केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को अपनी ताजा रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें दावा किया गया है कि प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान संगम का पानी स्नान के लिए उपयुक्त था. यह रिपोर्ट फरवरी में पेश की गई पिछली रिपोर्ट के विपरीत है, जिसमें जल गुणवत्ता को लेकर चिंताएं जताई गई थीं.
सांख्यिकीय विश्लेषण का उपयोग क्यों किया गया?
CPCB ने इस रिपोर्ट में जल गुणवत्ता की जांच के लिए सांख्यिकीय विश्लेषण अपनाया. इसका कारण यह था कि अलग-अलग समय और स्थानों पर लिए गए जल नमूनों में भारी भिन्नता देखी गई. इन आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि विशेष समय और स्थान पर जल गुणवत्ता भले ही संतोषजनक हो, लेकिन यह पूरे नदी क्षेत्र की स्थिति को पूरी तरह नहीं दर्शाता.
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जल गुणवत्ता मापने के प्रमुख मापदंड
CPCB ने 12 जनवरी से लेकर 22 फरवरी तक गंगा के पांच और यमुना के दो स्थानों पर 20 दौर की निगरानी की. इसमें स्नान के विशेष अवसरों पर भी जल परीक्षण किया गया. इस दौरान निम्नलिखित मापदंडों का विश्लेषण किया गया-
pH स्तर- जल की अम्लता या क्षारीयता मापने के लिए.
घुलित ऑक्सीजन (DO)- जल में मौजूद ऑक्सीजन की मात्रा, जो जलीय जीवन के लिए आवश्यक है.
जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (BOD)- जल में मौजूद कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा.
फीकल कोलीफॉर्म (FC)- जल में सीवेज और बैक्टीरिया की मात्रा का सूचक.
रिपोर्ट के अनुसार,
फीकल कोलीफॉर्म (FC) का औसत स्तर 1,400 यूनिट/100 मिलीलीटर पाया गया, जबकि स्वीकृत सीमा 2,500 यूनिट/100 मिलीलीटर थी.
DO स्तर 8.7 मिलीग्राम/लीटर था, जो 5 मिलीग्राम/लीटर के मानक से अधिक है.
BOD 2.56 मिलीग्राम/लीटर पाया गया, जो 3 मिलीग्राम/लीटर की स्वीकृत सीमा के भीतर था.
इन आंकड़ों के आधार पर, CPCB का निष्कर्ष है कि महाकुंभ के दौरान जल की गुणवत्ता स्नान के लिए उपयुक्त थी.
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फरवरी की रिपोर्ट से बिल्कुल अलग क्यों है ये दावा?
CPCB की 17 फरवरी को प्रस्तुत रिपोर्ट में महाकुंभ के दौरान जल में फीकल कोलीफॉर्म की अत्यधिक मात्रा होने की बात कही गई थी, जिससे जल को स्नान के लिए अनुपयुक्त बताया गया था. लेकिन मार्च में जारी ताजा रिपोर्ट में सांख्यिकीय विश्लेषण के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि औसतन जल की गुणवत्ता स्वीकृत मानकों के भीतर थी.
NGT की सुनवाई 7 अप्रैल को
इस मामले में अब अगली सुनवाई 7 अप्रैल को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा की जाएगी. रिपोर्ट में किए गए दावों की सत्यता की जांच और जल गुणवत्ता सुधार के संभावित उपायों पर चर्चा की जाएगी.