पहली बार रिजेक्ट, दूसरी बार में शादी, ऐसी थी इंदिरा और फिरोज गांधी की अनकही दास्तां…

इंदिरा और फिरोज गांधी की अनसुनी दास्तां

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वो कहते हैं ना कि मोहब्बत के सात मुकाम होते हैं दिलकशी, उन्स, मोहब्बत, अकीदत, इबादत जूनून और मौत। ऐसी ही कुछ कहानी है फिरोज गांधी और भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के रिश्ते की है। तो आइए खोलते हैं फिरोज के दिलकशी से मौत तक की परत दर परत-

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इंदिरा-फिरोज की पहली मुलाकात

इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी की मुलाकात 1930 में हुई। दरअसल इंदिरा की मां कमला नेहरु एक कॉलेज के सामने धरना दे रही थी इस दौरान कमला बेहोश हो गईं। इस दौरान फिरोज ने कमला की शिद्दत के साथ देखभाल की।

इंदिरा को दिल दे बैठे थे फिरोज

 

फिरोज गांधीसाल 1933 में जब इंदिरा महज 16 साल की थी, तब फिरोज ने उनके सामने शादी का प्रस्ताव रखा। लेकिन उम्र कम होने के कारण उनकी मां कमला नेहरु ने शादी से इंकार कर दिया।

फिरोज ने कमला नेहरु की पूरी देखभाल की

कमला नेहरु को बाद में टीबी की बीमारी हो गई. इस दौरान अस्पताल तक में फिरोज गांधी हमेशा उनके साथ रहे। कमला जब इलाज के लिए विदेश पहुंची तो फिरोज भी उन्हें देखने गए। यहां तक कि 1936 में कमला की मौत के समय भी फिरोज वहां मौजूद थे। ऐसे में मां की देखभाल कर रहे नौजवान से इंदिरा का प्यार हो जाना लाजमी ही थी.

1942 में शादी के बंधन में बंधे फिरोज-इंदिरा

फिरोज गांधी

इंदिरा ने जब फिरोज से शादी का फैसला लिया तो उनके पिता नेहरु बिल्कुल खुश नहीं थे। नेहरु की मर्जी के खिलाफ 1942 में जब देश में भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था, तभी इंदिरा और फिरोज ने शादी कर ली। महात्मा गांधी ने शादी से पहले फिरोज को अपना सरनेम दिया था। जो आज भी गांधी परिवार का सरनेम है.

अलगाव का दौर और वजह

फिरोज गांधी

1944 में राजीव गांधी का जन्म हुआ। पहले बच्चे के पैदा होने के बाद से ही इंदिरा ने राजनीति में रुचि दिखाना शुरू कर दिया था। ऐसे में पिता से काम सीख रही इंदिरा और फिरोज में दूरियां नजर आने लगी।

फिरोज भी अपनी दुनिया में मशगूल थे

फिरोज गांधी अब नेशनल हेराल्ड अखबार के संपादन का काम देखने लगे। इंदिरा से बढ़ती दूरियों के बीच फिरोज का नाम लखनऊ की एक मुस्लिम महिला से भी जोड़ा गया था।

फिरोज गांधी को दिल का दौरा पड़ा!

1958 में जब इंदिरा पिता नेहरु के साथ विदेश दौरे पर थी। इस दौरान ही फिरोज को दिल का दौरा पड़ा। इंदिरा जब वापस आईं तो फिरोज के साथ उनका रिश्ता थोड़ा संभला।

दिलकश, उन्स……….मौत !

साल 1959 में इंदिरा गांधी कांगेस अध्य बनीं। चीजें फिर बदलीं। फिरोज एक बार फिर शायद अकेले पड़ गए थे। और फिर महज 48 साल की उम्र में फिरोज गांधी इस दुनिया को अलविदा कह गए।

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