मायावती बचपन में देखती थी IAS बनने का सपना, जानिये टीचर से CM बनने तक की कहानी

एक नेत्री, जिसे कभी देश के प्रधानमंत्री रहे पीवी नरसिंह राव ने भारत के जनतंत्र का जादू कहा था। जिसे भारतीय राजनीति के सबसे योग्य नेताओं में से एक माना जाता है।

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एक नेत्री, जिसे कभी देश के प्रधानमंत्री रहे पीवी नरसिंह राव ने भारत के जनतंत्र का जादू कहा था। जिसे भारतीय राजनीति के सबसे योग्य नेताओं में से एक माना जाता है। जिसने राजनीतिक रूप से देश के सबसे बड़े और ताकतवर राज्य उत्तर प्रदेश की सियासत के तमाम स्थापित समीकरणों को उलट-पुलट कर रख दिया। मुख्यमंत्री के रूप में चुनी जाने वाली भारत की पहली दलित महिला। जो 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। जी हां, हम बात कर रहे हैं बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती की। आइये जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें….

ऐसे शुरू हुआ राजनीतिक सफ़र:

कांशी राम (1)

मायावती की राजनीति में आने की कहानी काफी रोचक है। सितंबर 1977 में जनता पार्टी ने  दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब में ‘जाति तोड़ो’ नाम से एक तीन दिवसीय सम्मलेन आयोजित किया था। इस सम्मलेन में मायावती ने भी भाग लिया था। केन्द्रीय मंत्री राजनारायण मंच का संचालन करते समय कार्यक्रम में बार बार ‘हरिजन’ शब्द का इस्तेमाल कर रहे थे। लेकिन जब मायावती मंच पर आई तो उन्होंने इसपर आपत्ति दर्ज करा दी और कहा की आप जाति तोड़ने की बात कर रहे हैं वही दूसरी तरफ ऐसे शब्द (हरिजन) का इस्तेमाल कर रहे हैं जो शब्द दलितों में हीनता का भाव पैदा करता है। इस बात से प्रभावित होकर सम्मेलन में मौजूद बामसेफ के कुछ नेताओं ने यह बात कांशीराम को बताई। इसके बाद कई कार्यक्रमों में मायावती के विचार सुनने के बाद एक दिन अचानक कांशीराम मायावती के घर पहुंच गए। सर्दियों का समय, रात के 9 बजे कांशीराम ने मायावती के घर की कुण्डी खटखटाई। मायावती के पिता प्रभुदयाल ने दरवाज़ा खोला। सामने दलितों के बीच लोकप्रिय बामसेफ नेता कांशीराम खड़े थे। जिन्होंने 1984 में बीएसपी की स्थापना की थी। उस समय मायावती का परिवार दिल्ली के इंदरपुरी इलाक़े में रहा करता था। उनके घर में बिजली न होने के वजह से वो लालटेन की रोशनी में पढाई कर रहीं थीं।

कांशीराम की जीवनी कांशीराम ‘द लीडर ऑफ़ दलित्स’ में बताया गया है, “कांशीराम ने मायावती से पहला सवाल पूछा कि वो करना क्या चाहती हैं। मायावती ने कहा कि वो आईएएस बनना चाहती हैं ताकि अपने समुदाय के लोगों की सेवा कर सकें।” ये सुनकर कांशीराम ने कहा, “तुम आईएएस बन कर क्या करोगी? मैं तुम्हें एक ऐसा नेता बना सकता हूं जिसके पीछे एक नहीं, दसियों ‘कलेक्टरों’ की लाइन लगी रहेगी। तुम सही मायने में तब अपने लोगों की सेवा कर पाओगी।” इसके बाद मायावती ने अपने पिता के विरोध के बावजूद कांशीराम के आंदोलन में शामिल हो गईं।

नहीं मानी अपने पिता की बात:

मायावती ने अपनी आत्मकथा ‘बहुजन आंदोलन की राह में मेरी जीवन संघर्ष गाथा’ में लिखा हैं कि एक दिन उनके पिता उन पर चिल्लाए – तुम कांशीराम से मिलना बंद करो और आईएएस की तैयारी फिर से शुरू करो, वरना तुरंत मेरा घर छोड़ दो। जिसके बाद मायावती अपना घर छोड़ कर पार्टी ऑफ़िस में आकर रहने लगीं।

मायावती की जीवनी लिखने वाले अजय बोस अपनी किताब ‘बहनजी – अ पॉलिटिकल बायोग्राफ़ी’ में लिखते हैं, “मायावती ने स्कूल अध्यापिका के तौर पर मिलने वाले वेतन के पैसों को जोड़ रखा था उसको उठाया, एक सूटकेस में कुछ कपड़े भरे और उस घर से बाहर आ गईं जहां वो बड़ी हुई थीं।”

राजनीति में आने से पहले दिल्‍ली में थीं टीचर:

मायावती का जन्म 15 जनवरी, 1956 को एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता प्रभु दयाल एक सरकारी क्लर्क (दूरसंचार विभाग) और माता रामरती देवी गृहिणी थीं। मायावती दो बहनों और 6 भाई समेत झुग्गी झोपड़ी (जेजे) कॉलोनी में छोटे से घर में रहती थीं। मायावती अपनी आत्मकथा में लिखती हैं ग्रैजुएशन के बाद दिल्ली के कालिंदी कॉलेज से एलएलबी और उसके बाद बीएड किया। फिर दिल्ली के एक स्कूल में टीचर बन गईं। बचपन में देखा आईएएस बनने का सपना पूरा करने के लिए तैयारी भी करने लगीं।

गेस्टहाउस कांड के बाद बनीं सीएम:

गेस्ट हाउस कांड मायावती के जीवन की एक बड़ी घटना है। यूपी में 1993 में सपा और बीएसपी गठबंधन की सरकार बनी। उसमें मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। 1995 में बीएसपी और समाजवादी पार्टी (एसपी) का गठजोड़ टूट गया। मायावती ने दो जून को लखनऊ के सरकारी गेस्ट हाउस में विधायकों की बैठक बुलाई। उसी दौरान वहां सपा नेताओं ने गेस्ट हाउस घेर लिया और बीएसपी विधायकों पर हमला कर दिया। बाद में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पहुंचकर मायावती का साथ दिया। उसी दिन बीजेपी ने बीएसपी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। अगले दिन बीजेपी के समर्थन से मायावती उत्तर प्रदेश की पहली दलित मुख्यमंत्री बन गईं। वह दूसरी बार 1997 और तीसरी बार 2002 में मुख्यमंत्री बनीं और तब उनकी पार्टी बीएसपी का बीजेपी के साथ गठबंधन था। 2007 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने दलित+ब्राह्मण भाईचारे के साथ सोशल इंजीनियरिंग का एक नया फॉर्मूला अपनाया। बसपा ने 86 विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे थे। जिसके बाद जब चुनाव के नतीजे आए बसपा ने 403 में से 206 सीटें जीतकर पूर्व बहुमत की सरकार बनाई और मायावती मुख्यमंत्री बनीं।

विवादों से गहरा नाता:

मायावती 2002 में ताज कॉरिडोर मामले में विवादों में आईं। उनपर आरोप लगा की उन्होंने ताज की खूबसूरती के लिए 175 करोड़ की परियोजना में बिना पर्यावरण विभाग की अनुमति के ही धनराशि जारी कर दिया था। इस मामले में कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए। लेकिन 2007 में राज्यपाल टीवी राजेश्वर ने मुकदमा चलाने से इनकार कर दिया।

मायावती ने 2007-08 में 26 करोड़ इनकम टैक्स जमा किया था। जिसके बाद वो देश के सबसे बड़े 20 आयकर दाताओं में शामिल हो गई थीं। सीबीआई ने उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा दर्ज किया था। बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस केस को खारिज कर दिया था।

मायावती अपने जन्मदिन पर गिफ्ट लेने और नोटों की माला पहनने सहित कई बार चर्चा में आईं। इस वजह से बहुत दफा जन्मदिन भी विवादों का विषय रहा है। हालाँकि, अब वह अपना जन्मदिन काफी सादगी से मनाती हैं।

मायावती के सामने आगामी चुनौती:

आगामी 2022 विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र देखा जाए तो मायावती के सामने कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। पिछले लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा चुनाव बसपा की सीटें लगातार घटती ही गयी हैं। जिस तरह से भाजपा ने मायावती के अंबेडकर अभियान को अपने एजेंडे में शामिल किया उससे दलितों के अंदर भी भटकाव आ रहा है। ऐसे में मायावती के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने मूल वोट बैंक को बचाना है। साथ ही मायावती के सामने एक समस्या यह भी है की उनके साथ सतीश मिश्रा को छोड़ कोई भी भरोसेमंद नेता नहीं है जो उनके साथ लंबे समय से रहा हो।

 

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