मंदी झेल रहे ‘पापुलर’ उगाने वाले
बागपत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों बरेली में आयोजित एक रैली में एग्रो फार्मिग (वृक्ष सहफसली खेती) का फार्मूला सुझाया था, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को यह रास नहीं आ रहा है। बाजार में मंदी की वजह से उप्र के लगभग एक दर्जन जिलों में पापुलर व सफेदा की खेती से जुड़े किसान बर्बादी के कगार पर पहुंच गए हैं।
दरअसल, ज्यादा पैसा कमाने की चाहत में पापुलर व सफेदा की बुआई करके किसान अब अपनी किस्मत पर रो रहे हैं। पिछले दो वर्षो से पापुलर की खेती में लगातार गिरावट आ रही है और इसके खरीदार भी नहीं मिल रहे हैं। इससे किसान दोहरे संकट में फंसा हुआ है।
पश्चिमी उप्र के किसानों की मानें तो तीन वर्ष पहले 1,500 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही पापुलर की लकड़ी का अब 500 रुपये प्रति क्विंटल में भी खरीदार नहीं मिल रहा है।
बागपत में पापुलर की खेती से जुड़े एक बड़े किसान महेंद्र तोमर ने बताया कि उन्होंने लगभग 7 बीघे में पापुलर व सफेदा की खेती की है। इसमें करीब 10 हजार पेड़ खड़े हैं, लेकिन इनका कोई खरीदार नहीं मिल रहा है।
उन्होंने बताया कि “एक पेड़ तैयार होने में पांच से सात वर्ष लग जाते हैं। पड़ोसी राज्य हरियाणा में इसकी एक मंडी है, जो मंदी की शिकार है। यहां प्लाइवुड की सैकड़ों फैक्ट्रियों के बंद होने से ही यह संकट पैदा हुआ है।”
किसान बताते हैं कि उप्र में प्लाइवुड की फैक्ट्रियों का अभाव है, इसीलिए किसान हरियाणा से आने वाले व्यापारियों पर निर्भर हैं। लेकिन वहां भी अब मंदी की वजह से व्यापारी नहीं आ रहे हैं, लिहाजा पेड़ों के खरीदार नहीं मिल रहे हैं।
किसान यह भी आरोप लगाते हैं कि उप्र सरकार एग्रो फार्मिग की तरफ ध्यान नहीं दे रही है। यह सरकार की उदासीनता ही है कि पश्चिमी उप्र में एग्रो फर्मिग की खेती बढ़ने के बावजूद वह फैक्ट्रियां लगाने की तरफ ध्यान नहीं दे रही है।
गौरतलब है कि उप्र के सहारनपुर, गाजियाबाद, बागपत, शामली, हापुड़, मेरठ, रामपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, शाहजहांपुर और बरेली में पापुलर खेती बड़े पैमाने पर हो रही है।
हरियाणा एशिया में पापुलर का सबसे बड़ा खरीदार है। दूसरा नंबर उत्तराखंड का है। पापुलर का प्रयोग रियल एस्टेट और भवन निर्माण क्षेत्र के अलावा प्लाइवुड के काम में होता है।
कृषि वैज्ञानिक आर. के. चौधरी के मुताबिक, मांग में कमी के चलते अच्छी क्वालिटी वाली पापुलर पौध का रेट 25 रुपये से घटकर आठ से 10 रुपये प्रति पौध रह गया है। पिछले कुछ वर्षो में बाजार में मंदी की वजह से इस खेती से जुड़े किसानों के लिये संकट पैदा हो गया है।
इधर, सरकार एग्रो फार्मिग के तहत पापुलर की खेती को बढ़ावा देने की बात कह रही है।
कृषि उत्पादन आयुक्त प्रवीर कुमार कहते हैं कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई योजनाओं की समीक्षा होगी। एग्रो फार्मिग व सहफसली खेती को प्रोत्साहित करने के लिये जरूरी उपाय किए जा रहे हैं।