मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्‍लाम का अटूट हिस्‍सा नहीं : SC

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अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला पढ़ा जा रहा है। तीन जजों की बेंच में से सबसे पहले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा व जस्टिस अशोक भूषण ने संयुक्त फैसला सुनाते हुए कहा कि पुराना फैसला उस वक्‍त के तथ्‍यों के मुताबिक था। इस्‍माइल फारूकी का फैसला मस्जिद की जमीन के मामले में था।

मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्‍लाम का अटूट हिस्‍सा नहीं

जस्टिस भूषण ने कहा कि फैसले में दो राय, एक मेरी और एक चीफ जस्टिस की, दूसरी जस्टिस नजीर की. मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्‍लाम का अटूट हिस्‍सा नहीं। पूरे मामले को बड़ी बेंच में नहीं भेजा जाएगा। इस्‍माइल फारूकी के फैसले पर दोबारा विचार की जरूरत नहीं। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 29 अक्‍टूबर में राम मंदिर मामले पर सुनवाई शुरू होगी। चीफ जस्टिस और जस्टिस भूषण के बाद में जस्टिस अब्दुल नज़ीर अलग फैसला सुनाएंगे।

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दरअसल, कोर्ट को यह फैसला करना था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं और क्या इस मसले को बड़ी संवैधानिक बेंच को भेजा जाए। दरअसल, राम जन्मभूमि मामले में 1994 के इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार के लिए मामले को संविधान पीठ भेजने की मांग वाली मुस्लिम पक्षों की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा।

पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजे जाने की मांग की थी

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्‍दुल नजीर की पीठ इस पर अपना अहम फैसला सुना रही है। मुस्लिम पक्षों ने नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का जरूरी हिस्सा न बताने वाले इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है। इससे पहले मुस्लिम पक्षकारों ने फैसले में दी गई व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए मामले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजे जाने की मांग की थी।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 1994 में अयोध्या में भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाले डॉक्‍टर एम. इस्माइल फारुकी के मामले में 3-2 के बहुमत से दी गई व्यवस्था में कहा था कि नमाज के लिए मस्जिद इस्लाम धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है। मुसलमान कहीं भी नमाज अदा कर सकते हैं। यहां तक कि खुले में भी नमाज अदा की जा सकती है। मुस्लिम पक्षकार एम. सिद्दीकी के वकील राजीव धवन ने गत 5 दिसंबर को इस फैसले पर सवाल उठाते मामला पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने की मांग की है। साभार

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