कोरोना काल में खत्म होगी स्कूल फीस की टेंशन!

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में देशभर के प्राइवेट स्कूलों को आदेश दिया है कि लॉकडाउन के दौरान वे छात्रों से पूरी फीस नहीं वसूल सकते हैं। इसके साथ ही, सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा है कि फीस का भुगतान नहीं करने की स्थिति में 10वीं-12वीं के किसी भी छात्र का रिजल्ट भी नहीं रोका जाएगा और न ही उन्हें कोई परीक्षा में बैठने से रोका जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अभिभावक हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का प्लान बना रहे हैं। सिर्फ ट्यूशन फी देना चाहते हैं नोएडा पैरेंट्स असोसिएशन के लोग।

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को फीस कम करने के संबंध में निर्णय लेने का आदेश दिया था। अब ऑल नोएडा स्कूल पैरेंट्स असोसिएशन से जुड़े लोग इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की योजना बना रहे हैं। उनका कहना है कि कोरोना के दौरान वे ऑनलाइन क्लासेस के लिए सिर्फ ट्यूशन फी देने के पक्ष में हैं।

फीस माफ पर होगा विचार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो अभिभावक फीस का भुगतान करने में आर्थिक तौर पर सक्षम नहीं हैं, उनकी फीस माफी पर भी स्कूलों को विचार करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि स्कूल सत्र 2020-21 के लिए वार्षिक फीस ले सकते हैं, लेकिन इसमें भी उन्हें 15 फीसदी की रियायत देनी होगी।

दरअसल, छात्रों ने स्कूलों से वे सुविधाएं नहीं ली हैं, जो वे स्कूल आने पर लेते थे। न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि स्कूल अभिभावकों से बकाया फीस 5 अगस्त से 6 किस्तों में वसूल करें और फीस नहीं देने या भुगतान में देर होने पर 10वीं और 12वीं का रिजल्ट नहीं रोका जाएगा और न ही छात्रों को परीक्षा में बैठने से रोका जा सकता है।

नहीं रोका जाएगा रिजल्ट

इतना ही नहीं, अदालत ने स्कूलों से यह भी कहा है कि अगर कोई अभिभावक फीस का भुगतान करने की स्थिति में नहीं है तो स्कूल उनके मामलों पर गंभीरता से विचार करेंगे। उनके बच्चों का रिजल्ट नहीं रोका जाएगा।

पीठ ने यह भी माना है कि यह आदेश आपदा प्रबंधन अधिनियम-2005 के तहत नहीं दिया जा सकता क्योंकि इसमें यह कहीं भी नहीं है कि सरकार महामारी की रोकथाम के लिए शुल्क और फीस या अनुबंध में कटौती करने का आदेश दे सकती है।

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान स्कूलों ने बिजली, पानी, पेट्रोल-डीजल, स्टेशनरी, रख-रखाव और खेल-कूद के सामान के पैसे बचाए हैं। यह बचत करीब 15 फीसदी के आस-पास बैठती है। ऐसे में छात्रों से इन सबका पैसा वसूलना शिक्षा को बिजनेस बनाने जैसा होगा।

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