170 साल पुराना है नोटों के ‘स्ट्रिप’ का इतिहास, यहां से हुई शुरुआत, जानें भारत में कब आई

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अपने अक्सर देखा होगा कि नोटों के बीच एक खास प्रकार का धागा लगा होता, जोकि एक खास तरीके से बनाया जाता है और फिर उससे नोटों के बीच फिक्स किया जाता है क्योकि ये करके यह नोटों की असलियत की जांच करने में अहम भूमिका निभाता है. यह एक तरह का मैटेलिक धागा होता है. इसका चलन एक तरह के सुरक्षा मानकों को ध्यान में रखकर शुरू हुआ.अगर आप देखें तो 500 और 2000 रुपए के नोट के अंदर जो चमकीला मैटेलिक धागा लगा होता है, उस पर कोड भी उभरे होते हैं यानि वो नोट के सुरक्षा मानकों को और मजबूत करता है. क्या आप जानते है ये आईडिया कहा से आया किसने इसकी शुरुआत की

दरअसल नोट के बीच मैटेलिक धागे को लगाने का आइडिया 1848 में इंग्लैंड में आया. इसका पेटेंट भी करा लिया गया लेकिन ये अमल में आ पाया इसके करीब 100 साल बाद ही जाकर. ये भी इसलिए किया गया कि नकली नोटों को छापे जाने से रोका जा सके. आप कह सकते हैं कि नोटों के बीच खास धागे को लगाए जाने के अब 75 साल पूरे हो रहे हैं.

इंग्लैंड ने सबसे पहले ‘मैटल स्ट्रिप’ का उपयोग किया…

‘द इंटरनेशनल बैंक नोट सोसायटी’ (IBNS) के अनुसार दुनिया में सबसे पहले नोटों के बीच ‘मैटल स्ट्रिप’ लगाने का काम बैंक ऑफ इंग्लैंड ने वर्ष 1948 में किया था. जब भी नोट को रौशनी में देखा जाता है तो उसमे काले रंग की लाइन नजर आती थी. माना गया कि ऐसा करने से क्रिमिनल नकली नोट बनाएंगे भी तो वो मैटल थ्रेड नहीं बना सकेंगे. हालांकि बाद में नकली नोट बनाने वाले नोट के अंदर बस एक साधारण काली लाइन बना देते थे और लोग मूर्ख बन जाते थे.

1984 में बैंक ऑफ इंग्लैंड ने 20 पाउंड के नोट में ब्रोकेन यानि टूटे से लगने वाले मेटल के धागे डाले यानि नोट के अंदर ये मैटल का धागा कई लंबे डैसेज को जोड़ता हुआ लगता था. तब ये माना गया कि इसकी तोड़ तो क्रिमिनल्स बिल्कुल ही नहीं निकाल पाएंगे. लेकिन नकली नोट बनाने वालों ने अल्यूमिनियम के टूटे धागों का सुपर ग्लू के साथ इस्तेमाल शुरू कर दिया. ये भी ज्यादातर नोट करने वालों के लिए पहचानना मुश्किल था.

मेटल की जगह ‘प्लास्टिक स्ट्रिप’ का इस्तेमाल…

हालांकि सरकारों ने भी नकली नोट बनाने वालों के सामने सेक्युरिटी धागे बनाने के मामले में हार नहीं मानी. बल्कि उन्होंने एक ऐसा सिस्टम विकसित किया, जिसमें मेटल की जगह प्लास्टिक स्ट्रिप का भी इस्तेमाल शुरू किया गया. 1990 में कई देशों की सरकारों से जुड़े केंद्रीय बैंकों ने नोट में सुरक्षा कोड के तौर पर प्लास्टिक थ्रेड का इस्तेमाल किया. साथ ही थ्रेड पर भी कुछ छपे शब्दों का इस्तेमाल शुरू हुआ. जिसकी नकल अब तक नहीं हो पाई.

23 वर्ष पहले भारत में आया तह १ हजार का नोट

वर्ष 2000 में भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) 1000 रूपए का नोट जारी किया, उसमें ऐसी थ्रेड का इस्तेमाल किया गया, जिसमें हिंदी में भारत, 1000 और आरबीआई लिखा था. अब 2000 के नोट की मैटेलिक स्ट्रिप ब्रोकेन होती है और इस पर अंग्रेजी में आरबीआई और हिंदी में भारत लिखा होता है. ये सब रिवर्स में लिखा होता है.इसी तरह के सेक्युरिटी फीचर्स 500 और 100 रुपए के नोट में भी इस्तेमाल किए जाते हैं.

05, 10, 20 और 50 रुपए के नोट पर भी ऐसी ही पढ़ी जाने वाली स्ट्रिप का इस्तेमाल होता है. ये थ्रेड गांधीजी की पोट्रेट के बायीं ओर की गई. इससे पहले रिजर्व बैंक जिस मैटेलिक स्ट्रिप का इस्तेमाल करता था, उसमें मैटेलिक स्ट्रिप प्लेन होती थी, उसमें कुछ लिखा नहीं था.आमतौर पर बैंक जो मैटेलिक स्ट्रिप का इस्तेमाल करते हैं वो बहुत पतली होती है, ये आमतौर पर M या एल्यूमिनियम की होती है या फिर प्लास्टिक की.

भारतीय करेंसी में दो रंग की ‘मैटेलिक स्ट्रिप’…

हालांकि भारत में नोटों पर मैटेलिक स्ट्रिप का इस्तेमाल काफी देर से शुरू किया गया, लेकिन आप जब भी हमारे देश के करेंसी नोटों पर इस मैटेलिक स्ट्रिप को देखेंगे तो ये दो रंगों की नजर आएगी. छोटे नोटों पर ये सुनहरी चमकदार रहती है तो 2000 और 500 के नोटों की ब्रोकेन स्ट्रिप हरे रंग की होती है. हालांकि कुछ देशों के नोटों पर इस स्ट्रिप के रंग लाल भी होते हैं. भारत के बड़े नोटों पर जिस मैटेलिक स्ट्रिप का इस्तेमाल होता है वो सिल्वर की होती है.

बता दें कि दुनिया में कुछ ऐसी कंपनियां है जो इस तरह के ‘मैटेलिक स्ट्रिप’ को तैयार करती हैं. और मन जाता है कि भारत होनी करेंसी के लिए इस स्ट्रिप को बहार से मंगाता है. इस मैटेलिक स्ट्रिप को खास तकनीक से नोटों के भीतर प्रेस किया जाता है. जब आप इन्हें रोशनी में देखेंगे तो ये स्ट्रिप आपको चमकती हुई नजर आएंगी.

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