वाराणसी. इस वर्ष वसंत पंचमी (3 फरवरी) पर तीन विशेष योग बन रहे हैं, जो इसे और अधिक शुभ और फलदायी बनाएंगे. इस दिन सर्वसिद्धि योग, रवि योग और यायीजय योग का संयोग रहेगा. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, वसंत पंचमी को स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है, इसलिए इस दिन शुभ कार्यों के लिए पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं होती. पंचमी तिथि 2 फरवरी को दोपहर 11:53 बजे से प्रारंभ होकर 3 फरवरी की सुबह 9:36 बजे तक रहेगी. इसी कारण वसंत पंचमी का पर्व 3 फरवरी को मनाया जाएगा.
योगों का विशेष प्रभाव
सर्वसिद्धि योग: सभी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए अत्यंत फलदायी.
रवि योग: ज्ञान, विद्या और नए कार्यों की शुरुआत के लिए श्रेष्ठ.
यायीजय योग: विशेष सफलता और उन्नति देने वाला योग.
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वसंत पंचमी का महत्व
भगवद गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है, “ऋतूनां कुसुमाकरः”, अर्थात ऋतुओं में वसंत ऋतु ही श्रेष्ठ है. वसंत को ऋतुओं का राजा माना जाता है, जो प्रकृति की जीवंतता, देवी सरस्वती की भक्ति और कृषि समुदाय के उल्लास को एक साथ जोड़ता है. इस समय फसलें लहलहाने लगती हैं, खेतों में सरसों के पीले फूल खिलते हैं, और कोयल की कूक वसंत के आगमन की घोषणा करती है. किसान इस दिन जौ और गेहूं की बालियों का हवन कर समृद्धि की कामना करते हैं. माघ माह में जब वसंत ऋतु का आगमन होता है, तब इसके पांचवें दिन यह पर्व मनाया जाता है.
पौराणिक महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ था. वे विद्या, कला और बुद्धि की देवी मानी जाती हैं, इसलिए इस दिन विशेष रूप से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है.
वसंत पंचमी के दिन ज्ञान, संगीत और रचनात्मकता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लोग मां सरस्वती की आराधना करते हैं. शास्त्रों के अनुसार इस दिन पीले वस्त्र धारण करना और पीले पकवान बनाना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह रंग खुशी, समृद्धि और ऊर्जा का प्रतीक है. शिक्षार्थियों को इस दिन माता सरस्वती का पंचोपचार और षोडशोपचार विधि से पूजन करना चाहिए.
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वसंत पंचमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि नवीन ऊर्जा, नई उमंग और नई शुरुआत का प्रतीक है. यह दिन बताता है कि जीवन में ज्ञान, प्रकृति और उल्लास का अद्भुत संतुलन ही सच्ची समृद्धि का आधार है. जो भी व्यक्ति श्रद्धा भाव से इस दिन मां सरस्वती की आराधना करता है, उसे ज्ञान, बुद्धि और विद्या की विशेष कृपा प्राप्त होती है.