सेप्टिक टैंक की सफाई का बजट में प्रावधान। क्या सफाईकर्मियों की स्तिथि सुधार पाएगी सरकार ?

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मोदी सरकार की तरफ से वित्तीय वर्ष 2022-23 का आम बजट पेश हुआ। बजट के भाषण के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कहा कि सेप्टिक टैंक और सीवर की सफाई अब पूरी तरह मशीन माध्यम से होगी। जिसके लिए (नेशनल एक्शन फॉर मैकेनाइज्ड सेनेटाइजेशन इकोसिस्टम) नमस्ते योजना के तहत उन्होंने 100 करोड़ रुपये आवंटन का प्रावधान किया है।

आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने हाथ से मैला उठाने को लेकर साल 1993 में ही रोक लगाते हुए इसके लिए मैन्युअल स्कैविंग प्रोबेशन एक्ट 1993 कानून पारित किया था। लेकिन आज तक अधिकतर जगहों पर सफाईकर्मी हाथ से ही सफाई करते हैं जिसकी वजह से आए दिन दर्जनों की संख्या में उनकी मौत होती रहती है। हम आगे उन तमाम मुद्दों को विस्तार से समझाएंगे, बजट में इसके लिए क्या है? सरकार के सामने क्या चुनौतियां होंगी और बताएंगे कि सीवेज की सफाई करने के दौरान लोगो की मौत कैसे हो जाती है लेकिन आइए उससे पहले नमस्ते योजना के बारे में जानते हैं।

आखिर, क्या है भारत सरकार की नमस्ते योजना…

-केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय तथा आवास व शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से शुरू की गई एक महत्वकांक्षी योजना थी नमस्ते। इस योजना के माध्यम से सरकार सीवर और सेप्टिक टैंक में काम करने वाले मजदूरों की पहचन करेगी और उनके आवश्यक सेफ्टी किट सहित अन्य जरूरी सामान मुहैया कराएगी।

-नमस्ते योजना स्वच्छता बुनियादी ढांचे के रखरखाव और संचालन में एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र बनाकर पूरे शहरी भारत में सफाई कर्मचारियों को सुरक्षा और सम्मान प्रदान करने के लिए लाई गई थी। जिसका मुख्य उद्देश्य सफाई कर्मचारियों को स्थायी आजीविका प्रदान करने के साथ ही भारत भर में स्वच्छता कार्यों में शून्य मृत्यु के लक्ष्य को प्राप्त करना भी है। इस योजना के तहत सुनिश्चित करना है कि सफाई कर्मचारी सीधे प्रदूषण के संपर्क में न आए।

बजट में सीवेज सफाईकर्मियों के लिए क्या है…

– आम बजट में पहली बार सेप्टिक टैंक और सीवर लाइन सफाई को पूरी तरह मशीनीकृत करने के लिए फंड का प्रावधान किया गया है। हमारे देश में आमतौर पर अब तक ये मेनहोल में उतर कर सफाई करने का काम मानवयुक्त ही है जिसमें अक्सर लोगों की जान जाने की खबरें आती रहती हैं। यदि वास्तव इस सफाई के लिए एक सुव्यवस्थित मशीनीकृत सिस्टम बन गया तो कम से कम बड़े पैमाने पर मानव सफाई कर्मियों की जान की रक्षा हो सकेगी।

– इस बजट में सेप्टिक टैंक और सीवर लाइन की सफाई के लिए 100 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है कि जिसका उपयोग सफाई व्यवस्था में उच्चतम तकनीक के प्रयोग, नए उपकरणों की मौजूदगी सुनिश्चित करते हुए सफाईकर्मियों का सशक्तिकरण करने के लिए होगा।

सीवेज सफाई के दौरान कैसे हो जाती है मौत, क्या कहते हैं आंकड़े…

-जैसा कि आप जानते हैं सेप्टिक टैंक और नालों की सफाई भारत में पूर्णतः मानवरहित है। जिसके लिए कानूनी प्रावधान भी है लेकिन ऐसा सिर्फ़ कागज़ों में ही है क्योंकि देश में अधिकतर सफाईकर्मी बिना किसी सुरक्षा कवच या मास्क के ही जहरीले और हानिकारक गैसों से भरे गहरे मेन हॉल (सीवर) में उतरकर सफाई करते हैं। जहां कई बार दम घुटने और पैर फिसलने से वो गिर जाते हैं और फिर उनकी मौत हो जाती है।

-सीवेज सफाई के दौरान हुए मौत के आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले कुछ सालों में मैनुअल स्‍कैवेंजिंग यानी हाथ से सेप्टिक टैंको की सफाई करते हुए सैकड़ों लोगों ने जान गंवाई है। राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की 2021 के रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर दिन औसतन 4 लोगों की मौत सीवेज सफाई में होती है। आयोग की माने तो नवंबर 2010 से मार्च 2020 तक सीवर सफाई के दौरान कुल 631 लोगों की मौत हुई। 2017 से 2021 तक सबसे अधिक 47 मजदूरों की मौत सीवेज सफाई करते हुए उत्तर प्रदेश में हुई। सफाई कर्मचारियों के संगठन के अनुसार 2016 और 2018 के बीच दिल्ली में कुल 429 मौतें हुईं।

मौत के सही आंकड़े नहीं, मरे तो मुआवजा नहीं

-सीवर कर्मचारियों की जान कितनी सस्ती है आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं। कि सरकार के पास भी स्‍पष्‍ट आंकड़ा नहीं है कि सीवर सफाई के दौरान कितने कर्मचारियों या मजदूरों की जान गई है। बता दें, 27 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 1993 से लेकर अब तक सीवर में दम घुटने की वजह से मरे लोगों और उनके परिवारों की पहचान की जाए। साथ ही हर पीड़ित परिवार को मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपये दिए जाएं। इसके बाद से ही सरकार की ओर से आंकड़े जुटाने की कवायद शुरू हुई है।

-हालांकि, करीब 8 साल बीतने के बाद भी सरकार के पास कोई स्‍पष्‍ट आंकड़ा नहीं है। वहीं एक आरटीआई प्रश्न के जवाब में, राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) ने खुलासा किया है कि विभिन्न राज्यों द्वारा प्रदान की गई जानकारी के अनुसार, 1993 से 20 राज्यों में सीवर की सफाई के दौरान आधिकारिक तौर पर 814 लोगों की मौत हुई है, जिनमें से पूर्ण केवल 455 मामलों में 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया है। बहुत से मामलों में पीड़ितों के परिवारों को 10 लाख रुपये के बजाय 5 लाख रुपये, 4 लाख रुपये या यहां तक ​​कि 2 लाख रुपये का अनुदान दिया गया है। मुआवजे के वितरण की जिम्मेदारी संबंधित अधिकारी, जैसे ठेकेदार, नगर निगम, जिला प्रशासन या राज्य सरकार की होती है।

सरकार के सामने बड़ी चुनौतियां…

केंद्र सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है कि वह सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए उनको उपयुक्त और आधुनिक सफाई उपकरण मुहैया कराए जिससे कि मैनुअल स्कवेजिंग को रोका जा सके। साथ ही साथ उनको इन उपकरणों के सही तरीके से उपयोग करने का तरीका बताते हुए प्रशिक्षण प्रदान करे जिससे कि उनमें जागरूकता पैदा हो सकेगी। हालांकि अब यह देखने वाली बात होगी कि भारत सरकार की नमस्ते योजना कितनी कारगर साबित होती है।

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रिपोर्ट :- विकास चौबे

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