“भुखमरी की कगार पर बनारस के नाव वाले”

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लॉकडाउन ने बनारस के घाटों को खामोश कर दिया जिसकी वजह से गंगा की लहरों में हलचल करने वाली नावें किनारे चुपचाप बंधीं हैं तो तीर्थ पुरोहितों की तख़्त खाली घात पर फूलमाला, दिया, मसाज वाले, नाई, पूजा की सामग्री बेचने वाले जैसे हज़ारों परिवार की रोज़ी रोटी का जरिया इस खामोशी में ख़त्म हो गया। 2 महीने से अधिक समय होने की वजह से ये अपनी जमा पूंजी खा गए और अब भुखमरी के कगार पर पहुंच गये हैं अगर जल्द ही इसका समाधान नहीं निकला तो आगे के महीने इनके लिये भारी पड़ने वाले हैं।

दशाश्वमेघ घाट पर ख़ामोश खड़ी ये नावें कभी इतने दिनों के लिये घाट पर बंधी नहीं रही होंगी।  ये तो दशकों से सात समंदर पार से आये सैलानियों को अपनी चप्पू के चाप से गंगा के किनारे बने घाटों की खूबसूरती की सैर करा कर अपने माझी के परिवार चलाती रही लेकिन पिछले दो महीने से लगी पाबंदी ने प्रमोद माझी जैसे नाविकों ने इन नावों से जमा की गई जमा पूंजी खा गए और अब भुखमरी के कगार पर हैं।

प्रमोद मांझी का कहना है कि शायद ये मेरी ज़िन्दगी का दुर्भाग्य है कि हम अपनी इतनी बड़ी ज़िन्दगी में पहली बार बनारस को इतना खामोश देखा हमारी सामजिक ज़िन्दगी में दूसरा कोई काम नहीं ( पैच ) हमारे जो चालक जो नाव चलाते हैं  वो आकर हमारे पास गुहार लगाए कि जो था ख़त्म हो गया हम लोग अपने गहने को भी गिरवी रख कर खा गये और अब सबसे बड़ी समस्या लॉकडाउन 4 की है।

कोरोना के जाल में फंस कर छटपटा रहे-

बनारस में तकरीबन 50 हज़ार नाविक है गंगा में नाव न चल पाने की उदासी इन नाविकों की बस्ती में भी है हालंकि खालीपन को भरने के लिये ये जाल बिन रहें हैं जिसमे मझली फंसा कर अपनी जीविका का इंतज़ाम करेंगे लेकिन फिलहाल तो ये खुद ही कोरोना के जाल में फंस कर छटपटा रहे हैं ।

स्थानीय माधुरी का कहना है कि मेरे भाई लोग हैं नाव चलाते हैं सब बंद है अब कैसे खर्चा चलाएंगे यही लोग जानेंगे इस समय कैसे यह लोग चला रहे हैं यही लोग जान रहे हैं कैसे खा रहे हैं कैसे पी रहे हैं  (पैच ) आगे हम लोग कैसे कमाएंगे खाएंगे ऐसे ही लाख डाउन रहेगा तो कैसे चलेगा

घाट पर खाली पड़ी ये तख्ते हज़ारों श्रद्धालुओं की मंगल कामना और ज़िन्दगी के कुशल क्षेम के संकल्प के  साक्षी रहे  हैं लेकिन बीते 2 महीने  से तीर्थ पुरोहितों की ये तख्त खाली पड़ी हैं इनके इस खालीपन ने तीर्थ पुरोहितों की जमा पूँजी भी खाली कर दी है। पर इस खाली पन में भैरो प्रसाद अपनी तख्त पर बैठे नज़र आये पूछने पर पता चला खाने को कुछ नहीं बचा तो अब सब्र जवाब दे गया लिहाजा तिनके का सहारा ढूंढने के लिए सुबह से बैठे हैं पर वो भी नहीं मिला

तीर्थ पुरोहित भैरो प्रसाद झा ने कहा, ‘जो बचा खुचा था जो जमा किये थे वो लेके चलाये अपना काम और अब खुखमारी के कगार पर आ गए हैं कम से कम हज़ारों पंडित हैं कोई जजमान नहीं आ रहे हैं कुछ नहीं मिल रहा है।

जो पूंजी थी सब खा गए-

घाट पर नाविक और तीर्थ पुरोहितों की तरह ही हज़ारों परिवार फूलमाला बेचने वाले, गंगा जल के लिये डिब्बा और लुटिया बेचने वाले पूजा की डलिया बेचने वाले हैं जिनकी दर्जनों दुकान बंद है। हालांकि इनमें से कुछ दुकानदार अपनी दुकान खोल कर साफ़ सफाई कर ले रहे हैं जिससे रखा माल खराब न हो और चूहे नुकसान न करे पर इस बंदी में इनके बंद पड़े माल का भी नुकसान हो रहा है और इनकी आमदनी भी कब शुरू होगी पता नहीं

लक्की जायसवाल ने बताया कि पहले आराम से चल जाता था। अब तो जो पूंजी वह भी खा गए अब उधार मांग कर के चल रहा है और जिस मकान में रहते हैं मकान वाले पैसा मांग रहा है उनको नहीं दे पा रहे हैं। जो पूंजी थी सब खा गए हम लोग यही चाहते हैं कि लाकडाउन खोलें हम लोगों का पेट चलने लगे।

राजेन्द्र कुमार दुबे ने कहा कि बनारस में जितने भी घाट हैं घाट पर नाव वाले से लेकर घाट पर बैठने वाले बाल बनाने वाले माला फूल बेचने वाले यहां कम से कम 50 हजार परिवार का जीविका चलता था। आज लॉकडाउन की वजह से सभी की जीविका पर बहुत असर पड़ा है और आज वह लोग भुखमरी के कगार पर है

तकरीबन आधा बनारस इन्ही घाटों के किनारे बसा है और ये घाट ही बनारस की अर्थव्यस्था की मज़बूत कड़ी है। ऐसे में लॉकडाउन 4 इस अर्थव्यस्था को कड़ी चोट पहुंचायेगा जिससे लाखों परिवार बुरी तरह प्रभावित होंगे।

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