वाराणसी: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) सहित सात अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक आनुवंशिक शोध में यह स्पष्ट हुआ है कि भारत की कुरुख (उरांव) जनजाति और पाकिस्तान की ब्राहुई जनजाति के बीच कोई आनुवंशिक संबंध नहीं है. यह अध्ययन 150 वर्षों से चली आ रही इस धारणा को चुनौती देता है कि ब्राहुई और कुरुख भाषा बोलने वाले लोग एक ही पूर्वजों से संबंधित हैं. शोध में पाया गया कि भले ही दोनों समुदायों की भाषाओं में समानताएं देखी जाती हैं, लेकिन आनुवंशिक रूप से ये पूरी तरह भिन्न हैं.
बीएचयू के प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे और बांग्लादेश के ढाका विश्वविद्यालय की डा. नूरुन नाहर गाजी सुल्ताना के नेतृत्व में किए गए इस शोध में 248 व्यक्तियों का जेनेटिक डेटा तैयार किया गया. अध्ययन के लिए साढ़े छह लाख आनुवंशिक मार्करों (Genetic Markers) का उपयोग किया गया, ताकि डीएनए में मौजूद म्यूटेशन और हेप्लोटाइप (Mutation & Haplotype) पैटर्न को समझा जा सके.
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ब्राहुई और उरांव के डीएनए में कोई समानता नहीं
शोध से स्पष्ट हुआ कि ब्राहुई और कुरुख-भाषी उरांव जनजाति के डीएनए में कोई समानता नहीं है. ब्राहुई समुदाय अपने आसपास के बलूच और अन्य पाकिस्तानी समूहों के साथ आनुवंशिक रूप से अधिक मेल खाते हैं, जबकि उरांव समुदाय का डीएनए भारतीय मुंडारी (आस्ट्रो-एशियाटिक) जनजातियों से अधिक जुड़ा हुआ है.
शोध के प्रथम लेखक डॉ. प्रज्ज्वल प्रताप सिंह ने बताया कि लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि ब्राहुई और अन्य द्रविड़ समुदायों के बीच भाषाई संबंधों का कोई ऐतिहासिक आधार है, लेकिन इस अध्ययन में यह धारणा गलत साबित हुई है.
उरांव और मुंडारी जनजातियों में मिली आनुवंशिक समानता
प्रसिद्ध भाषा विशेषज्ञ प्रो. जॉर्ज वैन ड्रिम के अनुसार, यह पहली बार है जब उरांव जनजाति का डीएनए डेटा तैयार किया गया है. निष्कर्ष बताते हैं कि उरांव जनजाति का भारतीय मुंडारी समुदाय (उत्तरी मुंडा और दक्षिणी द्रविड़ जनजातियों) से गहरा आनुवंशिक संबंध है.
इसके अलावा, अध्ययन में यह भी पाया गया कि उरांव जनजाति के लोग बांग्लादेश में रहने वाली जनजातियों से भी मेल खाते हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि ऐतिहासिक रूप से उरांव जनजाति के कुछ समूह भारत से बांग्लादेश की ओर प्रवास कर चुके हैं.
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पुरातत्वीय निष्कर्षों को भी चुनौती
प्रसिद्ध पुरातत्वविद् प्रो. वसंत शिंदे ने कहा कि इस शोध के निष्कर्ष भारतीय उपमहाद्वीप की भाषाई संरचना को लेकर बनी पुरानी धारणाओं को चुनौती देते हैं. सिंधु घाटी सभ्यता की भाषा को अब तक द्रविड़ परिवार से जोड़ा जाता था, लेकिन यह अध्ययन इस पर नए सवाल खड़े करता है.
मुख्य निष्कर्ष:
- ब्राहुई और उरांव में कोई प्रत्यक्ष आनुवंशिक समानता नहीं मिली.
- ब्राहुई पश्चिम एशियाई और दक्षिण एशियाई आनुवंशिक प्रभावों से प्रभावित हैं.
- उरांव जनजाति भारतीय गोंड और मुंडा जनजातियों के करीब है, लेकिन ब्राहुई से नहीं जुड़ती.
- यह निष्कर्ष भाषा और आनुवंशिकी के बीच जटिल संबंधों को दर्शाता है.
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शोध अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित
यह अध्ययन प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल “ह्यूमन पॉपुलेशन जेनेटिक्स एंड जीनोमिक्स“ में प्रकाशित हुआ है. शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके निष्कर्ष इस बात का संकेत देते हैं कि ब्राहुई और उरांव के बीच पूर्व में यदि कोई संबंध था भी, तो पड़ोसी समुदायों के साथ अनवरत आनुवंशिक मिश्रण के चलते उसकी पहचान अब समाप्त हो चुकी है. इससे न केवल भाषाई इतिहास बल्कि दक्षिण एशिया की जनसंख्या संरचना को लेकर भी नई दृष्टि मिलती है.