काशी के लाल ने जीता हॉकी में दो ओलंपिक पदक
काशी की धरती ने देश को चार ओलंपियन दिये हैं.
काशी के वरुणापार की मिट्टी ने अब तक हॉकी में देश को चार ओलंपियन दिये हैं. मो. शाहिद से जो सिलसिला शुरू हुआ, उसे ललित उपाध्याय बढ़ा रहे हैं. इस इलाके में हॉकी के प्रति सकारात्मक और उत्साहजनक माहौल है. हर वर्ग के परिवार के बच्चों को हॉकी के लिए जमीन मिली है. सीनियर खिलाड़ियों ने कोचिंग से लेकर हॉकी के लिए संसाधन मुहैया कराए गए हैं.
जब 70 के दशक में एस्ट्रोटर्फ मैदान नहीं थे. मो. शाहिद बाकी खिलाड़ियों के साथ जेपी मेहता इंटर कॉलेज मैदान में अभ्यास करते थे. अर्दलीबाजार के बच्चों के लिए अभ्यास का स्थान अब का कमिश्नरी सभागार था.
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तब कमिश्नरी सभागार में एक छोटा खुला मैदान था. यूपी कॉलेज में लक्ष्मणपुर, शिवपुर, भगतूपुर आदि आसपास के गांव के बच्चे आते थे.
काशी में ओलंपिक पदक जीतने वाले खिलाड़ी
मास्को ओलंपिक 1980 में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा रहे मो. शाहिद 1984 लॉस एंजिल्स और 1988 सियोल ओलंपिक का भी हिस्सा थे. शिवपुर के विवेक सिंह भी सियोल 1988 ओलंपिक में टीम का हिस्सा थे, जबकि उनके भाई राहुल सिंह 1996 अटलांटा में भारतीय टीम में थे. लंबे समय के बाद 2020 टोक्यो ओलंपिक में ललित उपाध्याय टीम का हिस्सा बने और 42 साल के बाद पदक का सूखा खत्म हुआ. अब पेरिस ओलंपिक में फिर से पदक जीतने वाली टीम का ललित हिस्सा रहे.
पेरिस में ललित उपाध्याय ने की मीडिया से बातचीत
पेरिस में मीडिया से बातचीत में कांस्य पदक विजेता भारतीय हॉकी टीम के फॉरवर्ड ललित ने कहा कि यूपी हमेशा से हॉकी खिलाड़ियों का गढ़ रहा है. खासकर बनारस, जिसने मो. शाहिद, विवेक सिंह, राहुल सिंह जैसे हॉकी के हैं ललित बड़े सितारे दिए, वहां से देश का प्रतिनिधित्व करना गौरव की बात है. टोक्यो और पेरिस ओलंपिक में कौन सा मेडल अधिक महत्वपूर्ण है ?
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भारत स्वागत के के स्टार फारवर्ड ने कहा, हर मेडल विशेष होता है. टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि हम लगातार 41 वर्षों से पदक से चूक रहे थे. हॉकी भारतीयों के लिए हमेशा से जुनून और सपना रही है.
इसे पूरा करने के लिए पूरी टीम आठ साल से बहुत मेहनत कर रही थी. पेरिस आने से पूर्व टीम दृढ़ प्रतिज्ञ थी कि जब हम कांस्य जीत सकते हैं तो गोल्ड क्यों नहीं बहरहाल, हॉकी जैसे टीम गेम में लगातार दो कांस्य पदक भी मायने रखता है. बाबा काशी विश्वनाथ का आशीर्वाद टीम के साथ है. साथ ही देशवासियों की दुआएं भी हमारा हौसला बढ़ा रही थीं.
ललित के कोच परमानंद मिश्रा
वहीं कोच परमानंद मिश्रा ललित की कामयाबी से बेहद खुश हैं. वह बताते हैं कि साल 2008 में तो इंडियन हॉकी टीम के कोच जोकिम कारवाल्हो ने ललित के खेल को देखकर कहा कि ‘ये तो शाहबाज सीनियर की तरह खेलता है’ शाहबाज सीनियर पाकिस्तान के सबसे कामयाब हॉकी खिलाड़ी माने जाते हैं.
शुरूआती दौर में कॉलेज के साईं सेंटर में हॉकी कोच परमानंद मिश्रा ने ललित के अंदर के हॉकी खिलाड़ी को पहचान लिया. उन्होंने ललित को हॉकी का हर वो स्किल सिखाने में दिन रात एक कर दिया जो एक बेहतरीन खिलाड़ी को आना चाहिए. पिता कहते हैं कि ललित ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.