सैकड़ों ‘पॉर्न वेबसाइट्स’ पर बैन

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भारत सरकार की तरफ से 827 पॉर्न वेबसाइट्स बैन करने का फैसला इनके यूजर्स और नेट न्यूट्रैलिटी के पैरोकारों को रास नहीं आ रहा है। खासकर उन लोगों को जिन्होंने इन वेबसाइट्स की ऐनुअल सब्सिक्रिप्शन ले रखी है। हालांकि पॉर्न साइट्स के दिग्गजों की तरफ से अपने ग्राहकों के लिए कुछ इंतजाम भी किए गए हैं।

अमेरिका और ब्रिटेन के बाद अपने तीसरे सबसे बड़े बाजार भारत के लिए पॉर्न हब जैसी दिग्गज वेबसाइट ने एक नई मिरर साइट बनाई है। इसी तरह एक वेबसाइट अब अपने यूजर्स को मोबाइल ऐप डाउनलोड करने की सलाह दे रही है।

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मोबाइल इंटरनेट प्रोवाइडर जियो ने भी अपने नेटवर्क पर इन वेबसाइट्स को बैन कर दिया है। इस कदम के बाद जियो के साथ-साथ एयरटेल और वोडाफोन के भी कस्टमर केयर पर लोगों की लगातार कॉल आ रही हैं। लोगों ने ट्विटर पर हैशटैग #pornban का सहारा लेकर अपनी बात रखी है। यूजर्स का कहना है कि भारत में उठाया गया कदम नेट न्यूट्रैलिटी के खिलाफ जाता है जो किसी भी कंटेंट प्रोवाइडर को किसी तरह के भेदभाव से बचाता है।

प्रेजिडेंट कोरी प्राइस का बयान भी सामने आया है

यूजर्स का कहना है कि सरकार को चाइल्ड पॉर्न, रेप पॉर्न और BDSM (बॉन्डेज, डिसिप्लीन, सैडिज्म और मासोकिज्म) जैसी चीजों के खिलाफ ऐक्शन लेना चाहिए। ऐसी पॉर्न साइट्स के खिलाफ नहीं जो बेहतर कंटेंट के लिए जानी जाती हैं। इस मामले में पॉर्नहब के वाइस प्रेजिडेंट कोरी प्राइस का बयान भी सामने आया है। उनका कहना है कि केवल पॉर्नहब जैसी बड़ी साइट्स बैन की गई हैं जबकि हजारों रिस्की साइट्स जिनपर अवैध कंटेंट भी हो सकते हैं, उन्हें ब्लॉक नहीं किया गया।

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उन्होंने आगे कहा कि भारत में पॉर्नग्रफी और निजी तौर पर अडल्ट कंटेंट देखने के खिलाफ कोई कानून नहीं है। उन्होंने कहा कि साफ है कि भारत सरकार हमारी साइट्स को बलि का बकरा बना रही है। मद्रास हाई कोर्ट के वकील पीके राजगोपाल का कहना है कि एक परिपक्व लोकतंत्र में यह फैसला दर्शकों पर छोड़ देना चाहिए कि उन्हें क्या देखना है। उन्होंने कहा कि चाइल्ड पॉर्न या हिंसक कंटेंट को बैन करना समझ में आता है लेकिन न्यूडिटी या पॉर्न पर बैन मोरल पुलिसिंग है। उन्होंने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राइट टू कंजम्शन अनुच्छेद 19 के तहत सुरक्षित है।

पॉर्न और महिलाओं के खिलाफ अपराध में एक संबंध स्थापित किया

हालांकि पॉर्न साइट्स पर लगे बैन के समर्थक भी हैं जो उन स्टडीज का हवाला दे रहे हैं जिनके आधार पर पॉर्न और महिलाओं के खिलाफ अपराध में एक संबंध स्थापित किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील ए सिराजुद्दीन का कहना है कि ऐसी कई स्टडीज हैं जो दिखाती हैं कि पॉर्न की लत महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के लिए प्रेरित कर सकती है।

उन्होंने कहा कि सरकार ने यह कदम लोगों के हित में उठाया होगा। उन्होंने नेट न्यूट्रैलिटी लॉ को स्वीकार करते हुए कहा कि पूर्ण तटस्थता और पूर्ण गैर हस्तक्षेप संभव नहीं। वरिष्ठ वकील ने कहा कि अगर सरकार किसी चीज को लेकर चिंतित है तो उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।  साभार

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