवेश में है, जिसमें एक ज़रूरत लक्ज़री बनती जा रही है.

सुरक्षित पेयजल की पहुंच भारत के लिए एक गंभीर समस्या रही है, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां उपयोग योग्य पानी की कमी दशकों पुरानी स्वच्छता और स्वास्थ्य समस्याओं के कारण हुई है। सरकारी रिकॉर्ड बताते है, “ 1980 में मात्र एक प्रतिशत लोगों के पास साफ़ पानी का एक्सेस था, वही 2013 में ये आकड़ा 30 प्रतिशत पहुँच गया: लेकिन आज भी मेजोरिटी के पास साफ़ पानी का एक्सेस नहीं है.”

वही एशियन डेवलपमेंट बैंक का कहना है कि “इंडिया में 2030 तक पानी की 50 फ़ीसदी तक की कमी हो गई थी.”

अब समय बदलाव का…

जिस हिसाब से भारत की जनसंख्या बढ़ रही है, उस हिसाब से 2050 तक भारत में पानी की बहुत कमी हो जाएगी.

तो ऐसी है हालत. भारत में पानी की स्थिति में सुधार के लिए सरकारी और गैर-सरकारी दोनों निकायों द्वारा निरंतर प्रयासों के साथ, पानी की पहुंच के संबंध में निस्संदेह सुधार किए गए हैं। निरंतर परिणाम देने के ऐसे प्रयासों के लिए, भारत के प्रमुख जल निकायों के साथ-साथ वर्षा और सतही जल संसाधनों के समुचित प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

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