करवाचौथ पर क्यों किए जाते हैं छलनी से चांद के दर्शन ? जानिये तिथि, शुभ मुर्हूत और चंद्रोदय का सही समय

कार्तिक मास का शुरू हो गया है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि जिसे चतुर्थी भी कहते हैं, उस दिन करवा माता का पूजन किया जाता है।

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कार्तिक मास का शुरू हो गया है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि जिसे चतुर्थी भी कहते हैं, उस दिन करवा माता का पूजन किया जाता है। करवाचौथ महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्य का व्रत होता है। इस दिन महिलाएं अपने जीवनसाथी के दीर्घायु और सुखी जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन का इंतजार व्रत रखने वाली सुहागिन महिलाएं पूरे साल करती हैं। सुहागिनें सुबह सरगी कर व्रत की शुरुआत करती हैं। दिनभर पूजा पाठ की तैयारी होती है, शाम को करवा माता की पूजा के बाद चांद के दर्शन कर व्रत पूर्ण माना जाता है।

चंद्रोदय का समय और पूजा का शुभ मुहूर्त:

इस साल व्रत की तिथि 24 अक्टूबर है। कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि इस साल 24 अक्टूबर 2021, रविवार सुबह 3 बजकर 1 मिनट पर शुरू होगी जो अगले दिन 25 अक्टूबर को सुबह 5 बजकर 43 मिनट तक रहेगी। इस दिन चंद्रोदय का समय 8 बजकर 11 मिनट पर है। वही पूजा का शुभ मुहूर्त 24 अक्टूबर को शाम 06:55 से लेकर 08:51 तक रहेगा।

क्यों किए जाते हैं छलनी से चांद के दर्शन:

करवाचौथ व्रत की कथा के अनुसार एक साहूकार के घर सात बेटे और एक वीरावती नाम की बेटी थी। सातों भाई अपनी बहन को अत्यधिक प्रेम करते थे।  वीरावती के विवाह के बाद पहले करवाचौथ पर वह संयोगवश अपने मायके में थी। अपनी भाभियों की तरह बहन ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। पर लाड़ प्यार से पली बढ़ी इकलौती बिटिया व्रत की कठिनाई सहन नहीं कर पाई। वीरावती की हालत खराब होते देख भाइयों ने थोड़ा बहुत खाने के लिए बोला। परंतु वीरावती ने खाने से इंकार कर दिया।

वीरावती की हालत ज्यादा खराब होने पर एक भाई दूर पेड़ पर चढ़कर छलनी में दिया दिखाने लगा। वीरावती ने पेड़ के पास दिख रहे दिये की रोशनी को चांद समझ लिया। वीरावती भ्रमित होकर दीपक की रोशनी को चांद समझकर अर्घ्य देने के बाद भोजन करने बैठ गई। पर करवा माता भाइयों के इस प्रकार किए गए छल से नाराज हो गईं। उनके रूठने से बहन के पति की मृत्यु हो गई। भाइयों को अपनी गलती समझ आ गई उन्होंने बहन से माफी मांगी। वीरावती ने करवा माता से माफी मांग कर पूरे वर्ष चतुर्थी के व्रत किए और अगले वर्ष पूरे विधि विधान से करवा चौथ पर पुनः व्रत करके चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया।  व्रत खोलने से पहले छलनी की आड़ से चांद के दर्शन भी किए। माना जाता है कि मां करवा के आशीर्वाद से वीरावती का पति पुनः जीवित हो उठा। तब से ही सुहागिनें छलनी को हाथ मे रख दीपक की रोशनी में चांद के दर्शन करती हैं और अपने व्रत का पारण करती हैं।

 

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