मिसाल: आज भी सिर्फ 1 रुपए में इलाज करता है ये डॉक्टर
हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने लिए नहीं बल्कि समाज और देश के लिए जीते हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही सख्स के बारे में बताएंगे जोकि समाज में एक मिसाल बन गया है। जी हां हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र के सबसे गरीब इलाके में से एक है। जहां डॉक्टर रविंद्र कोल्हे पिछले तीस सालों से लोगों की सेवा कर रहे हैं।
डॉक्टर रवींद्र कोल्हे किसानों की आत्महत्या और नवजात मृत्यु के मामले पूरी तरह मिटा दिए। डॉ. कोल्हे कई दशकों से मेलघाट में रह रहे हैं। वो यहां के उन आदिवासियों के जीवन में बदलाव ला रहे हैं, जो इस दूरदराज के इलाके में रहने के कारण सुविधाओं से वंचित हैं। एमबीबीएस करने के बाद डॉ. कोल्हे ने एक ऐसे क्षेत्र में बसने का फैसला किया जहां के लोगों को उनकी शिक्षा और विशेषज्ञता से वास्तव में फायदा हो।
महाराष्ट्र के मेलघाट जिले में बैरागढ़ नामक एक छोटा सा गांव है। यहां पहुंचने के लिए हरिसल स्थित अंतिम बस स्टॉप से 40 किमी चलना पड़ता है। आसपास ना तो अस्पताल है और ना ही स्वास्थ केंद्र। हालत इतने बदतर कि एक हजार नवजात बच्चों में दो सौ जन्म के समय ही मर जाया करते थे।
डॉ. रविंद्र कोल्हे यहां 1989 से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वो पहली बार के चिकित्सा परामर्श के लिए 2 रुपए और फिर अगली बार देखने के लिए 1 रुपये फीस लेते हैं। वो एक माह में लगभग 400 मरीज देखते थे। उन्होंने कुछ मूलभूत जांच प्रक्रियाओं के लिए खुद को प्रशिक्षित किया, जैसे एक्स-रे के बिना न्यूमोनिया की जांच, डायरिया का इलाज और सोनोग्राफी सुविधा या ब्लड ट्रांसफ्यूजन के बिना प्रसव कराना। यह सभी प्रक्रियाएं यहां के लोगों को स्वस्थ बनाने के लिए जरूरी थी।
इसलिए उन्होंने स्थानीय लोगों को नई कृषि तकनीकों, वन संरक्षण और पर्यावरण सुरक्षा से जुड़ी आवश्यक जानकारी के साथ सक्षम बनाना शुरु किया। अपने साथी ग्रामीणों को मवेशी पालने और खेतीबाड़ी में मदद करने के लिए डॉ. कोल्हे ने जानवरों की शारीरिक रचना और कृषि विषयों का अध्ययन किया। कुछ सालों में उन्होंने फंगस-विरोधी वेरायटी के बीज विकसित करने में सफलता हासिल कर ली और इसके फायदे साबित करने के लिए खुद से इनकी खेती की।
डॉ. कोल्हे ने बैरागढ़ के लोगों को सड़क, स्कूल, स्वच्छता सुविधाओं के विकास सहित लाभदायक सरकारी योजनाओं का उपयोग करने और इनके बारे में समझने में भी मदद की। उन्होंने गांव के लोगों के लिए स्थाई जीवनशैली और निरंतर आमदनी प्रवाह तैयार कर उनकी समस्याओं का जड़ से इलाज किया।आज मेलघाट के गांवों में स्वास्थ्य सुविधाएं काफी अधिक बेहतर बन चुकी हैं। सड़क संपर्क में बड़ा सुधार हुआ है। खेती और सूखे की परिस्थितियों से निपटने में भी परिवर्तन हुआ है। स्थानीय आदिवासी अब शिक्षा में रुचि दिखाने लगे हैं।