बीच सड़क पर बच्चों को मुफ्त में पढ़ाती है यह महिला

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डॉक्टर ललिता शर्मा ने देखा कि झुग्गियों में रहने वाली ज्यादातर छोटी लड़कियां स्कूल नहीं जाती थीं और वो अपनी मां के साथ घरों में काम करती थीं। तब डॉक्टर ललिता ने सोचा कि क्यों ना ऐसे बच्चों को पढ़ाने का काम किया जाए, जो किन्ही कारणों से आगे नहीं पढ़ पाते। उसके बाद उन्होंने सड़क किनारे ही इन बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। इसके अलावा जिन बच्चों के माता-पिता स्कूल की फीस जमा करने में असमर्थ थे, उनके स्कूल के प्रिंसिपल से मिलकर डॉक्टर ललिता ने बच्चों की आधी फीस माफ कराई।

आठ बच्चों से की थी शुरूआत

ललिता ने शुरू में केवल आठ बच्चों को अपने घर के सामने की सडक किनारे पढ़ाना शुरू किया। लेकिन धीरे-धीरे ये संख्या बढ़ती गई जो आज 198 तक पहुंच गई है। इनके साथ 25 वालंटियर भी अपने-अपने इलाकों के बच्चों को अपने घर या आसपास की जगहों में पढाने का काम करते हैं। उनकी हर क्लास में कम से 15 या उससे अधिक बच्चे होते हैं।

करना पड़ा विरोध का सामना

डॉ. ललिता की कोशिशों का ही नतीजा है कि जिन बच्चों का स्कूल छूट गया था, आज वो सभी स्कूल जाने लग गए हैं। इतना ही नहीं डॉक्टर ललिता के पढ़ाए हुए कुछ बच्चे इंजीनियरिंग की भी पढ़ाई कर रहे हैं। उन्होंने शुरूआत में जब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया तो स्थानीय लोगों ने उनका विरोध किया, क्योंकि तब कुछ लोगों का मानना था कि वो ये काम सरकारी सहायता से कर रही हैं, लेकिन जब लोगों का सच्चाई से सामना हुआ तो उन्होने विरोध करना बंद कर दिया।

8वीं से 12वीं कक्षा तक के छात्र

डॉ. शर्मा आज अपने घर के आगे-पीछे की रोड पर बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं। वो हर रोज शाम चार बजे से छह बजे तक बच्चों को पढ़ाती हैं। ये बच्चे 8वीं से 12वीं कक्षा तक के छात्र हैं। सोमवार से शुक्रवार तक ये बच्चों को उनके पाठ्यक्रम से जुड़ी किताबें पढाती हैं, जबकि शनिवार और रविवार को वो उन बच्चों को नैतिक शिक्षा के संस्कार देती हैं।

‘नैतिक शिक्षा’ का सकारात्मक प्रभाव

उन्होंने बताया कि नैतिक शिक्षा का इन बच्चों पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पढ़ा है। बच्चों के माता-पिता डॉ. ललिता को बताते हैं कि उनके बच्चे अब घर में झगड़ा नहीं करते हैं और ना ही दूसरों को ऐसा करने देते हैं।

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इनके पास पढ़ने वाली कुछ लड़कियां नैतिक शिक्षा की इन किताबों को अपने साथ ले जाकर उन्हें अपने घर के आस-पास बांटने का भी काम करती हैं।

डिजिटल इंडिया को बनाया माध्यम

डॉ. ललिता बच्चों को इस साल कम्प्यूटर सिखाने के लिए गेल कंपनी से बात की और कंपनी उनके बच्चों को कम्प्यूटर सिखाने के लिए तैयार हो गए हैं। डिजिटल इंडिया कैंपेन के माध्यम से इन बच्चों को कम्प्यूटर सिखाया जा रहा है। डॉक्टर ललिता बताती हैं कि फिलहाल 60 बच्चे ही गेल के सेंटर में कम्प्यूटर सिखने लिए जाते हैं। हालांकि उनकी कोशिश ज्यादा से ज्यादा बच्चों को कम्प्यूटर सिखाने की है।

परिवार का मिलता है सहयोग

डॉ. ललिता बताती हैं कि अपने इस काम में उन्हें अपने परिवार का बहुत सहयोग मिलता है। खासतौर पर उनकी सास का। उनकी सास इन बच्चों को आर्ट और क्राफ्ट की ट्रेनिंग देती हैं, जबकि ललिता इन बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाती हैं। बाकी विषय इनके साथ जुड़े वॉलेंटियर पढ़ाते हैं। कुछ बच्चे जो पहले इनके यहां पर पढ़ते थे, आज वो भी दूसरे बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं। सड़क किनारे चलने वाला इनका स्कूल कहीं भी पंजीकृत नहीं है, इसलिए स्कूल चलाने में जो भी खर्च आता है वो उसे खुद ही वहन करती हैं।

नहीं लेती कोई मदद

इनके काम को देखते हुए दूसरे लोग इनके पास बच्चों को देने के लिए कपडे और खाना लेकर आते हैं। जिसे वो बहुत ही विनम्रता से मना कर देती हैं। वो उनसे कहती हैं कि अगर वो मदद ही करना चाहते हैं तो वो इन बच्चों को पढाने में मदद करें। डॉ. ललिता का कहना है कि मैं इन बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना चाहतीं हूं।

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उनका कहना है कि अगर मैं इन बच्चों को कुछ देती हूं तो इससे इनकी आदत खराब हो सकती हैं। हो सकता है कि ये कल खुद अपने पैरों में खड़े होने की कोशिश ही ना करें। फिलहाल डॉ. ललिता शर्मा इंदौर के सेंट पॉल इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।

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