शहर चला है गांव की ओर, ऐसा क्‍यों ?

शहर चला है गांव की ओर, ऐसा क्‍यों ?

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वाराणसी से देवेन्‍द्र सिंह

भदोही के अमवां गांव के रहने वाले जितेन्द्र मुम्बई में परिवार के साथ रहते हैं। उनके चाचा ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए परिवार समेत गांव आ गए हैं। चौबेपुर के मोकलपुर के प्रधान बबलू भी अपने एक परिचित को चुनाव लड़ा रहे हैं। उन्होंने दिल्ली और मुम्बई में रहने वाले परिवार के लोगों को गांव में बुलाने का इंताजम कर लिया है।

जक्खनिया के प्रधान अंटू सिंह भी चुनावी मैदान में हैं। बनारस से उनके भाई परिवार समेत गांव आ गये हैं। ये तो सिर्फ बानगी भर है शहरों में रहने वाले बहुत से लोग इन दिनों अपने गांव की ओर लौट रहे हैं। ऐसा नहीं है कि महानगरों में काम मिलना बंद हो गया है, बात यह है कि पचांयत चुनाव होने वाले हैं।

गांवों की सरकार चुनी जानी है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की डेट तो अभी डिक्लेयर नहीं हुई है लेकिन आरक्षण सूची जारी होने के बाद यह तो लगभग क्लीयर हो ही गया कि चुनावी अखाड़े में कौन खम ठोक पाएगा और कौन अखाड़े के बाहर से अपने पहलवान लड़ाएगा। इसके साथ ही महानगरों में बसे गांव के लोगों की पूछ बढ़ गयी है।

इनमें किसी के परिवार के सदस्य इलेक्शन लड़ रहे हैं तो किसी के रिश्तेदार। बात अपनों की हो तो भला कोई इतना खुदगर्ज कैसे हो सकता है। तो दूर-दराज वाले ट्रेनों में और नजदीक वाले बसों में बैठकर चल पड़े हैं अपने गांवों की तरफ। चुनाव के बहाने ही सकी इन प्रवासियों के आने से गांवों में रौनक आने लगी है। घर-दुआर से लेकर चट्टी-चौराहे तक चुनावी चकल्लस चल रही है।

सारा इंतजाम जो मुफ्त का हो रहा-

तीन स्‍तरीय पंचायत चुनाव में सीटों के सीन लगभग क्लीयर हो गए हैं। आरक्षण पर आपत्ति मिलने के बाद इसका निस्तारण हो रहा और 15 मार्च तक फाइनल लिस्ट आ जाएगी। वर्तमान लिस्ट से बदलाव की संभावना कम ही है। ऐसे में कौन सी सामान्य, कौन महिला और कौन पिछड़, अतिपिछड़ा होगी यह सबको पता चल गया है।

इसके साथ ही चुनावी मैदान में ताल ठोकने वाले अपने-अपने दांव की तैयारी में जुट गए हैं। वोटों का कैलकुलेशन भी शुरू हो चुका है वोटों के ठेकेदार भी सक्रिय हो गए हैं। प्रत्याशी सुबह से लेकर देर रात तक गांव के घर-घर पहुंचकर दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। पोस्टर-बैनर से लेकर सोशल मीडिया पर माहौल बनाने लगे हैं।

एक-एक वोट कीमती है इसलिए दूसरे शहरों में रहने वाले गांव के वोटर्स को भी रिझाने का काम जारी है। प्रत्याशी किसी भी हाल में उनका वोट चाहते हैं इसलिए उनके घर आने और इलेक्शन के बाद वापस जाने का पूरा इंतजाम कर रहे हैं। ट्रेनों में रिजर्वेशन कराया जा रहा है।

होली का मिला बहाना-

इस बार होली मार्च महीने से अंतिम वीक में है। जब तक होली आएगी तब तक गांवों में चुनाव का रंग पूरी तरह से चढ़ चुका होगा। इसका फायदा घर से दूर रहने वालों को भी मिलेगा। भले ही भावी प्रत्याशी के बुलावे पर वो वोट देने के लिए महानगरों से अपने घर आएंगे लेकिन उन्हें परिवार के साथ रंगों का त्योहार मनाने का मौका भी मिल जाएगा।

स्कूल-कालेज में बच्चों के एग्जाम खत्म हो चुके होंगे तो देर तक रुकने का बेहतर मौका भी मिल जाएगा। खास बात यह कि वेडिंग सीजन होने का फायदा भी मिलेगा। नाते-रिश्तेदारों से लेकर पास-पड़ोस की शादियां भी निबटा लेंगे। महानगरों में रहने वाले जिन गंवई परिवारों में वोट ज्यादा और उनकी व्यस्तता भी ज्यादा हैं भावी प्रत्याशी उनके लिए प्लेन के टिकट का इंतजाम भी कर रहे हैं। ताकि वो वोट देने आएं और अपने काम नुकसान किए बिना लौट जाएं।

वाराणसी जिला पंचायत एक नजर-

-वाराणसी जिला पंचायत के 48 वार्ड थे, जिसमें से 8 वार्ड खत्म कर दिए गए हैं। इस बार 40 पर चुनाव होगा। इनमें से 16 सीटें आनरक्षित हैं।

-प्रधान के कुल 694 सीटों पर चुनाव होगा। इनमें से 243 सीटें आनरक्षित हैं। पिछली बार 760 सीटों पर चुनाव हुआ था।

-67 ग्राम सभा शहरी सीमा में शामिल हो गए हैं।

-पांच सालों में दो लाख आबादी शहरी हुई है।

-वाराणसी में ब्लाक प्रमुख की आठ सीटें हैं इनमें से 3 अनारक्षित हैं। वर्तमान में 1199 क्षेत्र पंचायतों में से 1007 ही रह गए हैं।

-पंचायत चुनावों में 2935254 वोटर्स अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।

इनमें पुरुष की संख्‍या 1612783 है। वहीं महिला वोटर्स की संख्‍या 1322314 है।

थर्ड जेंडर वोटर्स की संख्‍या 148

लाखों की आबादी रहती है महानगरों में-

पूर्वांचल की बड़ी आबादी महानगरों में रहती है। रोजी-रोटी के तलाश में बनारस, भदोही, आजमगढ़, जौनपुर, मिर्जापुर, चंदौली, गाजीपुर, बलिया, मऊ आदि जिलों के करीब दस लाख लोग मुम्बई, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल में रहकर काम करते हैं और अपने परिवार का पेट पालते हैं।

इनमें से ज्यादातर फैक्ट्री आदि में लेबर का काम करते हैं। उनके पास हर मौके पर अपने घर आने के लिए रुपये नहीं होते हैं। कोरोना काल में लाकडाउन में हुए पलायन के बाद एक बार फिर बड़ी मुश्किल से खुद को जमा पा रहे हैं। एसे में खुद के रुपये खर्च करके तो घर आने से रहे। अब आने-जाने के लिए टिकट का इंतजाम हो जाए तो उन्हें आने में कोई परेशानी नहीं है।

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