छठ पूजा का दूसरा दिन, जानें खरना का नियम और पूजन विधि

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Chhath Puja 2023 Day 2: कल यानी 17 नवंबर से नहाय – खाय के साथ चार दिवसीय छठ पर्व की शुरूआत हुई है. माना जाता है कि जो महिलाएं छठ के नियमों का पालन करती हैं, छठी माता उनकी हर इच्छा पूरी करेगी. सूर्य देवता को समर्पित इस व्रत का आज दूसरा दिन खरना के तौर पर मनाया जा रहा है. खरना के दिन छठ पूजा का भोजन बनाया जाता है, इस दिन सुबह 6 बजकर 46 मिनट पर सूर्योदय होगा और शाम 5 बजकर 26 मिनट पर सूर्यास्त होगा.

खरना का नियम 

1. वंचितो को दे प्रसाद

प्रसाद को खरना के दिन गरीबों को देना चाहिए, इससे छठी माता खुश होती है और पुण्य मिलता है.

2. नए और साफ वस्त्र धारण करें

खरना का प्रसाद बनाने के लिए बिल्कुल साफ सुथरे वस्त्र पहनना चाहिए, बल्कि हर चार दिनों में साफ कपड़े पहनना चाहिए.

3. तांबे के लौटे से जल दें

सूर्य को छठ पूजा में अर्घ्य देने की परंपरा है. सूर्य भगवान को जिस बर्तन से अर्घ्य देते हैं, उसे विशेष ध्यान देना चाहिए। ये व्रत महिलाओं को तांबे के लोटे में ही देना चाहिए.

4.स्वच्छता का खास ध्यान रखें

छठ पूजा के दौरान स्वच्छता का खास ध्यान रखें, छठ पूजा के लिए भोजन बनाते समय विशेष सावधानी बरतें. अपने हाथ धोते रहें और पूरी तरह से स्वच्छ बनाएं.

खरना का महत्व

महिलाएं खरना के दिन पूरे दिन व्रत रखती हैं, इस दिन छठी माता की पूजा की जाती है. इस दिन गुड़ की खीर बनाई जाएगी. मिट्टी के चूल्हे पर बनाई गई खीर खास है। प्रसाद तैयार होने के बाद व्रती महिलाएं पहले इसे ग्रहण करती हैं, फिर इसे बांटती हैं. इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है. उस दिन सूर्यास्त के समय व्रती लोग नदियों और घाटों पर जाते हैं. जहां सूर्य डूबता है इस दौरान जल और दूध से सूर्य को अर्घ्य देते हैं, इस दिन व्रती महिलाएं भी छठी मैया का गीत गाती हैं.

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छठ पूजा पर कथाएं

 

कर्ण ने शुरू की थी सूर्य की पूजा

मान्यता के अनुसार, इस महापर्व की शुरूआत महाभारत काल से हुई थी, इस पूजा की शुरूआत सूर्य पुत्र कर्ण के द्वारा हुई थी, इस दिन कर्ण ने सूर्य देव की पूजा की शुरुआत की थी. कथाओं के अनुसार, कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे. वह हर दिन घंटों तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देता था. सूर्य ने उनका महान योद्धा बनाया. आज भी छठ में अर्घ्य देने की यही प्रथा प्रचलित है.

 

राम सीता ने की थी सूर्य की पूजा

वही छठ की एक और कथा के अनुसार, जब भगवान राम लंका विजय कर के अयोध्या लौटे तो, उन्होने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन राम राज्य की स्थापना की थी. इस अवसर पर राम और सीता ने उपवास किया और सूर्य देव की आराधना की थी. सप्तमी को सूर्योदय के समय पुन: अनुष्ठान कर उन्होने सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था. ऐसा माना जाता है कि, तब से लेकर आज तक यही परंपरा चली आ रही है.

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