गांव और किसानों के साथ मजबूती से खड़े होने का वक्त

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औद्योगिक इकाइयों से लेकर सभी कारोबार अपने पुराने दिन वापस पाने की कोशिश में हैं। वे इसके लिए इंतजार भी कर सकते हैं, मगर खेती इंतजार नहीं कर सकती। कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से चारों तरफ बेचैनी का माहौल है और सबसे ज्यादा बेचैनी तो ग्रामीण क्षेत्रों में है। वहां चुनौती दोहरी है।

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ग्रामीण क्षेत्र को इस वायरस के संक्रमण से भी बचाना है, साथ ही इसकी वजह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को जो गहरा आघात लगा है, उससे भी उसे उबारने का काम तुरंत जरूरी है। देश में जब से लॉकडाउन हुआ है, किसानों को रबी की फसल की कटाई एवं बिक्री, गन्ने की फसल की बिक्री व भुगतान और आलू की फसल की निकासी की चिंता है।

फसल समय पर नहीं कटेगी, तो आगे धान, ज्वार, मक्का, गन्ना, सोयाबीन, बाजरा, मूंगफली, तूर और मूंग जैसी फसलों की बुवाई में भी दिक्कत आएगी। दूसरी ओर, फल, सब्जी व बागवानी करने वाले किसान और डेयरी किसान बुरी तरह से परेशान हैं। जो सब्जियां या फल जल्दी खराब हो जाते हैं, उनको उगाने वाले किसानों के लिए तो यह बहुत बड़ा संकट है। बागवानी की उपज का कोई खरीदार नहीं है, कई फसलें खेतों में ही सड़ रही हैं। कृषि क्षेत्र का यह संकट आगे चलकर देश की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है, इसलिए सरकार को कुछ जरूरी कदम तुरंत उठाने होंगे।

सरकार संचार साधनों का बेहतर इस्तेमाल करते हुए किसानों से रबी की फसल खरीदने के लिए खुद ही संपर्क करे।

चूंकि यह रबी की कटाई का समय है, इसलिए खेती के उपकरण आदि की मरम्मत के लिए तुरंत किसानों को परमिट जारी किया जाना चाहिए। फसल की खरीद का फिलहाल एक बेहतर तरीका यह हो सकता है कि सरकार राज्यों में उपलब्ध भू-अभिलेखों और अन्य सूचनाओं के आधार पर, संचार साधनों का बेहतर इस्तेमाल करते हुए किसानों से रबी की फसल बेचने के लिए खुद ही संपर्क करे।

किसानों की एक संख्या को एक दिन का समय आवंटित किया जाए, ताकि वे तय दिन और समय पर खरीद केंद्र पर पहुंचें। इससे क्रय केंद्रों पर भीड़ भी नहीं लगेगी और संक्रमण फैलने का खतरा भी कम होगा। जिस दिन किसान अपनी फसल बेचे, उसी दिन उसे उसके खाते में भुगतान मिलना चाहिए। कृषि व्यापार करने वाले जितने भी आढ़ती हैं, उनको यह स्पष्ट निर्देश देना होगा कि रबी की फसल की सारी खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करनी है। इससे किसान बिना किसी झिझक और डर के अपनी फसल बेच पाएगा। रबी की फसल का निस्तारण करने के बाद किसान को चूंकि तुरंत ही खरीफ की फसल बोने की तैयारी करनी होगी, इसलिए हमारे पास समय बहुत ज्यादा नहीं है।

गांव

इसके साथ ही सरकार को तुरंत डीजल के दाम में कमी करके किसानों को राहत देनी चाहिए। इससे तमाम उत्पादों की परिवहन लागत में भी कमी आएगी। विश्व बाजार में कच्चे तेल के दामों में गिरावट से सरकार को राहत मिली है। इससे चालू खाते के घाटे और बजटीय घाटे में कमी आएगी। इस समय जहां यह भी जरूरी है कि किसानों से कर्जे की वसूली फिलहाल रोक दी जाए, तो वहीं उन्हें खरीफ की फसल के लिए ब्याजमुक्त कर्ज मुहैया कराने की भी जरूरत है।

[bs-quote quote=”(यह लेखक के अपने विचार हैं, यह लेख हिंदुस्तान अखबार में प्रकाशित है)

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लॉकडाउन ने कई ऐसी समस्याएं भी खड़ी की हैं, जिनकी ओर अभी ध्यान नहीं दिया जा रहा। इसकी वजह से ग्रामीण स्कूल बंद हो गए हैं और बच्चों को मिड डे मील नहीं मिल पा रहा। इसके परिणामस्वरूप हमें जल्द ही कुपोषण के रूप में देखने को मिल सकता है। इसके लिए तुरंत कारगर योजना बनाए जाने की जरूरत है।

यह समस्या इसलिए भी बड़ी हो सकती है कि लॉकडाउन की वजह से शहरी क्षेत्रों से गांवों की ओर भारी पैमाने पर पलायन हुआ है, यानी वहां के पहले से ही कम संसाधनों में हिस्सेदारी बंटाने वालों की संख्या बढ़ गई है। इसलिए जरूरी है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए गांवों के लिए अतिरिक्त अनाज उपलब्ध कराया जाए। इसके साथ ही मनरेगा जैसी योजनाओं पर भी पहले के मुकाबले ज्यादा ध्यान देना जरूरी है।

यह समय शहरों से गांव पहुंचे श्रमिकों को विश्वास में लेने का भी है। एक तरफ उन्हें आश्वस्त करने की जरूरत है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद वे वापस सकुशल अपने पुराने काम में लौट सकेंगे, दूसरी तरफ वह व्यवस्था बनानी भी जरूरी है कि शहरों के उद्योग पहले की ही तरह फिर से सक्रिय हों।

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