यूं ही नहीं कोई बन जाता है विजिटिंग प्रोफेसर, पांच चरणों से गुजरता है नाम

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इन दिनों रिलायंस फाउंडेशन की चेयरपर्सन नीता अंबानी और बीएचयू दोनो ही सुर्खियों में है। खबर यह है आयी थी कि बीएचयू ने नीता अंबानी को विजिटिंग प्रोफेसर बनाने का प्रस्ताव भेजा है। लेकिन 24 घंटे के अंदर ही कुछ ऐसा हुआ कि दोनों पक्ष इस बात से इनकार करने लगे।

इस मामले में कितनी सच्चाई है इसका पता तो सिर्फ नीता अंबानी और बीएचयू प्रशासन को ही होगा। लेकिन इस पूरे प्रकरण ने लोगों के जेहन में ये सवाल खड़ा किया कि आखिर विजिटिंग प्रोफेसर क्या बला है ? आखिर नीता अंबानी को विजिटिंग प्रोफेसर बनाये जाने की बात को लेकर इतना हंगामा क्यों है ?

कौन होते हैं विजिटिंग प्रोफेसर ?

किसी भी यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर बनना, सम्मान सरीखा होता है। अगर बीएचयू की बात करें तो पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, मशहूर नृत्यांगना सोनल मान सिंह, जयंत विष्णु नार्लिकर जैसी नामचीन हस्तियां विजिटिंग प्रोफेसर के पद सुशोभित हुई हैं।

दूसरे शब्दों में कहें तो विजिटिंग प्रोफेसर ऐसे लोगों को बनाया जाता है जो छात्रों के लिए प्रेरणास्त्रोत हों। समाज में उनका विशिष्ट योगदान हो और उनकी एक अलग पहचान हो। विजिटिंग प्रोफेसर बनना सिर्फ उस व्यक्ति के लिए ही नहीं बल्कि संस्थान के लिए सम्मान की बात होती है। लिहाजा इसके चुनाव की प्रक्रिया कड़े नियमों के दायरे में बंधी होती है।

महत्वपूर्ण प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही यूनिवर्सिटी किसी को विजिटिंग प्रोफसर बनाती है। अपने क्षेत्र में विशिष्ट योग्यता रखने वाला व्यक्ति ही विजिटिंग प्रोफसर बनाया जाता है। मसलन विज्ञान, कला, संगीत, पत्रकारिता, साहित्य जैसे के महारथी इसमें शामिल होते हैं।

पांच चरणों में तय होता है विजिटिंग प्रोफेसर का नाम

अब सवाल ये है कि विजिटिंग प्रोफेसर का चुनने का अधिकार किसे हैं। जाहिर तौर पर सबसे बड़ी भूमिका वाइस चांसलर की होती है। लेकिन इसके उस नाम को पांच चरणों की गहन पड़ताल और मंथन से गुजरना होता है।

सबसे पहले किसी भी विषय के डिपॉर्टमेंट का हेड, विजिटिंग प्रोफेसर के नाम की संस्तुति करता है। हेड ऑफ डिपॉर्टमेंट ये नाम संबंधित फैकेल्टी के डीन को भेजता है। यहां से डीन उस नाम को वीसी ऑफिस को फॉरर्वड करता है।

शुरुआती जांच के बाद वीसी ऑफिस इस नाम को एकेडिमक काउंसिल के सामने रखता, जहां कांउसिल के मेंबर संबंधित नाम के हर पक्ष को परखते हैं। एकेडमिक काउंसिल से मंजूरी मिलने के बाद एग्जिक्यूटिव काउंसिल में रखा जाता है। जहां नाम पर अंतिम मुहर लगाई जाती है।

इस दौरान विश्वविद्यालय प्रशासन संबंधित व्यक्ति से संपर्क करता है और विजिटिंग प्रोफेसर बनने के लिए उसकी रजामंदी लेता है।

विजिटिंग प्रोफेसर को कितनी मिलती है सैलरी ?

जाहिर तौर पर विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर किसी व्यक्ति का चुनाव होता है तो उसे सैलरी भी मिलती होगी। लेकिन ऐसा नहीं होता। बीएचयू के संदर्भ में बात करें तो विजिटिंग प्रोफेसर के लिए कोई तय वेतनमान नहीं है। इसके बदले उन्हें मानदेय दिया जाता है। मानदेय की राशि तय नहीं होती है।

हां इतना जरुर है कि विजिटिंग प्रोफेसर के टीए-डीए के अलावा बतौर सम्मान कुछ राशि उन्हें दी जाती है। कई बार तो ऐसा भी होता है कि विजिटिंग प्रोफेसर अपने खर्चे पर ही कैंपस आते हैं और अपने ज्ञान से छात्रों को लाभांवित करते हैं।

नीता अंबानी के नाम पर हंगामा क्यों ?

अब सवाल ये है कि नीता अंबानी के नाम को लेकर हंगामा क्यों बरपा है ? क्या उनके नाम के चुनाव के वक्त तय गाइडलाइन को फॉलो नहीं किया गया ? पूरे प्रकरण में गलती किसकी है ? सूत्रों की मानें तो नीता अंबानी को विजिटिंग प्रोफेसर बनाने को लेकर तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।

बीएचयू प्रशासन ने जिस तरह से पूरे प्रकरण से पल्ला झाड़ा है, उससे यही जाहिर होता है। बताया जा रहा है कि नीता अंबानी को विजिटिंग प्रोफेसर बनाने के सभी निर्णय सोशल साइंस फैकेल्टी के स्तर पर ही लिए गए। फैकेल्टी के डीन ने नाम को न तो नीता अंबानी के नाम को वीसी के सामने रखा और ना ही एकेडमिक काउंसिल और एग्जिक्यूटिव काउंसिल में रखा।

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