स्वच्छ भारत मिशन फेज-2 किया गया लांच, शहरों में कूड़े के पहाड़ पूरी तरह से हटाए जाएंगे

भारत ने स्वच्छ भारत मिशन के भाग दो का शुभारंभ कर दिया है। प्रधानमंत्री का कहना है कि इसका उद्देश्य भारत के शहरों को कचरा मुक्त बनाना है।

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भारत ने स्वच्छ भारत मिशन के भाग दो का शुभारंभ कर दिया है। प्रधानमंत्री का कहना है कि इसका उद्देश्य भारत के शहरों को कचरा मुक्त बनाना है। कार्यक्रम की घोषणा कर उन्होंने कहा, स्वच्छता के दूसरे चरण के हिस्से के रूप में शहरों में कचरे के पहाड़ों को पूरी तरह से हटा दिया जाएगा। ऐसा ही एक कचरा पहाड़ दिल्ली में है, इसे भी हटाने का इंतजार है।

1999 से शुरू हुआ स्वच्छता कार्यक्रम:

1999 में, वाजपेयी सरकार ने शौचालय उपलब्ध कराने के उद्देश्य से स्वच्छता कार्यक्रम शुरू किया। 2012 में, कार्यक्रम को निर्मल भारत अभियान कहा गया था। 2014 में इसका नाम बदलकर स्वच्छ भारत अभियान रखा गया था। जब प्रधानमंत्री द्वारा इसकी घोषणा की गई तो उन्होंने उन प्रतिभागियों को शपथ दिलाई, जिनके पाठ में शौचालय का उल्लेख नहीं था। 2 अक्टूबर 2019 को भारत के सभी गांवों को 100% खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया था। लेकिन पिछले महीने राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी एक सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में पेयजल, स्वच्छता और आवास की स्थिति में पाया गया कि 28.7% गाँव के घरों में शौचालय नहीं थे । अन्य 3.5% घरों में है लेकिन वे लोग उपयोग नई करते थे।

2014 से 2018 के आकड़े:

2014 में और 2018 में IZA इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि जिन लोगों के पास शौचालय की सुविधा थी वो लोग फिर भी खुले में शौच करते थे। उनकी संख्या 2014 और 2018 के बीच 23% हो गई। अध्ययन में पाया गया कि जिन राज्यों में उन्होंने सर्वेक्षण किया, उनमें से कम से कम 43 प्रतिशत ग्रामीण लोग बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश खुले में शौच करते थे।

स्वच्छता को दी जाती थी अंतिम प्राथमिकता:

2016-17 में, स्वच्छ भारत को लगभग 14,000 करोड़ रुपये मिले, लेकिन ग्रामीण जल बुनियादी ढांचे को केवल 6,000 करोड़ रुपये मिले। जल संसाधन मंत्रालय का अनुमान है कि एक परिवार को एक दिन में कुल 40 लीटर पानी की आवश्यकता होती थी। जिसमें से 15 से 20 लीटर स्वच्छता के लिए होता था। लेकिन एक अच्छी आपूर्ति वाले ग्रामीण परिवार को भी एक दिन में केवल 8 से 10 लीटर पानी ही मिलता था । स्वच्छता को अंतिम प्राथमिकता दी जाती थी। लेकिन कई गांवों में पाइप से पानी की पहुंच ही नहीं थी।

साफ-सफाई के अभाव में प्रभावित होता था स्वास्थ्य:

साफ -सफाई के अभाव में बच्चों का स्वास्थ्य प्रभावित होता था। 2019-20 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में कुछ भयानक आंकड़े सामने आए। बच्चों के पोषण स्तर को दर्शाने वाले चार प्रमुख संकेतकों पर राज्यों ने 2015-16 के स्तर की तुलना में 2019-20 में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की। सर्वेक्षण में 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के आंकड़े पेश किए गए और 10 प्रमुख राज्यों का विश्लेषण किया गया। 2015-16 की तुलना में 2019-20 में सभी 10 राज्यों के बच्चों में एनीमिया अधिक था। गुजरात, हिमाचल, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में, 2005-06 की तुलना में 2019-20 में बच्चों का उच्च प्रतिशत एनीमिक था। अध्ययन में यह भी पाया गया कि आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल समेत आधे राज्यों में डायरिया की घटनाएं बढ़ी हैं। बिहार में 2015-16 में 10.4 फीसदी से बढ़कर 2019-20 में 13.7 फीसदी हो गया।

स्वच्छ भारत-2.0:

2021 में इस कार्यक्रम का नाम बदलकर स्वच्छ भारत 2.0 कर दिया गया। जिसे 2026 तक जारी रखा जाएगा। जिसमें अब शहरों पर ध्यान दिया जाएगा। लेकिन अपने वास्तविक उद्देश्य पर थोड़ा ध्यान देने के साथ शुरू किया गया। प्रारंभिक अभियान 2 अक्टूबर 2019 को उस उद्देश्य को उलट दिया है और अब हम अभियान के दूसरे भाग में चले आये हैं।

 

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