त्रिपुरा चुनाव: 20 आदिवासी सीटें होंगी जीत की चाबी

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आदिवासी बाहुल्य त्रिपुरा में चुनाव प्रचार थम गया है। 25 सालों से प्रदेश की सत्ता पर काबिज लेफ्ट और पूर्वोत्तर में अपनी पकड़ बनाने को बेताब बीजेपी के लिए 20 आदिवासी सीटें सबसे महत्वपूर्ण रहने वाली हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को शांतिरबाजार में रैली की।बता दें कि 60 विधानसभा वाले त्रिपुरा की 59 सीटों पर 18 फरवरी को वोटिंग होनी है। सीपीएम प्रत्याशी रामेंद्र नारायण के निधन के कारण चारीलाम विधानसभा सीट पर अब 12 मार्च को मतदान होगा।

जमीनी स्तर पर बीजेपी मजबूत

फिलहाल त्रिपुरा में आदिवासी बहुल 20 सीटों पर लेफ्ट का कब्जा है। 2013 में आदिवासियों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने नैशनलिस्ट पार्टी ऑफ त्रिपुरा (आईएनपीटी) से गठबंधन किया लेकिन नतीजा शून्य ही रहा। 2013 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 1.87 पर्सेंट वोट मिले थे लेकिन 2014 के बाद से लगातार मेहनत करके बीजेपी ने अपना संगठन मजबूत कर लिया है।

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बीजेपी के सहयोगी संगठन ने भी शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में काम करके अपनी पकड़ बनाने की कोशिश की है। 2015 में हुए जिला पंचायत चुनावों में मिली सफलता से भी बीजेपी के हौसले आसमान पर हैं। त्रिपुरा के सीएम माणिक सरकार कहते हैं, ‘राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों की हालत अन्य राज्यों की अपेक्षा काफी बेहतर है। यही लोग राज्य की रीढ़ हैं। आदिवासी समुदाय से आने वाले दशरथ देब्रामा जैसे लोग राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। राज्य में एकता को किसी नेता और पार्टी द्वारा तोड़ा जाना संभव नहीं है। राज्य का विभाजन चाहने वाले लोगों के साथ बीजेपी ने गठबंधन किया है।’

सीपीएम ने बीजेपी को कोसा

सीपीएम बीजेपी पर विभाजनकारियों के साथ होने का आरोप लगा रही है। सीपीम का कहना है कि आईपीटीएफ से गठबंधन करने से पहले गृहमंत्री राजनाथ सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एनसी देबबर्मा की मुलाकात हुई थी। इस पर देबबर्मा का कहना है, ‘त्रिपरालैंड की हमारी मांग को देखते हुए गृहमंत्री ने वादा किया है कि वह एक उच्च स्तरीय मंत्री लेवल की टीम बनाएंगे जो इसका विश्लेषण करेगी। तीन महीने में यह कमिटी अपनी रिपोर्ट सौंप देगी।’

NBT

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