गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है वाराणसी के बरेका में रावण परिवार का पुतला
वाराणसी के बनारस रेल इंजन कारखाना के खेल मैदान में पूर्वांचल का सबसे बड़ा रावण, कुंभकरण और मेघनाद का पुतला दहन किया जाता है.
काशी सहित पूरे देश में दशहरा के अवसर पर रावण दहन को लेकर तैयारी जोरशोर से चल रही है. कई दशकों से वाराणसी के बनारस रेल इंजन कारखाना के खेल मैदान में पूर्वांचल का सबसे बड़ा रावण, कुंभकरण और मेघनाद का पुतला दहन किया जाता है. इस दौरान लाखों की संख्या में लोग इस खेल मैदान में इस दृश्य को देखने के लिए दूर-दूर से पहुंचते हैं. खास बात यह है कि यह पुतले गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल हैं.
75 फुट का रावण का पुतला बनेगा आकर्षण का केंद्र
वाराणसी के बरेका मैदान में रामलीला को अलग रंग देने की तैयारी में लोग लगे हुए हैं. मैदान में जलने वाले रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतलों के निर्माण की जिम्मेदारी हर वर्ष की तरह इस बार भी मुस्लिम परिवारों को हाथ में है. दशहरे के दिन डीजल रेल इंजन कारखाना के मैदान में लगने वाले मेले से पहले अपने नाना मरहूम बाबू खां की पंरपरा को आगे बढ़ा रहे शमशाद अपने परिवार और दर्जनों मुस्लिम कारीगरों के साथ रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले को आकार देने में जुटे हैं. शमशाद के मुताबिक इस बार दशहरा के दिन डीरेका में लगा 75 फीट ऊंचा रावण अपने कुनबे सहित मेले में आकर्षण का केंद्र बनेगा.
मुस्लिम परिवार तीन पुश्तों से बना रहा पुतला
देश की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी के रामलीला में गंगा जमुनी तहजीब की एक अनोखी तस्वीर पेश की जाती है. बनारस रेल इंजन कारखाना के खेल मैदान में दशहरा के दिन जलने वाले रावण के पुतले का निर्माण भी तमाम मुस्लिम परिवारों के लोग ही करते हैं. यह मुस्लिम परिवार केवल अब से नहीं पिछले तीन पुश्तों से इन तीनों पुतलो का निर्माण करते चले आ रहा है.
इन विशाल पुतलों में रावण कुंभकरण और मेघनाथ का पुतला होता है. यहां पर रावण के पुतलों की देखने के लिए लाखों की संख्या में लोग इस मैदान में इकट्ठे होते हैं. इस दृश्य को देखने के लिए लोगों को साल भर इंतजार रहता है.
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पुतला बनाने का समस्त कार्य उनके परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है. बांस को बांधना हो कागज चिपकाने हो. साड़ी चिपकाना हो या उसे अलग-अलग रंगों में रंगना हो. इसके साथ ही रावण कुंभकरण और मेघनाथ में विविध प्रकार के पटाखे लगाने का कार्य भी किया जाता है।
पुतले बनाने में कौन-कौन सी और कितनी सामग्री होती है इस्तेमाल
शमशाद के मुताबिक पुतलों के निर्माण में 100 – 150 बांस, 10 बल्ली, 150 – 200 पीस (कपड़ा) साड़ी, 150 किलो मैदा, 150 किलो कागज, 150 किलो रंग और 1 क्विंटल विशेष प्रकार के तांत का प्रयोग किया जा रहा है. पुतलों के अंदर 50 आवाज के पटाखे होंगे. इस पर करीब तीन लाख का खर्च आया है. दो सौ मीटर दूर बने मंच से आग का गोला रावण की नाभी में लगते ही रावण जल उठता है.
लीला मंचन के दौरान होता हैं कई भाषाओं का प्रयोग
खास यह कि रामलीजा के संवादों में अब तक संगीत की सिर्फ 12 विधाओं का प्रयोग किया जाता था. इस बार कजरी, सोहर, निर्गुण, चैती, कहरवा, छपरहिया और भोजपुरी भाषा के साथ ही मैथिली एवं होरी को भी जोड़ा गया है. साथ-साथ रामलीला का समय भी बढ़ाकर तीन घंटे कर दिया गया है.
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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के व्यक्तित्व से प्रभावित है शमशाद
रावण सहित अन्य पात्रों का पुतला बना रहे शमशाद ने कहा कि ”विजयदशमी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और हम सभी यह मानते हैं कि समाज से कई बुराइयों को दूर करने की आवश्यकता है. इसके लिए जरूरी है कि हम सभी प्रभु श्री राम के व्यक्तित्व का अनुसरण करें, उनके बताए हुए मार्गों पर चलने का प्रयास करें.