World Health Day 2025: कितना स्वास्थ्य है भारत?

World Health Day 2025

World Health Day 2025:आजकल के समय में जब बात सेहत की होती है तो ऐसे में बहुत सारी बाते जहन में आती है. ऐसे में जब बात एक देश की होती है तो कहा जाता है, “यदि नागरिक स्वस्थ हैं, तो देश स्वतः ही समृद्धि की ओर अग्रसर होता है.” एक स्वस्थ समाज न केवल आर्थिक रूप से सशक्त होता है, बल्कि सामाजिक और मानसिक रूप से भी जागरूक होता है.

स्वास्थ्य नीतियाँ, जागरूकता, और चिकित्सा सुविधाएं मिलकर एक स्वस्थ राष्ट्र की भूमिका तैयार करती हैं .स्वास्थ्य जो न सिर्फ़ हमारी जिंदगी चलाता है, बल्कि हमारे देश की तरक्की का भी आईना है.

तो आइये जानते है कितना स्वस्थ है हमारा भारत? कौन-सी बीमारियाँ हमारे लिए सबसे बड़ा खतरा हैं? इनका असर हमारी जेब और अर्थव्यवस्था पर क्या पड़ रहा है?

आपको बता दे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़े कुछ चौंकाने वाली तस्वीर दिखाते हैं. भारत में आज गैर-संचारी रोग यानी दिल की बीमारी, डायबिटीज़, और कैंसर हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती हैं। इसके साथ ही संक्रामक रोग जैसे टीबी और मलेरिया भी पीछे नहीं हट रहे. ऊपर से कुपोषण और मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएँ ये सब मिलकर भारत के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चुनौती है. मतलब, हालात चिंताजनक हैं.

सबसे खतरनाक बीमारियाँ कौन-कौन है लिस्ट में?

अब बात करते हैं उन बीमारियों की जो भारत के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बनी हुई हैं…

भारत के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द दिल की बीमारी, मधुमेह, और कैंसर जैसी बीमारियाँ यहाँ तेज़ी से पैर पसार रही हैं। WHO की रिपोर्ट कहती है कि भारत में हर साल करीब 60% मौतें NCDs की वजह से होती हैं। यानी हर 10 में से 6 लोग इन बीमारियों से जूझते हुए जान गँवा रहे हैं। मिसाल के लिए, डायबिटीज़ भारत को दुनिया की “डायबिटीज़ कैपिटल” कहा जाता है, जहाँ 7.7 करोड़ लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं.

वही टीबी यानी ट्यूबरकुलोसिस आज भी भारत में सबसे बड़ा विलेन है। WHO के मुताबिक, दुनिया भर के टीबी मरीज़ों का एक चौथाई हिस्सा भारत में है दुसरी तरफ मलेरिया भी ग्रामीण इलाकों में कहर बरपाता है, हालाँकि पिछले कुछ सालों में इसमें कमी जरुर आई है.

UNICEF का डेटा कहता है कि भारत में 5 साल से कम उम्र के 38% बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। यानी हमारे बच्चे भूख और कमज़ोरी से जूझ रहे हैं, जो आने वाली पीढ़ी के लिए खतरे की घंटी है.

इन बीमारी से भारत सबसे ज्यादा प्रभावित

इस समय भारत जिससे सबसे ज्यादा प्रभावित है वो है डिप्रेशन और एंग्ज़ाइटी, लेकिन इन पर बात कम होती है. WHO का अनुमान है कि भारत में 5.6 करोड़ लोग डिप्रेशन से पीड़ित हैं। फिर भी, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता और इलाज की कमी बड़ी समस्या है.

एसे में अब सवाल ये कि इन बीमारियों का हमारी इकॉनमी पर क्या असर पड़ रहा है? देखिए, ये सिर्फ़ सेहत का मसला नहीं, बल्कि पैसों और प्रोग्रेस का भी खेल है.

NCDs और संक्रामक रोगों का इलाज महँगा है. एक आम परिवार की कमाई का बड़ा हिस्सा दवाइयों और अस्पतालों में खर्च हो जाता है. सरकार पर भी बजट का बोझ बढ़ता है.बीमार लोग काम नहीं कर पाते, जिससे प्रोडक्टिविटी घटती है. WHO का कहना है कि NCDs की वजह से भारत हर साल अरबों डॉलर का नुकसान उठाता है.अस्पतालों में बेड कम पड़ते हैं, डॉक्टरों की कमी है, और मरीज़ों की लाइन लंबी। ये सब मिलकर हेल्थकेयर सिस्टम को चरमरा रहा है.

पड़ोसी देशों का हाल

बात करे भारत के पड़ोसी देशो कि तो आपको जानकर हैरानी होगी की भारत के कुछ पड़ोसी देशों में स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता और उपलब्धता भारत से बेहतर है, खासकर चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका और भूटान जैसे देशों में. “ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज” अध्ययन के अनुसार, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और गुणवत्ता के मामले में भारत 195 देशों की सूची में 145वें स्थान पर है, जबकि चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका और भूटान जैसे पड़ोसी देश बेहतर स्थिति में हैं.

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भारत कैसे बनेगा विश्व गुरु?

ऐसे में अब सवाल ये है कि क्या भारत को जो सपना है विश्व गुरु बनने का क्या वह साकार हो पायेगा? हालांकी भारत में सस्ती और अच्छी मेडिकल सुविधाएँ हैं. हर साल लाखों विदेशी यहाँ इलाज के लिए आते हैं. आयुर्वेद, योग, और नेचुरोपैथी को दुनिया तक ले जाकर हम हेल्थकेयर में नया ट्रेंड सेट कर सकते हैं. टेलीमेडिसिन और हेल्थ ऐप्स के ज़रिए दूरदराज़ के गाँवों तक इलाज पहुँचाया जा सकता है. लोगों को हेल्दी लाइफ़स्टाइल के लिए जागरूक करना ज़रूरी है—खानपान सही करें, एक्सरसाइज़ करें, और तनाव कम करें.

इन कदमों से भारत न सिर्फ़ अपनी सेहत सुधार सकता है, बल्कि दुनिया को हेल्थकेयर में रास्ता दिखा सकता . कहा जाता है, “स्वस्थ नागरिक, सशक्त राष्ट्र.” लेकिन जब हम भारत की ओर देखते हैं, तो तस्वीर कुछ जटिल नज़र आती है.

एक ओर, हमारे देश ने बीते वर्षों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई अहम उपलब्धियाँ हासिल की हैं चाहे वह आयुष्मान भारत योजना हो, कोविड-19 के खिलाफ़ टीकाकरण का अभूतपूर्व अभियान हो, या ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे को सुदृढ़ करने के प्रयास.वहीं दूसरी ओर, कुपोषण, असमान स्वास्थ्य सुविधाएँ, और मानसिक स्वास्थ्य जैसे मुद्दे अब भी हमारे सामने बड़ी चुनौती बनकर खड़े हैं.