नेताजी सुभाष चंद्र बोस : दावों और सच्चाई से परे एक रहस्यमयी शख्सियत

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भारत का इतिहास आजाद भारत के लिए योगदान देने वाले। देश भक्तों की वीर गाथाओं से भरा है। आजादी की लड़ाई में भारत माता के कई सपूत ऐसे भी रहे। जिनके योगदान को समय गुजरने के साथ-साथ बिसरा दिया गया। ऐसे ही एक लीडर हैं जिनके जिक्र के बगैर। भारत की आजादी का इतिहास अधूरा ही रहेगा।

वो भारत माता के सपूत थे। आगे बढ़कर नेतृत्व करने की उनकी खासियत ने उनको सबका चहेता लीडर बनाया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ऐसे अध्यक्ष। जिन्होंने जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी तक के सामने अपना खास मुकाम बनाया और जिनकी ताकत का लोहा दुनिया के तमाम देशों और नामी लीडर्स ने भी माना।

उनकी मृत्यु से जुड़े कई ऐसे प्रसंग भी गाहे-बगाहे सामने आए। सरकारी तौर पर इस नायक की मृत्यु होने संबंधी बयान के बावजूद। उनके चाहने वालों के लिए वो आज भी जिंदा हैं। और इसी कारण उनके मृत या जीवित होने का मामला। आज भी देश-दुनिया के लिए एक रहस्य बना हुआ है।

जी हां हम बात कर रहे हैं देश को आजाद और आत्मनिर्भर बनाने का सपना देखने वाले। देश के सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस की। वही नेताजी जिन्होंने अंग्रेजों के तलुए चाटने के बजाए देश प्रेम को सबसे ऊपर रखा।

 नेताजी की मौत से जुड़े दावे-

रहस्यमयी शख्सियत नेताजी बोस की मृत्यु के बारे में। कई बातें कही-सुनीं जाती हैं। अधिकृत तौर पर तो नेताजी का निधन विमान हादसे में होना बताया जाता है। कहा जाता है सेकंड वर्ल्ड वार में जापान की हार के बाद। जब नेताजी रूस से मदद मांगने मंचूरिया जा रहे थे।इसी दौरान 18 अगस्त 1945 को वे लापता हो गये। लेकिन उनके जीवित रहने के किस्से और प्रमाण बाद में भी सामने आते रहे।

बैगेट थ्योरी-

अमेरिका के राइटिंग एक्सपर्ट कार्ल बैगेट को ही लें जिन्होंने खुलासा किया है कि भारत के यूपी में एक समय मशहूर हुए गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। बैगेट ने ये दावा गुमनामी बाबा और नेताजी के पत्रों की लिखावट की जांच के बाद किया है।

आपको बता दें बैगेट को राइटिंग एक्सपर्ट इसलिए माना जाता है क्योंकि वो अब तक पांच हजार से ज्यादा मामलों में सच्चाई का खुलासा कर चुके हैं। बैगेट के इस दावे से फिर से उस बात को बल मिला है जिसमें दावा किया जाता रहा है कि नेताजी बोस ने ही गुमनामी बाबा के रूप में आजादी के बाद एकांत जीवन गुजारा। साथ ही इस बात पर फिर से बहस छिड़ गई है कि नेताजी की मौत विमान हादसे में हुई भी थी या फिर नहीं।

अमेरिकी एक्सपर्ट कार्ल बैगेट को लेटर्स लिखने वालों की पहचान बताए बिना हाथ से लिखे लैटर्स के दो सेट दिये गये थे। इन लैटर्स की जांच के बाद बैगेट इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि दोनों लैटर्स में। एक ही व्यक्ति की हैंड राइटिंग है।

बैगेट को जांच के लिए जो पत्र सौंपे गए थे वो लैटर्स। चंद्रचूड़ घोष और अनुज धर की किताब ‘कॉननड्रम : सुभाष बोसेज लाइफ आफ्टर डेथ’ काहिस्सा रहे हैं। किताब के मुताबिक ये पत्र गुमनामी बाबा ने आजाद हिंद फौज के सदस्य और नेताजी के करीबी रहे।

पवित्र मोहन रॉय को 1960 और 80 के दशक के बीच लिखे थे। किताब में यह भी दर्ज है कि रॉय कई सालों तक गुमनामी बाबा के संपर्क में रहे।
इन दस्तावेजों को भी सच्चाई की कसौटी पर परखा गया है। घोष और धर की किताब नेताजी बोस से जुड़े लगभग 10 हजार डॉक्यूमेंट्स पर आधारित है। इनमें वो दस्तावेज भी शामिल हैं जो गुमनामी बाबा के कलेक्शन में से मिले थे। इन डॉक्यूमेंट्स को बुक के राइटर्स ने आरटीआई के जरिए जस्टिस मुखर्जी आयोग से हासिल किया था।

विमान हादसे का सच-

Subhas Chandra Bose

बात करें यदि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निधन की तो यही बात प्रचारित है कि साल 1945 में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी। कहा जाता है कि जापान और जर्मनी से मदद लेने की कोशिश करने पर ब्रिटिश सरकार ने 1941 में ही बोस को जान से मारने का आदेश दे दिया था। जापान के मुताबिक नेताजी की अस्थियां टोक्यो के रेनकोजी मंदिर में रखी गईं थीं।

विमान दुर्घटना में नेताजी मौत की बात को नेताजी बोस को करीब से जानने वालों ने कभी भी स्वीकार नहीं किया। लोगों का कहना है कि नेताजी रूस में नजरबंद रहे। हालांकि जापान में हर साल 18 अगस्त का दिन नेताजी के शहीद दिवस के रूप में मनाकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस को याद किया जाता है।

फैजाबाद से लेकर रायगढ़ तक

करीबियों का दावा है कि नेताजी बोस सकुशल भारत वापस आने में कामयाब रहे थे। जिसके बाद नेताजी ने भारत में सार्वजनिक जीवन की बजाए उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में गुमनामी बाबा के रूप में अपना जीवन गुजारा। उन्होंने ऐसा क्यों किया इस बारे में भी अपने-अपने तर्क और विचार हैं जिन पर गाहे-बगाहे बहस छिड़ती रहती है।

भारत के कई हिस्सों में नेताजी को देखे जाने का दावा करने वालों की कमी नहीं है। फैजाबाद के गुमनामी बाबा के अलावा छत्तीसगढ़ स्टेट के रायगढ़ जिले में भी नेताजी के होने के दावे लोगों ने किए हैं लेकिन इन सभी की प्रामाणिकता संदिग्ध है। छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने तो इस मामले को हस्तक्षेप के लायक तक नहीं माना और केस फाइल ही बंद करवा दी।

सुभाष बाबू खास-खास-

सुभाष बाबू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने साल 1937 में ऑस्ट्रियन मूल की टाइपिस्ट एमिली शेंकल से बाड गास्टिन में हिंदू पद्धति से विवाह किया लेकिन इस बारे में लोगों को कई सालों बाद पता चल पाया। ऑस्ट्रिया में रहने वाली उनकी बेटी अनिता बोस फाफ अपने नातेदारों से मिलने कभी-कभी भारत भी आती रहती हैं। उनकी दिली इच्छा है कि नेताजी की अस्थियों को वापस भारत लाया जाए।

जांच आयोग की रिपोर्ट-

Subhas Chandra Bose

आजादी के बाद भारत सरकार ने नेताजी की मौत की जांच के लिए कुल तीन बार आयोग से जांच करवाई। साल 1956 और 1977 की जांच का यही नतीजा निकला कि नेताजी की मौत विमान दुर्घटना में ही हुई थी। इसके बाद 1999 में बने तीसरे आयोग ने भी एक बार फिर मौत से जुड़े रहस्यों से पर्दा उठाने की कोशिश की।

साल 2005 में ताइवान सरकार ने मुखर्जी आयोग को बताया था कि 1945 में ताइवान में कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुआ था। मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट के भी मुताबिक नेताजी की मृत्यु विमान दुर्घटना में होने के कोई सबूत नहीं मिले। हालांकि इंडियन गवर्नमेंट ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को सिरे से दरकिनार कर दिया। इसके बाद से नेताजी की मौत का सस्पेंस अभी तक बना हुआ है।

विशेष पीठ का गठन

कोलकाता हाई कोर्ट ने नेताजी के लापता होने के रहस्य से जुड़ी याचिका की सुनवाई के लिये स्पेशल बेंच के गठन का आदेश दिया। आपको बता दें यह याचिका सरकारी संगठन इंडियाज स्माइल ने दायर की थी। जिसमें भारत संघ, राष्ट्रीय सलाहकार परिषद, रॉ, खुफिया विभाग, प्रधानमंत्री के निजी सचिव, रक्षा सचिव, गृह विभाग और पश्चिम बंगाल सरकार समेत कई और लोगों को प्रतिवादी बनाया गया है।

फैजाबाद वाले गुमनामी बाबा

बात करें फैजाबाद के लोगों के दावों की तो शहर के सिविल लाइन्स इलाके में स्थित ‘राम भवन’ 16 सितंबर 1985 के बाद खासा मशहूर हो गया। ऐसा इसलिए क्योंकि इस मकान में लंबे समय तक साधू जैसी जिंदगी बिताने वाले बुजुर्ग की मौत के बाद जो दस्तावेज मिले उनका संबंध लोगों ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जोड़कर देखा।

इन दस्तावेजों में नेताजी की पारिवारिक तस्वीरों से लेकर आजाद हिंद फौज की यूनिफॉर्म, जर्मन, जापानी और इंग्लिश लिटरेचर शामिल है। इसके अलावा समाचार पत्रों की नेताजी बोस की मौत से जुड़ी खबरों की कतरनों से भी लोगों के उन दावों को बल मिला कि नेताजी की मौत विमान हादसे में नहीं हुई थी।

नेताजी की मौत के रहस्य पर से पर्दा उठाने की जद्दोजहद अभी भी जारी है। लोगों का यहां तक मानना है कि नेताजी राजनीतिक साजिश का शिकार हुए। ऐसा इसलिए भी क्योंकि नेताजी का शव भारत सरकार को नहीं मिल पाया। भले ही उनकी बेटी अनीता विमान हादसे को नेताजी की मौत का कारण मानती हों लेकिन एक और कारण है जिससे नेताजी की मौत पर शंका होती है।

कर्नल रहमान के बयान-

Subhas Chandra Bose

दरअसल हादसे का शिकार हुए विमान में नेताजी के साथ मौजूद रहे कर्नल हबीबुर रहमान ने बाद में हादसे के बारे में आजाद हिंद सरकार के सूचना मंत्री एसए नैयर रूसी तथा अमेरिकी जासूसों के अलावा शाहनवाज समिति के सामने अलग-अलग बयान दिए थे। हालांकि नेताजी की मौत के मामले में ब्रिटिश गुप्तचरों के अलावा रूस के एजेंट्स का भी हाथ होना बताया जाता है।

फिर क्यों नहीं आए सामने?

नेताजी बोस के लापता होने और फिर भारत में दिखने के दावों पर सवाल उठते हैं कि आखिर नेताजी बोस लोगों के सामने क्यों नहीं आए। तो इस सवाल का जवाब दिया जाता है कि अंग्रजों और भारत सरकार के बीच एग्रीमेंट हुआ होगा कि नेताजी के वापस लौटने की सूरत में नेताजी को ब्रिटिश हुकूमत के हवाले कर दिया जाएगा। संभवतः इसी कारण नेताजी ने गुमनामी वाला जीवन गुजारना बेहतर समझा। हालांकि इस एग्रीमेंट के साक्ष्य आज तक कोई पेश नहीं कर पाया है।

सरकार का लचर रवैया

सरकार ने आरटीआई कार्यकर्ता के सूचनाधिकार से जुड़े सवाल के जवाब में कहा कि सुभाष चंद्र बोस की मौत से जुड़ी गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने से कुछ देशों से भारत के दोस्ताना संबंधों को नुकसान होगा। भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी का दावा है कि सेकंड वर्ल्ड वार में आजाद हिंद फौज की हार के बाद नेताजी को रूस में नेहरू के कहने पर स्टालिन ने बंदी बना लिया था। जिसके बाद साइबेरिया में नेताजी को फांसी दे दी गई!

गोपनीय फाइलों से भी नहीं खुला राज

लगातार दवाब के बाद साल 2015 में पश्चिम बंगाल सरकार के बाद 2016 में केंद्र सरकार ने नेताजी की मौत से जुड़ीं फाइलों को सार्वजनिक किया लेकिन इससे भी नेताजी की मौत का रहस्य नहीं सुलझा। इन फाइलों ने राज पर से पर्दा उठाने के बजाए उसे और उलझा कर रख दिया।

वो नारे जो अमर हो गए-

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सेकंड वर्ल्ड वार में अंग्रेजों की हुकूमत के खिलाफ नेताजी बोस ने जापान की मदद से आज़ाद हिन्द फौज बनाई। बेबाक बातों के लिए मशहूर नेताजी बोस का नारा ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ काफी प्रचलित हुआ जबकि जय हिंद का नारा एक तरह से भारत का राष्ट्रीय नारा बन चुका है। ये नेताजी के नारे का ही कमाल है कि साल 1943 में सिंगापुर में बतौर ‘सुप्रीम कमाण्डर’ दिया गया उनका नारा “दिल्ली चलो” आज भी प्रासंगिक है। क्योंकि आज के दौर के कई छोटे बड़े पॉलिटिशियंस इसी तर्ज पर दिल्ली घेरने की अपील करते नजर आ जाते हैं।

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