जयंती विशेष: मुलायम की बदौलत ही सांसद बने थे कांशीराम
इटावा। महाभारत कालीन सभ्यता से जुड़े इटावा जिले से ही सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की बदौलत कांशीराम ने पहली बार संसद का रूख किया था। कांशीराम जिस समय चुनाव लड़ रहे थे उस समय मुलायम सिंह यादव आए दिन अनुपम होटल फोन करके कांशीराम का हाल चाल तो लेते ही रहते थे साथ ही होटल मालिक को यह भी दिशा-निर्देश देते रहते थे कि कांशीराम हमारे मेहमान है उनको किसी भी तरह की कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।
इटावा का होटल अनुपम है गवाह
कभी वह वक्त भी था जब बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम की हाथीनुमा साइकिल मुलायम के घर इटावा में दौड़ी थी और कांशीराम न केवल खुद जीतकर इसी इटावा जिले से संसद पहुंचे थे बल्कि मुलायम सिंह का राजनीतिक आधार बनाने में भी उनकी मदद की थी।
इटावा से मिला था कांशीराम को मुकाम
सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के गृह जिले इटावा के लोगों ने कांशीराम को एक ऐसा मुकाम हासिल कराया जिसकी कांशीराम को एक अर्से से तलाश थी। कहा यह जाता है कि 1991 के आम चुनाव में इटावा में जबरदस्त हिंसा के बाद पूरे जिले के चुनाव को दोबारा कराया गया था। दोबारा हुए चुनाव में बसपा सुप्रीमो कांशीराम ने खुद संसदीय चुनाव में उतरे। मुलायम सिंह यादव ने समय की नब्ज को समझा और कांशीराम की मदद की जिसके एवज में कांशीराम ने बसपा से कोई प्रत्याशी मुलायम सिंह यादव के लिए जसवंतनगर विधानसभा से नहीं उतारा जबकि जिले की हर विधानसभा से बसपा ने अपने प्रत्याशी उतारे थे।
महीने भर रुके थे कांशीराम
चुनाव लड़ने के दौरान कांशीराम इटावा मुख्यालय के पुरबिया टोला रोड पर स्थित अनुपम होटल में करीब एक महीने रहे थे। वैसे अनुपम होटल के सभी 28 कमरों को एक महीने तक के लिए बुक करा लिया गया था, लेकिन कांशीराम खुद कमरा नंबर 6 में रूकते थे और 7 नंबर में उनका सामान रखा रहता था। इसी होटल में कांशीराम ने अपने चुनाव कार्यालय भी खोला था।
उस समय नहीं थी मोबाइल सुविधा
अनुपम होटल के मालिक बल्देव सिंह वर्मा बताते है कि उस समय मोबाइल की सुविधा नहीं हुआ करती थी और कांशीराम के लिए खासी तादात में फोन आया करते थे। इसी वजह से कांशीराम के लिए एक फोन लाइन उनके कमरे में सीधी डलवा दी गई थी, जिससे वो अपने लोगों के संपर्क में लगातार बने रहते थे।
वर्मा बताते है कि मुलायम सिंह यादव का अमूमन फोन इस बाबत आता रहता था कि कांशीराम हमारे मेहमान है उनको किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं होनी चाहिए, लेकिन वो कभी होटल मे आये कभी नहीं हां इतना जरूर पता है कि कांशीराम और मुलायम सिंह यादव की फोन पर लंबी बातचीत जरूर होती थी।
डीजल इंतजामिया बना परिवहन मंत्री
वर्मा ने बताया कि कांशीराम के चुनाव में गाड़ियों के लिए डीजल आदि की व्यवस्था देखने वाले आरके. चौधरी बाद में उत्तर प्रदेश में सपा बसपा की सरकार में परिवहन मंत्री बने। कांशीराम को नीला रंग सबसे अधिक पंसद था। इसी वजह से उन्होंने अपनी कंटेसा गाड़ी को नीले रंग से ही पुतवा दिया था। पूरे चुनाव प्रचार में कांशीराम ने सिर्फ इसी गाड़ी से प्रचार किया।
इटावा ने पहली बार कांशीराम को 1991 में सांसद बनवाकर संसद पहुंचाया था। इसी वजह से कांशीराम को इटावा से खासा लगाव रहा है। आज भी इटावा में कांशीराम के किस्से सुनाने वालों की कोई कमी नहीं है। बसपा के संस्थापक अध्यक्ष कांशीराम को इटावा लोकसभा क्षेत्र से विजयी बनाकर पहली बार संसद में भेजने का कार्य इटावा के लोगों ने किया था।
इसके साथ ही इटावा लोकसभा क्षेत्र आरक्षित सीट हुए बगैर ही वर्ष 1991 में हुए इटावा लोकसभा के उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी कांशीराम समेत कुल 48 प्रत्याशी मैदान में थे। चुनाव में कांशीराम को एक लाख 44 हजार 290 मत मिले और उनके समकक्ष भाजपा प्रत्याशी लाल सिंह वर्मा को 1 लाख 21 हजार 824 मत कम मिलने से जीत कांशीराम को मिली थी। जबकि मुलायम सिंह यादव की जनता पार्टी से लड़े रामसिंह शाक्य को मात्र 82624 मत ही मिले थे।
जननायक या वक्ता ना होने के बावजूद करिश्माई था
कांशीराम कोई जननायक या करिश्माई व्यक्तित्व वाले जबरदस्त वक्ता या नेता नहीं थे। शायद वो ये जानते भी थे कि उनकी ताकत थी लक्ष्य के प्रति उनका पूरा समर्पित होना, उनका संगठनात्मक कौशल और बेजोड़ रणनीति बनाने की उनकी क्षमता। कांशीराम को संसद पहुंचाने का काम किया इटावा की आवाम ने 1991 के चुनाव में। मुलायम सिंह यादव की मदद से वे इटावा से लोकसभा में पहुंचे और 1992 में उन्होंने नारा दिया- मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जयश्री राम। इस नारे को जन्म दिया था कांशीराम के पुराने वफादार और 1991 के चुनाव प्रभारी खादिम अब्बास ने।
खादिम रहे है पुराने साथी
बसपा के पुराने नेता खादिम अब्बास बताते है कि 1992 में मैनपुरी में हुई एक सभा में जब बोलने के लिए वे मंच पर आये तो अचानक यह नारा मुंह से सामने आया जो बाद में पूरे देश में गूंजा। खादिम अब्बास के पास कांशीराम से जुड़ी हुई ऐसी तस्वीरे है जो उनका कांशीराम के प्रति प्रेम आज भी उजागर करता है। एक तस्वीर वो है जिसमें कांशीराम नामाकंन रहे है और दूसरी एक रोजअफतार समारोह में जाने से पहले की है। दोनों तस्वीरों में खादिम अब्बास कांशीराम के पास ही है।
खादिम बताते है कि कांशीराम मुलायम सिंह के बीच हुए समझौते के तहत कांशीराम साहब ने अपने लोगों से ऊपर का वोट हाथी और नीचे का वोट हलधर किसान चिन्ह के सामने देने के लिए कह दिया था। विवादित बाबरी मस्जिद टूट चुकी थी ऐसे में इस नारे ने काफी कुछ राजनैतिक माहौल बना दिया था। खादिम अब्बास की मानें तो कांशीराम ने अपने शर्तों के अनुरूप मुलायम सिंह यादव से खुद की पार्टी यानि समाजवादी पार्टी गठन करवाया और तालमेल किया।
1991 में कांशीराम की इटावा से जीत के दौरान मुलायम का कांशीराम के प्रति यह आदर अचानक उभर कर सामने आया था जिसमें मुलायम ने अपने खास की पराजय करने में कोई गुरेज नहीं किया था। इस हार के बाद रामसिंह शाक्य और मुलायम के बीच मनुमुटाव भी हुआ, लेकिन मामला फायदे नुकसान के चलते शांत हो गया।
कांशीराम की इस जीत के बाद उत्तर प्रदेश में मुलायम और कांशीराम की जो जुगलबंदी शुरू हुई इसका लाभ उत्तर प्रदेश में 1995 में मुलायम सिंह यादव की सरकार काबिज होकर मिला, लेकिन 2 जून 1995 को हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा बसपा के बीच बढ़ी तकरार इस कदर हावी हो गई कि दोनों दल एक दूसरे को खत्म करने पर अमादा हो गए।
इटावा के खाते में है सिर्फ रिकॉर्ड
भले ही सपा बसपा की राहे अलग हो चुकी हो, लेकिन दोनों दलों को कांशीराम की जीत का फायदा जरुर मिला, लेकिन इटावा के खाते में रिकॉर्ड के सिवा कुछ नहीं आया।