कोरोना: बचाव के उपायों से तय होगा भविष्य

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चीन ने बेशक अपने यहां कुछ सख्त प्रतिबंधों में लोगों को छूट देनी शुरू कर दी है, लेकिन कोविड-19 का कहर अब भी दुनिया पर बरस रहा है। भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 5,700 से भी ज्यादा हो चुकी है और मरने वालों का आंकड़ा 160 के पार चला गया है।

महाराष्ट्र, तमिलनाडु और दिल्ली फिलहाल देश के सबसे संक्रमित राज्य हैं, जबकि केरल ने इसे थामने में कमोबेश सफलता हासिल कर ली है। फिर भी, आबादी के आकार के लिहाज से भारत में संक्रमण-दर अभी तक कम है और देशव्यापी सामुदायिक संक्रमण के बहुत ठोस संकेत नहीं हैं। संक्रमित मरीजों के 80 फीसदी मामले देश के 62 जिलों में दर्ज किए गए हैं, और लगभग 400 जिले संक्रमण-मुक्त हैं। तीन सप्ताह का देशव्यापी लॉकडाउन अब अंतिम चरण में है, हालांकि इस अवधि के विस्तार और इसकी प्रकृति के बारे में कई तरह के कयास भी लगाए जा रहे हैं।

खबर यह भी है कि बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने मुंबई में सामुदायिक संक्रमण फैलने का अंदेशा जताया है। वहां ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें कुछ नए रोगियों का किसी संक्रमित मरीज से सीधा संपर्क नहीं था और न ही उन्होंने कोई विदेश यात्रा की है। मरने वालों में भी लगभग एक तिहाई वे लोग हैं, जिन्हें पहले कोई बीमारी नहीं थी। धारावी में बीएमसी ने तमाम तरह के एहतियाती कदम उठाए हैं, मगर जिस तरह से मुंबई में डॉक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मी संक्रमित हुए हैं, उससे यह चिंता बढ़ गई है कि क्या भारत स्टेज-3 यानी सामुदायिक संक्रमण के दौर में प्रवेश कर चुका है?

अपनी नियमित मीडिया-ब्रीफिंग में विभिन्न मंत्रालयों के प्रवक्ता सामुदायिक संक्रमण को फिलहाल सिरे से खारिज कर रहे हैं। उनका मानना है कि ‘ऐसे कुछ छिटपुट मामले सामने आए हैं, जिनमें लोगों को यह नहीं पता कि उन्हें यह संक्रमण कैसे हुआ, लेकिन ये मामले इतने अधिक नहीं हैं कि सामुदायिक संक्रमण की पुष्टि होती हो’। वे यह भी कहते हैं कि ‘सामुदायिक संक्रमण की बात हम तभी कर सकते हैं, जब संक्रमण की अबूझ वजह वाले मामलों की संख्या 20 से 30 फीसदी होगी।’ पीटीआई की खबर बताती है कि इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा बडे़ पैमाने पर टेस्ट कराने की घोषणा के बाद तीन ऐसे मामले दिखे हैं, जिनमें मरीज के संक्रमण का कारण पता नहीं चला। एक प्रतिष्ठित पत्रिका ने बीते 21 मार्च को ही तमिलनाडु के एक 20 वर्षीय युवा और पुणे की 41 वर्षीया महिला का उदाहरण देते हुए चिंता जताई थी कि क्या ये दोनों मामले देश में कोविड-19 के सामुदायिक संक्रमण की शुरुआत के संकेत हैं, क्योंकि उन दोनों मामलों में संक्रमण की वजह स्पष्ट नहीं थी?

नए हालात के अनुसार सभी राज्य अपनी जवाबी रणनीति तैयार कर रहे हैं, मगर अभी हम चौराहे पर हैं, इसलिए बहुत सावधानी की दरकार है।

जाहिर है, देश के अलग-अलग राज्य और उनके अलग-अलग जिले कोरोना संक्रमण के भिन्न स्टेज से गुजर रहे हैं और उसी के मुताबिक उनकी अलग-अलग प्रतिक्रिया भी सामने आ रही है। नए उभरते हालात के अनुसार सभी राज्य अपनी जवाबी रणनीति तैयार कर रहे हैं। ऐसे में, आने वाले दिनों में धारावी जैसे हॉटस्पॉट (कई कारणों से) हम बेशक देख सकते हैं, लेकिन व्यापक पैमाने पर सामुदायिक संक्रमण शायद ही हो। अभी देश में कई हॉटस्पॉट को चिह्नित किया गया है और वहां के लोगों के घर से निकलने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई है।

इस तरह के हॉटस्पॉट की पहचान जरूरी है, क्योंकि इससे न सिर्फ यह पता लगाने में मदद मिलती है कि उस खास जगह पर संक्रमण किस तरह फैला, बल्कि संक्रमण के बढ़ते दायरे को थामना भी संभव होता है। कोविड-19 का सामुदायिक प्रसार किस कदर खतरनाक होता है, यह दुनिया के कई देशों में देखा गया है। लिहाजा, अपने यहां स्टेज-3 से बचना ही सबसे बड़ी चुनौती है।

गौरतलब है कि हॉटस्पॉट पर सरकारी महकमे को काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है। यहां मुख्यत: सामुदायिक समन्वय तंत्र खड़ा करने पर जोर रहता है, ताकि स्वास्थ्य, परिवहन, यात्रा, व्यापार, वित्त, सुरक्षा जैसे तमाम मोर्चों पर मुस्तैद प्रतिक्रिया दिखे। भारत में एक बड़ी चुनौती साढे़ छह लाख गांवों के घरों में सिमटी आबादी तक पहुंचना भी है। आपात स्थिति में कार्य करने वाले तंत्र का काम मामलों की जांच और संपर्कों की पहचान करना होता है। यह संक्रमण का प्रसार कम करने के साथ-साथ स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है।

समुदायों को उनकी सक्रिय भूमिका के प्रति संवेदनशील बनाना भी एक अन्य चुनौती है। प्रशासनिक तंत्र पर लोगों का विश्वास बनाए रखने के लिए जरूरी है कि उनकी चिंताओं को शांत करने वाले पारदर्शी, सुसंगत और सरल संदेश लगातार जारी किए जाते रहें। इस काम में स्थानीय राजनीतिक और सामाजिक नेतृत्व की भूमिका महत्वपूर्ण है। बहु-सांस्कृतिक व बहुभाषी हकीकतों को स्वीकार करने वाले संचार माध्यमों से राज्यों को इसमें मदद मिल सकती है। अफवाहों व गलत सूचनाओं के स्रोत का पता लगाने और उनकी धार कुंद करने के लिए भी इनकी मदद ली जानी चाहिए।

राज्य सरकारें और स्थानीय स्वास्थ्य विभाग अस्पतालों की तैयारी एवं सामुदायिक संक्रमण की स्थिति में हालात को संभालने के उपायों पर लगातार काम कर रहे हैं। वे यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि मरीजों की संख्या बढ़ने पर जगह, स्टाफ और संसाधनों की आपूर्ति पर्याप्त रहे। इन तमाम रणनीतियों की जानकारी स्थानीय समुदायों को दी जानी चाहिए।

[bs-quote quote=”(यह लेखक के अपने विचार हैं, यह लेख हिंदुस्तान अखबार में प्रकाशित है।)

” style=”style-13″ align=”left” author_name=”राजीव दास गुप्ता ” author_job=”प्रोफेसर (कम्यूनिटी हेल्थ), जेएनयू” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/04/rajib-das-gupta.jpg”][/bs-quote]

लोगों को लगातार बताया जाना चाहिए कि इस रोग से बचाव के लिए क्या-क्या करने की जरूरत है। हालांकि साबुन से हाथ धोने को लेकर देशव्यापी अभियान चलाया गया है, लेकिन वास्तव में आज भी कई परिवारों के लिए साबुन और पानी का इंतजाम कठिन है। अच्छी बात है कि स्थानीय स्वास्थ्य विभाग इन स्थितियों का सामना प्रभावी रूप से कर रहे हैं। कुछ शहरों में तो सभी के लिए मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। लॉकडाउन के हालात में सभी समुदायों तक मास्क पहुंचाने की व्यवस्था भी होनी चाहिए।

निश्चय ही, सरकार के तमाम विभाग और कर्मचारी अपनी असाधारण प्रतिबद्धता के साथ इस गंभीर चुनौती का सामना कर रहे हैं। संक्रमण के हॉटस्पॉट पर सामुदायिक संगठन और स्वयंसेवक भी काफी प्रशंसनीय भूमिका निभा रहे हैं। मगर फिलहाल हम एक चौराहे पर हैं। यहां से हमारी राह किधर जाएगी, यह बहुत कुछ बचाव के उपायों से ही तय होगा।

 

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