राम बहादुर राय: ईमानदार कलम
देश के जाने-माने पत्रकार पद्मश्री से सम्मानित राम बहादुर राय का पूरा जीवन रचना, सृजन और संघर्ष का अनूठा उदाहरण है। जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के एक गांव में जन्मे श्री राय सही मायने में पत्रकारिता क्षेत्र में शुचिता और पवित्रता के जीवंत उदाहरण हैं। वे एक लेखक, दृष्टि संपन्न संपादक, मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में प्रेरक छवि रखते हैं।
भारतीय जीवन मूल्यों और पत्रकारिता के उच्च आदर्शों को जीवन में उतारने वाले राम बहादुर राय ने राजनीति के शिखर पुरुषों से रिश्तों के बावजूद कभी कलम को ठिठकने नहीं दिया। उन्होंने वही लिखा और कहा जो सच था।
(रामबहादुर राय को सम्मानित करते छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह)
IGNCA के बनाए गए प्रमुख
भारत सरकार द्वारा राजीव गांधी द्वारा स्थापित ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र’ के बोर्ड को 14 अप्रैल को भंग कर राम बहादुर राय को नए प्रमुख के तौर पर नियुक्त किया गया। इस कला केंद्र को सरकार द्वारा फंड किया जाता रहा है और इसे 1985 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की याद में स्थापित किया गया था। पद्म श्री राम बहादुर राय को चिनमय खान की जगह नियुक्त किया गया है। राय उस 20 सदस्यीय टीम की अगुवाई करेंगे जिसमें सोनल मानसिंह, चंद्रप्रकाश द्विवेदी, नितिन देसाई, के अरविंद राव, रति विनय झा, प्रोफेसर निर्मला शर्मा, हर्ष न्योतिया, पद्म सुब्रमण्यम, सरयू दोषी और प्रसून जोशी शामिल हैं।
J. P. आंदोलन के अगुआ
राम बहादुर राय ने छात्र आंदोलन से अपनी शुरुआत की थी। जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन को संचालित करने के लिए जिस 11 सदस्यीय कमेटी का गठन किया था, उसमें राम बहादुर राय भी शामिल थे। आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी का कहर जिन लोगों पर टूटा था, उसमें जयप्रकाश जी के बाद दूसरा नंबर राम बहादुर राय का ही था। ‘मीसा’ एक्ट के तहत दूसरे नंबर पर जेल जाने वाले राम बहादुर राय ही थे।
‘जनसत्ता’ को दी पहचान
राय साहब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर छात्र राजनीति में सक्रिय रहते हुए, ऐतिहासिक जयप्रकाश आंदोलन के नायकों में रहे। आंदोलन का दौर समाप्त कर उन्होंने दैनिक ‘आज’ में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का ‘आंखों देखा वर्णन’ लिखकर राय ने अपनी पत्रकारीय पारी की एक सार्थक शुरुआत की। राज जी लम्बे समय तक ‘जनसत्ता’ में पत्रकारिता की। ‘जनसत्ता’ में एक संवाददाता के रूप में कार्य प्रारंभ कर वे उसी संस्थान में मुख्य संवाददाता, समाचार ब्यूरो प्रमुख जनसत्ता के संपादक जैसे पदों पर पर रहे। जनसत्ता अखबार ने उन्हें पहचान दी और जनसत्ता को उन्होंने पहचान दिया। फिर नवभारत टाइम्स और ‘प्रथम प्रवक्ता’ में ठसक के साथ कलम चलाई और वर्तमान में ‘यथावत’ पत्रिका के संपादक हैं।
‘यथावत’ की मांग
संविधान की विसंगतियों को दर्शाते ‘यथावत’ के एक अंक की इतनी मांग बढ़ गई कि उसे बार-बार प्रिंट कराना पड़ा। कई लोगों को वह अंक नहीं मिल सका, जिसके बाद पाठकों ने सीधे सदस्यता ही ले ली ताकि ‘यथावत’ के किसी अंक से वंचित न जाए। वर्तमान में हिंदी पत्रिका में ‘यथावत’ एक मात्र पत्रिका है, जिसमें पत्रकारिता है, जिसमें इतिहास से लेकर वर्तमान तक का बोध है और जिसे पढ़कर आपको लगेगा कि आपने कुछ सार्थक पढ़ा है।
‘हवाला कांड’ का भंडाफोड
हवाला कांड को उजागर करने वालों में राम बहादुर राय का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदंबरम के 5000 करोड़ के हवाला कांड का भंडाफोड और इस कालेधन के न्यूज चैनल एनडीटीवी में लगे होने की रिपोर्ट सबसे पहले ‘यथावत’ में ही छपी थी। अरविंद केजरीवाल के पीछे अमेकिरी एजेंट शिमरित ली के होने का खुलासा भी सर्वप्रथम ‘यथावत’ ने ही किया था।
इस देश के युवा भले ही हिंदी नहीं पढते हों, लेकिन इस रिपोर्ट की मार इतनी जबरदस्त थी कि सोशल मीडिया के जरिए शिमरित तक भी यह बात पहुंची। इसके बाद खुद शिमरित ली ने मेल से अपना स्पष्टीकरण भेजा था कि मैं सीआईए का एजेंट नहीं हूं, हालांकि उसने यह स्वीकार किया कि उसने अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के एनजीओ ‘कबीर’ में कुछ समय तक काम किया था और यह भी कि एक रिपोर्ट टीम अरविंद को दी थी।
पद्मश्री से सम्मानित
राम बहादुर राय जी को वर्ष 2015 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। राय को माधव राव सप्रे पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। गत 17 जून 2010 को भोपाल में आयोजित समारोह में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी ने श्रीराय को ये सम्मान प्रदान किया। हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। जिनमें भगवान दास जनजागरण पत्रकारिता पुरस्कार, हिन्दी अकादमी दिल्ली की ओर से पत्रकारिता पुरस्कार, सत्याग्रही सम्मान जयपुर, विकल्प संस्था का पत्रकारिता सम्मान प्रमुख हैं।
‘सांच को आंच नहीं‘
‘सांच को आंच नहीं’, यह कहावत आज के दौर में राम बहादुर राय जी पर खूब बैठती है। एक पत्रकार के अलावा रामबहादुर राय जी की बड़ी उपलब्धि उनका पुस्तक लेखन है। उनकी लिखी आचार्य कृपलानी की जीवनी पढ़कर आपको आजादी के पहले का पूरा भारत, गांधी का सत्याग्रह, विभाजन से पूर्व नोआखाली का दंगा आदि तथ्याकत्मूक रूप से आपके समक्ष आता चला जाएगा। इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह व चंद्रशेखर पर लिखी उनकी पुस्तक पढ़कर आप उस वक्त की राजनैतिक परिस्थितियों से रूबरू होते चले जाएंगे।