2000 Rupee Note : बड़ी करेंसी! में छिपा बड़ा स्कैम, 2000 रुपये के नोट क्या बदलेंगे बाजार
लखनऊ : भाजपा सरकार में नई नीतियां और नए फरमान हर किसी को चौंकाते जा रहे हैं। मास्टर स्ट्रोक की तरह भाजपा ने पहले 500 और 1000 रुपये के नोट बैन कर दिए और बड़ी करेंसी के रूप में 2000 रुपये के नोट बाजार में लेकर आई। अब खुद भाजपा सरकार ने ही 2000 रुपये के नोटों को बंद करने का ऐलान कर दिया है। जिससे भाजपा ने अपने ही इस मास्टर स्ट्रोक से अपनी विफलता का प्रमाण देते हुए सवाल खड़े कर दिए हैं।
2000 के नोटों की नोटबंदी या नोट वापसी ?
दरअसल, आरबीआई ने शुक्रवार को एक घोषणा की, जिसमें कहा गया कि 2000 रुपये के नोट अब वापस लिए जा रहे हैं। अब 2 हजार रुपये के नोट मार्केट में नहीं चलेंगे। करेंसी को वापस लेने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने एक समय-सीमा भी तय की है। जिसके तहत 2000 रुपये के नोटों को 23 मई से 30 सितंबर तक सरकारी बैंकों में बदला या जमा किया जा सकता है।
नोट वापसी पर आरबीआई की सफाई
इस फरमान पर सफाई देते हुए आरबीआई ने बताया कि 2018-19 में ही दो हजार रुपये का नोट को छापना बंद कर दिया था। आरबीआई ने बताया कि अब बाजार में सर्कुलेट हो रहें 2000 रुपये के नोटों को वापस लिया जा रहा है। साथ ही आरबीआई ने यह भी बताया कि 2000 रुपये का नोट लीगल टेंडर में बना रहेगा। लोग 30 सितंबर तक बैंक में जाकर अपने नोट को बदलवा सकेंगे, जमा करवा सकेंगे।
बड़ी करेंसी पर खेल… क्या भाजपा का बड़ा स्कैम
बता दें, सरकार ने एक बार फिर से सबसे बड़ी करेंसी को बंद कर दिया है। ये वही 2000 रुपये की करेंसी है जिसे पीएम मोदी ने 2016 में जारी किया था। उस समय भाजपा ने डिनॉमिनेशन की वजह काला धन वापस लेना बताया था। आपको मालूम होगा कि साल 2016 नवंबर में नोटबंदी के बाद 2000 हजार रुपये का नोट लाया गया था। नोटबंदी में 500 और 1000 रुपये के नोट बंद कर दिये गये थे। वहीं अब 7 साल के बाद उसी 2000 की करेंसी को सरकार वापस ले रही है। खैर, अब दो हजार के नोटों को वापस लिए जाने के बाद सवाल उठ रहा है कि आखिर आरबीआई ने ऐसा क्यों किया? और आरबीआई के ऐसा करने के पीछे भाजपा सरकार का मास्टर स्ट्रोक बताया जा रहा है। क्योंकि आरबीआई केंद्र सरकार के आदेश के बिना नोटबंदी (Denomination) का ऐलान नहीं कर सकती है। इसे इन आसान बिंदुओं में समझते हैं…
- सरकार के इस फैलले के पीछे बड़ा घोटाला होने की बात कही जा रही है। क्योंकि 2000 की नोट बड़ी करंसी में आती है, और ये नोट आमतौर पर मध्यमवर्गीय तक नहीं पहुंच पाती है। यदि मध्यमवर्गीय व्यक्ति तक 2000 की नोट पहुंचती भी है तो महंगाई के चलते रुकने के बजाय सर्कुलेट हो जाती है। ऐसे में सवाल वाजिब है कि 2000 की नोट केवल उच्च वर्गीय या बड़े व्यापारियों के पास ही मिलती है। इस तरह सरकार किसके काले धन को वापस लेने का प्रयास कर रही है।
- हालांकि, इस पर सरकार और आरबीआई की ओर से बार-बार ये बताया जा रहा है कि 2023 की नोटबंदी 2016 की नोटबंदी से अलग है। आरबीआई और सरकार का कहना है कि ये नोटबंदी नहीं है, सिर्फ नोट रिप्लेसमेंट हैं।
- इस पूरे मामले में पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने शनिवार को कहा कि 2,000 रुपये का नोट वापस लिए जाना ‘बहुत बड़ी घटना’ नहीं है और इससे अर्थव्यवस्था या मौद्रिक नीति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि 2,000 रुपये के नोट को 2016 में विमुद्रीकरण के समय ‘आकस्मिक कारणों’ से मुद्रा की अस्थायी कमी को दूर करने के लिए लगाया गया था।
- नोटबंदी या नोट रिप्लेसमेंट पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर गांधी ने कहा कि 2,000 रुपये के बैंक नोट वापस लेने से काले धन पर रोक लगाने में काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकेगा क्योंकि लोग यह नोट जमा कर रहे हैं। गांधी ही वर्ष 2016 में 500 और 1,000 रुपये के नोट चलन से हटाये जाने के समय आरबीआई में मुद्रा विभाग के प्रमुख थे। उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा कि भुगतान पर किसी भी प्रणालीगत प्रभाव की संभावना नहीं है क्योंकि इन नोटों का उपयोग दैनिक भुगतानों में नहीं किया जाता है। ज्यादातर भुगतान डिजिटल माध्यम से होते हैं।
- इसके साथ ही अर्थशास्त्री व नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगड़िया ने कहा है कि 2000 का नोट वापस मंगाने के आरबीआई के फैसले से अर्थव्यवस्था पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि ऐसे वापस हुए नोटों के स्थान पर उसी कीमत में कम मूल्यवर्ग के नोट जारी कर दिए जाएंगे। पनगड़िया ने कहा कि इस कदम के पीछे संभावित मकसद अवैध धन की आवाजाही को और मुश्किल बनाना है। उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, “हम इसका अर्थव्यवस्था पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं देखेंगे। 2,000 के नोट की कितनी भी राशि को बराबर कीमत में कम मूल्यवर्ग के नोटों से बदल दिया जाएगा या जमा कर दिया जाएगा। इसलिए धन प्रवाह पर प्रभाव नहीं पड़ेगा।
आम लोगों पर नोटबंदी का नहीं पड़ेगा सीधा असर
वहीं, 2000 रुपये के नोट वापसी को लेकर देशभर में हलचल मच गई है। इससे बड़े व्यापार व लेनदेन करने वाले लोगों को काफी परेशानी हो सकती है। जबकि सामान्य लोगों पर इस नोटबंदी का कोई असर नहीं पड़ेगा। पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने इस बात को स्पष्ट करते हुए कहा है कि 2000 के नोट आम लोगों के सामान्य लेन-देन में बहुत ज्यादा इस्तेमाल नहीं होते थे। इन नोटों का कुल मूल्य प्रचलित मुद्रा का 10 फीसदी ही था। इसलिए इसका आम लोगों पर असर नहीं पड़ेगा।
2000 के नोट की वापसी से गड़बड़ाएगा बाजार
2000 के नोट वापसी का बाजार पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। न तो जीडीपी पर असर पड़ेगा और न ही आम लोगों पर। क्योंकि बाजार में कैश लेनदेन को डिजिटल भुगतान ने कवर कर लिया है। ऐसे में कैश लेनदेन से केवल छोटे भुगतान ही किए जा रहे हैं। यानी कि पिछले पांच-छह वर्षों में डिजिटल भुगतान बढ़ने की वजह 2000 का नोट वापस लेने से कुल प्रचलित मुद्रा पर कोई खास असर नहीं आएगा।
अप्रत्यक्ष रूप में आम लोग भी होंगे प्रभावित
वहीं, अब बात करें कि क्या मौद्रिक नीति पर इसका कोई प्रभाव होगा। तो इसका जवाब है हां, भारत की आर्थिक और वित्तीय प्रणाली पर इसका असर देखा जा सकता है। इससे सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि या जनकल्याण पर भी प्रभाव पड़ सकता है। क्योंकि किसी भी मुद्रा को वापस लेकर फिर से रिक्रियेट करने में काफी खर्च आता है। सरकार ये खर्च जनता के खातों से अप्रत्यक्ष रूप में निकालती है। जिससे आम जनता को सीधे तो असर नहीं पड़ता लेकिन अप्रत्यक्ष रूप में महंगाई और अन्य रूपों में असर पड़ता है।
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