29 अक्टूबर से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
अयोध्या जमीन विवाद मामले की सुनवाई अब 29 अक्टूबर से शुरू होगी। मामले का आकलन सबूतों के आधार पर किया जाएगा और पूरी तरह से जमीन विवाद के नजरिए से ही इसे देखा जाएगा। मुख्य पक्षकार राम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और हिंदू महासभा हैं।
इसके अलावा अन्य कई याची जैसे सुब्रमण्यन स्वामी आदि की अर्जी है जिन्होंने पूजा के अधिकार की मांग की हुई है लेकिन सबसे पहले चार मुख्य पक्षकारों की ओर से दलीलें पेश की जाएंगी। चूंकि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा रिटायर कर चुके हैं, ऐसे में अब नई बेंच के सामने मामला जाएगा। मामले की सुनवाई के लिए नए चीफ जस्टिस बेंच का गठन करेंगे। जब सुनवाई शुरू होगी, तब बेंच तय करेगी कि मामले की रोजाना सुनवाई होनी है या नहीं।
अदालती बहस की कॉपी पेश की गई है
अयोध्या मामले में कुल 19 हजार दस्तावेज हैं। इन तमाम दस्तावेजों को इंग्लिश में ट्रांसलेट किया गया है। साथ ही अदालती बहस की कॉपी (प्लीडिंग) पेश की गई है। दीवानी मामले की सुनवाई में ये दस्तावेज और प्लीडिंग अहम होते हैं। जब मामले की सुनवाई शुरू होगी तो एक-एक पक्षकार अपना पक्ष रखना शुरू करेंगे।
अयोध्या में राम मंदिर बनवाने की बात है
इस दौरान मुस्लिम पक्षकारों का स्टैंड भी अहम होगा क्योंकि पिछले साल 5 दिसंबर को जब सुनवाई शुरू हुई थी, तब उनकी ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल ने ये दलील दी थी कि ये आम जमीन विवाद नहीं बल्कि बेहद अहम मामला है और भारतीय राजनीति पर असर रखता है। बीजेपी के घोषणापत्र में अयोध्या में राम मंदिर बनवाने की बात है।
ऐसे में मामले की सुनवाई जुलाई 2019 से पहले न की जाए। अब इस बारे में मुस्लिम पक्षकार क्या स्टैंड लेते हैं, यह भी अहम होगा। क्या 5 दिसंबर को जो तर्क दिया गया था, वह तर्क दोबारा दिया जाएगा? इस तर्क के इतर अगर कोर्ट ने सुनवाई शुरू की तो एक-एक कर तमाम पक्षकार अपनी-अपनी दलील पेश करेंगे। चारों मुख्य पक्षकारों की ओर से पहले अपने-अपने तर्क रखे जाएंगे।
अहम होगा कि क्या रोजाना सुनवाई होती है
राम लला विराजमान की ओर से पेश ऐडवोकेट ऑन रेकॉर्ड विष्णु जैन बताते हैं कि जब मामला हाई कोर्ट में आया था तो 90 दिन फाइनल बहस चली थी। उनका मानना है कि सुप्रीम कोर्ट में फाइनल दलील में करीब दो महीने लगने चाहिए लेकिन सवाल यह है अगर यह भी मान लिया जाए कि 60 वर्किंग डे लगने हैं तो ये देखना अहम होगा कि क्या रोजाना सुनवाई होती है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो 60 वर्किंग डे पूरा करने में महीनों लग सकते हैं। इसके बाद फैसला लिखने और जजमेंट आने में वक्त लगना तय है।
वो पक्षकार रिव्यू पिटिशन दाखिल करेगा
कानूनी जानकार बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में फैसला आने के बाद जाहिर तौर पर जिसके पक्ष में फैसला नहीं आया वो पक्षकार रिव्यू पिटिशन दाखिल करेगा। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जो फैसला दिया था उसमें तीनों मुख्य पक्षकारों राम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को बराबर एक तिहाई हिस्सा दिया गया था और ये फैसला तीनों पक्षकार को मंजूर नहीं था इसीलिए मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया। ये कहा गया था कि ये गुहार का हिस्सा नहीं था।
ऐसे में ये फैसला चुनौती योग्य है। ऐसे में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले जैसा ही फैसला आता है तो जाहिर तौर पर उस फैसले को तीनों पक्षकार रिव्यू के जरिए चुनौती दे सकते हैं। वहीं अगर फैसला हिंदू या फिर मुस्लिम पक्षकारों के किसी एक के फेवर में आता है तो दूसरा पक्ष रिव्यू के लिए जाएगा। रिव्यू पिटिशन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जो पक्ष संतुष्ट नहीं हुआ वो पक्षकार क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल कर सकता है।
हिंदुओं का होगा जहां फिलहाल रामलला की मूर्ति है
राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दिवानी मुकदमा भी चला। टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई हाई कोर्ट ने दिए फैसले में कहा था कि तीन गुंबदों में बीच का हिस्सा हिंदुओं का होगा जहां फिलहाल रामलला की मूर्ति है।
निर्मोही अखाड़ा को दूसरा हिस्सा दिया गया इसी में सीता रसोई और राम चबूतरा शामिल है। बाकी एक तिहाई हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दिया गया। इस फैसले को तमाम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए यथास्थिति बहाल कर दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच जमीन विवाद पर 29 अक्टूबर से सुनवाई करने जा रही है। साभार
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