पितृपक्ष 2022: 10 सितंबर से शुरू होंगे श्राद्ध, पितरों का होगा तर्पण, ज्योतिषाचार्य से जानें सब कुछ

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भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा 10 सितंबर से पितृपक्ष प्रारंभ हो रहा है जो आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या 25 सितंबर तक चलेगा. हिन्दू धर्म में वर्ष के सोलह दिनों को अपने पितृ या पूर्वजों को समर्पित किया गया है, जिसे पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष या कनागत कहते हैं. पितरों के मोक्ष के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि कर्म किए जाते हैं. तीर्थ नैमिषारण्य नाभि गया है. इसलिए, पितृपक्ष में नैमिषारण्य में देश के कोने कोने से श्रद्धालु यहां तर्पण करने आते हैं. पड़ोसी देश नेपाल, श्रीलंका सहित मध्य प्रदेश आदि राज्यों से तमाम श्रद्धालु तीर्थ में पहुंचकर पितरों के मोक्ष के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म करते हैं.

पुराणों के अनुसार, तीर्थ नैमिषारण्य मनुष्य के सभी कष्टों को हरने वाला है. यहां पर किए गए पुण्य कर्म मनुष्य के सारे पापों को नष्ट कर देते हैं. सतयुग से श्राद्ध और तर्पण का विधान आज भी चल रहा है. बताया जाता है कि पितृपक्ष में तर्पण करने से पितरों को मोक्ष मिलता है. पुरखे संतुष्ट होकर निरोग चिरायु श्रेष्ठ संतान आदि का आशीर्वाद देते हैं. नैमिषारण्य पौराणिक स्थलों में से एक नाभि गया (काशी कुंड) व चक्र तीर्थ सहित गोमती नदी के किनारे श्राद्ध व तर्पण का विधान है. नैमिषारण्य तीर्थ में अन्नदान, पिंडदान, श्राद्ध, यज्ञादि कर्म करना श्रेष्ठ माना गया है. भाद्रपद मास शुक्ल प्रतिपदा से लेकर यह क्रम अश्विन मास की पितृ विसर्जनी अमावस्या तक अनवरत चलता रहता है.

नैमिष के आचार्य सदानंद द्विवेदी बताते हैं कि जो व्यक्ति चक्रतीर्थ में स्नान कर पिंड दान व तर्पण करते हैं, उसे धार्मिक पुण्य के साथ ही उनके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. उन्होंने बताया कि जौ, तिल व चावल सहित जल पितरों को सूर्यदेव के माध्यम से दिया जाना ही तर्पण है. तर्पण के समय कुश जरूरी है. वैदिक परंपरा की श्राद्ध विधि में चार कर्म बताए गए हैं. पिंडदान, हवन, तर्पण व ब्राह्मणों को भोजन.

इसके अलावा, पंडित विवेक द्विवेदी बताते हैं कि भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक 16 दिन का पितृपक्ष होता है. इस वर्ष पितृ पक्ष 10 सितम्बर से 25 सितम्बर तक है. यह पक्ष सोलह दिन का होता है. उन्होंने बताया कि हमें केवल सनातन धर्म से ही शिक्षा मिलती है कि अपने बुजुर्गों को उनके जीवन काल में तो सेवा करनी ही चाहिए, उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी तिथि पर पिंडदान, तर्पण, ब्राह्मण भोजन भी कराना चाहिए.

ज्योतिषविद विभोर इंदु सुत कहते हैं कि श्राद्धों की कुल संख्या 16 होती है, जिसमें भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि को पहला श्राद्ध होता है और इसी दिन से श्राद्ध पक्ष शुरू माना जाता है. इस बार 10 सितम्बर को पूर्णिमा के श्राद्ध के साथ ही महालय आरम्भ हो जाएगा और इसी क्रम में 11 तारीख को प्रतिपदा का श्राद्ध होगा, 12 को द्वितीया और 13 को तृतीया और चतुर्थी के श्राद्ध होंगे 14 को पंचमी पर 15 और 16 सितम्बर दोनों ही दिन षष्टी तिथि (छट) का श्राद्ध होगा. इसके बाद 17 सितम्बर को सप्तमी तिथि के श्राद्ध से 25 सितम्बर अमावस्या तक सभी श्राद्ध एक सीधे क्रम में होंगे. वे कहते हैं कि तृतीया व चतुर्थी तिथि का श्राद्ध एक ही दिन 13 सितम्बर को होगा.

पंडित विनोद त्रिपाठी कहते हैं कि पितृ पक्ष का वास्तविक तात्पर्य अपने पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा को प्रकट करना है, इसलिए इसे श्राद्ध पक्ष या श्राद्ध का नाम दिया गया है. दस सितंबर को पूर्णिमा के साथ श्राद्ध पक्ष शुरू होंगे और 25 तक चलेंगे. अगले दिन यानि 26 से चैत्र नवरात्र शुरू हो रहे हैं. ज्योतिषविद अमित गुप्ता कहते हैं कि सोलह दिन का पूर्ण पितृपक्ष इस बार रहेगा. भाद्रपक्ष की पूर्णिमा तिथि से यह शुरू हो रहा है, जिसका समापन 25 को होगा. सभी तिथियां पूर्ण रूप से शुद्ध हैं, कोई तिथि घट या बढ़ नहीं रही हैं.

माताओं के लिए नवमी, सन्यासी के लिए द्वादशी, अकाल मृत्यु वालों के लिए चतुर्दशी और जिनकी मृत्यु ज्ञात न हो उनके लिए अमावस्या तिथि श्राद्ध कर्म के लिए उत्तम मानी जाती है.

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