क्यों रखा जाता है अचला सप्तमी का व्रत ? जानें शुभ मुहुर्त और पूजा विधि

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हिंदू सनातन धर्म में परंपरा के अनुसार सभी तिथियों का अपना खास महत्व है। भगवान सूर्यदेव को समर्पित माघ शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि अचला, रथ या भानु सप्तमी के नाम से जानी जाती है।

आज के दिन गंगा या सरोवर में स्नान करके अपने आराध्य देवी देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् ब्राह्मण को यथासामर्थ्य दान करने पुण्यलाभ प्राप्त करना चाहिए। जैसा कि नियम है व्रत के समय दिन में शयन नहीं करना चाहिए।

सूर्य भगवान् से संबंधित सूर्यमंत्र का जप, श्री आदित्य हृदय स्तोत्र, श्री आदित्य कवच, श्री सूर्य सहस्त्रनाम आदि का पाठ करके पुण्यलाभ अर्जित करना चाहिए।

माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी को भगवान सूर्यदेव की महिमा में उनका व्रत उपवास रखकर पूजा-अर्चना करने का विधान है। अचला सप्तमी पर भगवान् सूर्य की कृपा प्राप्ति के लिए भक्तजन अपनीअपनी परम्परा के अनुसार भगवान् सूर्यदेव की पूजा-अर्चना करते हैं।

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ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि माघ शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि 18 फरवरी, गुरुवार को प्रातः 8 बजकर 18 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 19 फरवरी, शुक्रवार को प्रात: 10 बजकर 59 मिनट तक रहेगी।

19 फरवरी, शुक्रवार को अचला सप्तमी (भानु सप्तमी) का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। इस दिन मिष्ठान का भोजन किया जाता है, जबकि नमक पूर्णतया वर्जित है।

ऐसी धार्मिक व पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान सूर्यदेव की विधि विधान से की गई पूजा-अर्चना से सर्व मनोरथ की पूर्ति बतलाई गई है।

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