…तो बंजर हो जाएगी सोना उगलने वाली पंजाब की मिट्टी
चंडीगढ़। यह बात कहने में कोई गुरेज नहीं कि पंजाब की मिट्टी सोना उगलती है। देश के अन्न भंडार में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले पंजाब के खेतों का भविष्य बेहतर नहीं दिख रहा। क्योंकि जिस रफ्तार से यहां के खेतों में भूजल स्तर घट रहा है, वह देश के लिए खतरे की घंटी है। राज्य का एक बड़ा हिस्सा जल की कमी से जूझ रहा है और यही हालात बने रहे, तो वह दिन दूर नहीं जब राज्य के कृषकों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी।
जालंधर के निकट भोगपुर के किसान करतार सिंह का कहना है कि “पांच नदियों वाले राज्य पंजाब में आने वाले वर्षों में पानी सबसे बड़ा मुद्दा बन सकता है। भूजल स्तर बेहद तेजी से घट रहा है। ट्यूब वेल को 300 से 400 फीट गहराई में गाड़ा जा रहा है। प्रत्येक वर्ष भूजल स्तर 10 फीट नीचे जा रहा है। हालात बेहद खतरनाक हैं।”
ये हालात पंजाब के अधिकांश इलाकों के हैं। हालिया अध्ययनों व आधिकारिक रिपोर्टों में यह बात सामने आई है कि भूजल स्तर खतरनाक तरीके से नीचे जा रहा है और किसान इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इसके लिए तत्काल कोई कदम नहीं उठाया जा रहा। राज्य सरकार के अधिकारियों ने कहा कि पंजाब कुल 145 वाटर ब्लॉकों में विभाजित है, जिनमें से 110 ब्लॉकों को पहले ही ‘डार्क जोन्स’ घोषित कर दिया गया है।
राज्य सरकार ने लगभग 45 फीसदी ब्लॉकों को अधिसूचित कर रखा है, जिसका मतलब है कि इनका इस्तेमाल केवल पीने के लिए किया जा सकता है, खेती या औद्योगिक इस्तेमाल के लिए नहीं। मध्य व उत्तरी पंजाब को दोआबा तथा माझा इलाके के रूप में जाना जाता है और ये सतलुज व ब्यास नदी के किनारे बसे हैं, जो गिरते भूजल स्तर से सर्वाधिक प्रभावित हैं।
कृषिविद् तथा पंजाब कृषि निर्यात निगम के पूर्व सदस्य खुशवंत सिंह ने कहा कि “अगर राज्य सरकार गंभीर होती, तो वह एसवाईएल नहर मुद्दे पर ध्यान देने की जगह किसानों को नई प्रौद्योगिकी जैसे माइक्रो-स्प्रिंकलर्स तथा ड्रिप इर्रिगेशन (टपकन सिंचाई) पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित करती।” संबंधित विभागों के अधिकारी इस बात को स्वीकार करते हैं कि सरकार द्वारा जल प्रबंधन तथा इसके लिए कायदे-कानून के लिए किसी तरह का प्रयास नहीं किया गया, जिससे स्थिति और भयावह हो गई है। यहां तक कि पंजाब ने पानी के इस्तेमाल को विनियमित करने के लिए एक प्राधिकार तक की स्थापना नहीं की है।अगले 10 महीनों के बाद पंजाब में चुनाव होने वाले हैं और मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की सरकार 2.5 लाख और ट्यूब वेलों को मंजूरी देने की तैयारी कर रही है, जिसके बाद राज्य में मौजूदा 13 लाख से भी अधिक कनेक्शन हो जाएंगे। बीते महीने पड़ोसी राज्यों के साथ पानी साझा करने के लिए एक प्रस्ताव के मुताबिक, “पंजाब पूरी तरह ट्यूब वेल पर आश्रित है, क्योंकि 73 फीसदी सिंचाई कार्य इन्हीं के माध्यम से होता है, जिसके कारण भूजल स्तर में तेजी से कमी आ रही है। अब हालात बेहद गंभीर हो गए हैं।”
कृषिविद् तथा पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (पीएयू)-लुधियाना के बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट के सदस्य कुलवंत सिंह ने आईएएनएस से कहा, “फसलों की सिंचाई एक तरह से बेकार हो चली है, क्योंकि प्रत्येक पौधे को जरूरत से अधिक पानी की जरूरत पड़ रही है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि सिंचाई की तकनीक अब बेहद पुरानी हो गई है।” उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा नुकसान धान की खेती से हो रहा है, जो पंजाब के लिए उपयुक्त नहीं है। अन्य खरीफ फसलों की तुलना में यह 10 गुना अधिक पानी सोखता है। फसल विविधीकरण व आधुनिक प्रौद्योगिकी जैसे माइक्रो-स्प्रिंक्लर्स तथा ड्रिप इर्रिगेशन पानी को बचाने में मददगार है।
उन्होंने कहा कि “किसानों को नियमित गेहूं-धान खेती चक्र के बदले कम समय की फसलों के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। कृषि विशेषज्ञ व पीएयू के वैज्ञानिक भूजल के गिरते स्तर को लेकर चिंतित हैं।” देश की औसत 40 फीसदी कृषि योग्य भूमि से अलग पंजाब में 83 फीसदी भूमि में खेती होती है। हरित क्रांति का जनक पंजाब देश के भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 1.54 फीसदी है, जो देश के अन्न भंडार में 50 फीसदी का योगदान करता है।