वासन्तिक नवरात्र : कन्याओं के पूजन से मिलता है मां जगदम्बा का आशीर्वाद

वासन्तिक नवरात्र कुमारी कन्याओं की पूजन से सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य की प्राप्ति, मिलता है माँ जगदम्बा का आशीर्वाद

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Vasantik Navratri : दुर्गा अष्टमी : 1 अप्रैल, बुधवार।

नवमी : 2 अप्रैल, गुरुवार।

दशमी : 3 अप्रैल, शुक्रवार।

ब्रह्मपुराण के अनुसार चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से नववर्ष का प्रारम्भ माना जाता है। इसे भारतीय संवत्सर भी कहते हैं। चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन ही ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। नववर्ष के प्रारम्भ में नौ दिन तक वासन्तिक नवरात्र कहलाता है। वासन्तिक नवरात्र में जगतजननी जगदम्बा की महती कृपा प्राप्ति के लिए कुमारी कन्याओं की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करके उनके आशीर्वाद लेने की परम्परा है। प्रख्यात ज्योतिर्विद् विमल जैन ने बताया कि भक्तगण नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजाअर्चना करके आत्मकल्याण के साथ अपने मनोरथ की पूर्ति की कामना करते हैं।

नवरात्र में व्रतकर्ता को व्रत समाप्ति पर हवन आदि के पश्चात् कुमारी कन्याओं (देवी स्वरूप) एवं बटुक (भैरव स्वरूप) का विधि-विधानपूर्वक पूजन-अर्चन किया जाता है। कुमारी कन्याओं को त्रिशक्ति यानि महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती देवी का स्वरूप माना गया है। कुमारी कन्याओं एवं बटुक की भी पूजा करने का नियम है। पूजनोपरान्त उन्हें आभूषण, नववस्त्र, मिष्ठान्न, ऋतुफल, मेवा व नगद द्रव्य आदि भेंट करके उनसे आशीर्वाद लिया जाता है।

विमल जैन ने बताया कि चैत्र शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि 31 मार्च, मंगलवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 50 मिनट पर लगेगी जो अगले दिन 1 अप्रैल, बुधवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 41 मिनट तक रहेगी। तत्पश्चात् नवमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी। अष्टमी तिथि का हवन, कुँवारी पूजन महानिशा पूजा 1 अप्रैल, बुधवार को ही सम्पन्न होगी। उदया तिथि के मुताबिक 1 अप्रैल, बुधवार को अष्टमी तिथि का मान रहने से महाअष्टमी, दुर्गाष्टमी का व्रत रखा जाएगा।

नवरात्र के धार्मिक अनुष्ठान में कुमारी कन्याओं की पूजा-अर्चना करना शुभ फलदायी-

शास्त्रों के अनुसार दो वर्ष से दस वर्ष तक की कन्या के पूजन का विधान है। दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या-त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या-कल्याणी, पांच वर्ष की कन्या-रोहिणी, छ: वर्ष की कन्या-काली, सात वर्ष की कन्या-चण्डिका, आठ वर्ष की कन्या-शाम्भवी एवं नौ वर्ष की कन्या-दुर्गा तथा दस वर्ष की कन्या-सुभद्रा के नाम से दर्शाया गया है। इनकी पूजा-अर्चना करने से मनोवांछित फल मिलता है। अस्वस्थ, विकलांग एवं नेत्रहीन आदि कन्याएँ पूजन हेतु वर्जित हैं। फिर भी इनकी उपेक्षा न करते हुए यथाशक्ति यथासामर्थ्य इनकी सेवा व सहायता करनी चाहिए। जिससे जगत् जननी माँ जगदम्बा दुर्गा की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि खुशहाली बनी रहे।

Vasantik Navratri : वर्ण के अनुसार कन्या-पूजन का फल-

ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि देवी भागवत ग्रन्थ के अनुसार ब्राह्मण वर्ण की कन्या-शिक्षा ज्ञानार्जन व प्रतियोगिता, क्षत्रिय वर्ण की कन्या-सुयश व राजकीय पक्ष से लाभ, वैश्य वर्ण की कन्या-आर्थिक समृद्धि व धन की वृद्धि के लिए, शूद्र वर्ण की कन्या-शत्रुओं पर विजय एवं कार्यसिद्धि हेतु तथा सभी वर्गों की कन्याओं का पूजन विधि-विधानपूर्वक करके लाभ उठाना चाहिए।

विमल जैन वाराणसी के जानेमाने हस्तरेखा विशेषज्ञ, रत्न-परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिषी एवं वास्तुविद् हैं।

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