143 करोड़ में बिकी टीपू सुल्तान की ‘सुखेला’, तलवार ने तोड़े नीलामी के रिकॉर्ड, जानिए क्यों खास है ‘सुखेला’

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18वीं सदी में दुश्मनों की छाती भेदने वाली सदियों पुरानी ‘सुखेला ‘तलवार दोबारा नीलाम हो गई। ‘मैसूर का टाइगर’ कहे जाने वाले शासक टीपू सुल्तान की तलवार सुखेला लंदन में 143 करोड़ में नीलाम हुईहै। इसे इस्लामी और इंडियन आर्ट्स ने खरीदा है। अब टीपू सुल्तान की सोने और रत्न से जड़ी तलवार भारत की आर्ट्स गैलरी की शोभा बढ़ाएगी। आईए जानते हैं इस तलवार की खासियत के बारे में….

143 करोड़ में बिकी टीपू सुल्तान की तलवार

दरअसल, लंदन में मैसूर के 18वीं सदी के शासक टीपू सुल्तान के निजी कक्ष से तलवार मिली थी। जिसकी नीलाम करने की घोषणा की गई थी। लंदन में जब तलवार की नीलामी हुई तो नीलामी की सभी रिकॉर्ड टूट गए। टीपू सुल्तान की तलवार 143 करोड़ में बिकी है।

तलवार ने तोड़े नीलामी के रिकॉर्ड

टीपू सुल्तान की सुखेला तलवार लंदन में इसी सप्ताह नीलाम हुई है। यह तलवार इस्मलामी और भारतीय कला बिक्री में 14 मिलियन पाउंड में नीलाम हुई है। यह एक भारतीय और इस्लामी वस्तु के लिए एक नया नीलामी विश्व रिकॉर्ड है। भारतीय रुपयों के हिसाब से इसकी कीमत लगभग 143 करोड़ रुपये होगी। इस तलवार की बिक्री ने नीलामी के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।

इससे पहले 2003 में हुई थी नीलाम

साल 1799 में उनके मौत के बाद तकरीबन 220 साल तक ये तलवार कहा थी इसका किसीको पता नही था। बाद में उनकी यह तलवार 2003 में 21 करोड में नीलाम हुई थी। इस तलवार का वजन 7 किलो 400 ग्राम है।

तलवार की खासियत

टीपू की तलवार की धार इतनी सख्त और पैनी थी कि वह दुश्मन के लौह-कवच को भी आसानी से चीर सकती थी। इस तलवार में यह गुण कार्बन की अधिक मात्रा वाली वुट्ज नामक स्टील से पैदा हुआ था। टीपू सुल्तान की इस बेशकीमती तलवार में सोना और रत्न जड़े हुए हैं। इसका वजन क़रीब 7 किलो है। 93 सेंटीमीटर लंबी ये तलवार बेहद दुर्लभ तलवार है, जिसकी कांसे की मूठ पर बाघ का सिर बना हुआ है। इस तरह की बाघ के सिर वाले मूठ की तलवारें बेहद कम हैं और मूठ पर बाघ का निशान होने का मतलब ये समझा जाता है कि ये तलवार टीपू सुल्तान की निजी तलवारों में रही होंगी।

तलवार की नक्काशी

साल 1782 से 1799 तक शासन करने वाले टीपू सुल्तान की तलवार को ‘सुखेला’ सत्ता का प्रतीक कहा जाता है। टीपू सुल्तान की यह तलवार स्टील की है और इस पर सोने से बेहतरीन नक्काशी की गई है। सोहलवीं शताब्दी में भारत में पेश किए गए जर्मन ब्लेड के मॉडल के बाद मुगल तलवार निर्माताओं ने इसे बनाया था। शिल्पकारों ने तलवार को पकड़ने वाली जगह पर बड़े ही सहजता से सोने से अदाकारी दिखाई है।

टीपू सुल्तान की तलवार में क्या लिखा था

बताया गया है कि टीपू की औपचारिक तलवार पर निम्नलिखित शिलालेख था: “मेरी विजयी कृपाण अविश्वासियों के विनाश के लिए बिजली है।” लेकिन इतिहास इस बात का भी गवाह है कि टीपू ने कुछ और ही किया।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने डेविड बेयर्ड को भेंट की थी तलवार

ईस्ट इंडिया कंपनी ने हमले में उनके साहस और आचरण के प्रति अपने उच्च सम्मान के प्रतीक के तौर पर यह तलवार जनरल डेविड बेयर्ड को भेंट की थी। बता दें कि इसी हमले में टीपू सुल्तान की मौत हो गई थी जिन्हें ‘टाइगर ऑफ मैसूर’ के नाम से जाना जाता है। यह हमला मई 1799 में हुआ था।

नीलामी में तलवार का मूल्य

सूत्रों के मुताबिक, तलवार का मूल्य 1,500,000 और 2,000,000 जीबीपी के बीच था लेकिन इसे अनुमानित तौर पर 14,080,900 में बेचा गया, अगर इसकी कीमत रुपयों में परिवर्तित करेंगे तो यह तकरीबन 115 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की होगी। इस्लामिक और भारतीय कला की समूह प्रमुख नीमा सागरची ने कहा कि तलवार का असाधारण इतिहास और बेजोड़ शिल्प कौशल है। समूह प्रमुख ने कहा कि फोन के जरिए दो लोगों ने बोली लगाई, जबकि कक्ष में मौजूद एक व्यक्ति ने बोली लगाई और उनके बीच गर्मजोशी से मुकाबला हुआ। साल 1799 के मई में टीपू सुल्तान का शाही गढ़ श्रीरंगपट्ट्नम तबाह होने के बाद उनके महल से कई हथियारों को हटाया गया था। इसमें कुछ हथियार उनके बेहद करीब माने जाते थे।

 

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