Tulip: मध्य एशिया से निकली वंशज की आवाज़, दिल्ली में उनकी लीलाएँ

ट्यूलिप उन फूलों में से है, जैसे पक्षियों मे मोर--Marquis de Sade.

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Tulip: दिल्ली के डिप्लोमैटिक एरिया में ट्यूलिप फेस्टिवल के आगाज़ ने लोगों को अपनी ओर खींचा है, सर्द हवाओं में लिपटी हुई धूप जब ट्यूलिप पर अपनी दस्तक देती है तब मानो पूरी दिल्ली इनकी पंखुड़ियों के सामने नगमस्तक हो जाती है. 10वीं शताब्दी में ईरान की मिट्टी में पहली बार ट्यूलिप की खेती हुई थी. ऑटोमन साम्राज्य में पहली बार ट्यूलिप की करीब 75 प्रजातियों की खेती और प्रजनन किया गया था, हालांकि, आज भी तुर्की मे इस फूल की 14 प्रजातियाँ पाई जाती है. वही ओमर कायम और जलाल-उद-दिन रूमी ने ट्यूलिप का उल्लेख सबसे पहली बार शब्दों मे किया था.

इस वजह से यूरोप में मशहूर हुआ ट्यूलिप

हालांकि, ट्यूलिप की पहचान आमतौर पर एक डच फूल की तरह होती है, लेकिन इस फूल की असल उत्पत्ति मध्य एशिया में हुई थी. 16वीं शताब्दी में जब तुर्की के क्षेत्रफल में विस्तार हुआ तब इस फूल की खेती के लिए भी विस्तृत जगह दी गई थी. इसके साथ ही ट्यूलिप के बल्ब आमतौर से सुल्तान के दोस्तों तथा विश्वासपत्रों मे उपहार स्वरूप दिए जाते थे, जिसकी वजह से ट्यूलिप यूरोप में भी फेमस होता चला गया.

ट्यूलिप ऐसे ही कोई खास फूल नहीं बल्कि डच समुदाय में इसकी बहुत मांग होती थी. समकालीन नीदरलैन्ड का राष्ट्रीय प्रतीक है. आज भी वहाँ के पोस्टकार्डों मे अक्सर करके ट्यूलिप का स्केच मिल ही जाएगा. 1634 और 1637 के बीच, हॉलैंड में नए फूलों के प्रति उत्साह ने एक सट्टेबाजी उन्माद को जन्म दिया जिसे अब ट्यूलिप उन्माद के रूप में जाना जाता है, जिसके कारण अंततः तीन साल बाद बाजार ढह गया. ट्यूलिप बल्ब इतने महंगे हो गए थे कि उन्हें मुद्रा के रूप में या बल्कि वायदा के रूप में माना जाने लगा, जिससे डच सरकार को बल्बों पर व्यापार प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा.

यहां लगती है विश्व की सबसे बड़ी ट्यूलिप की प्रदर्शनी

लगभग इसी समय, स्टेम द्वारा कटे हुए फूलों के प्रदर्शन के लिए सिरेमिक ट्यूलिपियर तैयार किया गया था। फूलदान और गुलदस्ते, जिनमें आमतौर पर ट्यूलिप भी शामिल हैं, अक्सर डच स्टिल-लाइफ पेंटिंग में दिखाई देते हैं. आज तक, ट्यूलिप नीदरलैंड से जुड़े हुए हैं और ट्यूलिप की खेती किए गए रूपों को अक्सर “डच ट्यूलिप” कहा जाता है. नीदरलैंड के के उकेनहोफ़ में ट्यूलिप का दुनिया का सबसे बड़ा स्थायी प्रदर्शनी का आयोजन होता है.

ट्यूलिप का वैज्ञानिक नाम ट्यूलिपा है. ट्यूलिप को गार्डन का राजा कहा जाता है, ऐसे में ट्यूलिप गार्डन और इन्हीं बागों मे ट्यूलिप फेस्टिवल मनाया जाता है. लयूटेन्स दिल्ली के लगभग गोलचक्करों पर आपको ट्यूलिप से सजे छोटे-छोटे गार्डन देखने को मिल जाएंगे. भारत जी-20 सम्मेलन का आयोजन कर रहा था जिसमें इसका मुख्य केंद्र दिल्ली ही था, ऐसे में ट्यूलिप गार्डन ने दिल्ली की सुंदरता में चार-चाँद लगा दिए थे. लयूटेन्स दिल्ली में ट्यूलिप की यात्रा वर्ष 2017 मे शुरू हुई थी, 2017 मे ट्यूलिप बल्ब हॉलैन्ड से आयात किए गए थे. जिसमे से 18000 प्री-ट्रीटेड ट्यूलिप बल्ब एक्सपोर्ट किए थे. वहीं इस साल दिल्ली नगर परिषद ने 1.26 लाख ट्यूलिप बल्ब हॉलैन्ड से मंगाए थे.

कश्मीर में है ट्यूलिप के बाग

इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्यूलिप गार्डन जम्मू कश्मीर में स्थित है. 74 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ यह एशिया का सबसे बाद ट्यूलिप गार्डन है. 2007 में कश्मीर के पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से खोल गया था. एम्स्टर्डम से उस वर्ष करीब 1.5 लाख ट्यूलिप के बल्ब लाए गए थे, कश्मीर का यह ट्यूलिप गार्डेन करीब 68 किस्मों के ट्यूलिप का घर है.

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शांतिपथ पर लगाए आयोजित हुआ ट्यूलिप फेस्टिवल

शांतिपथ चाणक्यपुरी नई दिल्ली का डिप्लोमैटिक ऐवन्यू है लगभग सारे बड़े देशों की एम्बसी इसी रोड पर स्थित है जैसे की चीन, अमेरिका, पाकिस्तान, सर्बिया, आदि. 1950 के कुछ सालों बाद शांतिपथ को बनाया गया था, यह रोड अपने दोनों तरफ से हरियाली से घिरी हुई है. इसी रोड पर इस बार नई दिल्ली ट्यूलिप फेस्टिवल का आयोजन हुआ है.

content by :- Vaibhav Dwivedi

 

 

 

 

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