जानिए, कौन हैं स्वतंत्र भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री, रखी थी एम्स की आधारशिला

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जिस समय हिंदुस्तान अनेकों स्वतंत्रता सेनानियों के नेतृत्व में स्वाधीनता पाने के लिए संघर्ष कर रहा था तभी 2 फरवरी 1887 को लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में अवध रियासत में अंग्रेजो के मैनेजर और कपूरथला के राजकुमार हरनाम सिंह अहलूवालिया के घर उन सबसे छोटी बेटी ने जन्म लिया। अब राजघराने में जन्म लिया तो नाम भी रखा गया राजकुमारी अमृत कौर। ये वही अमृत कौर थी जिन्होंने अपने दूरदर्शी विजन और मजबूत इरादों की बदौलत भविष्य में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेकर अग्रणी भूमिका निभाई थी।

कौन थी राजकुमारी अमृत कौर?

राजकुमारी अमृत कौर भारत की सर्वप्रथम महिला कैबिनेट मंत्री थी, उन्होंने महात्मा गांधी के साथ देश के स्वतंत्रता आंदोलन में जुड़कर काम किया था। अमृत कौर की शुरुआती शिक्षा इंग्लैंड में हुई जिसके बाद वहीं ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी की और उसके बाद 1916 में वापस स्वदेश लौट आई। उन्होंने फैसला किया कि वह आजादी की लड़ाई में अपनी भूमिका निभाते हुए देश सेवा करेंगी। हालांकि ऑक्सफोर्ड जैसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वाधीनता आंदोलन में कूदना इतना आसान निर्णय नहीं था। लेकिन पिता हरनाम सिंह के कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं से अच्छा रिश्ता होने का लाभ अमृत कौर को भी मिला।

गांधी जी की रही सचिव, 2 बार जाना पड़ा था जेल

– समाजसेवा करते हुए 1919 में उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई जिनके विचारों से वह काफ़ी प्रभावित हुई और उसी साल वे कांग्रेस में शामिल हो गई उनके भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में काम करते हुए पार्टी के बड़े लोगों से एम अच्छी पहचान हो गई थी।
कौर ने महात्मा गांधी के मुख्य सचिव के रूप में लगभग 16 साल के लंबे समय तक काम किया इसी बीच उन्होंने सरोजनी नायडू के साथ मिलकर ऑल इंडिया वुमन कांग्रेस की स्थापना की और इसके बाद 1930 में इसकी अध्यक्ष बन गई।

– गांधी जी के नेतृत्व में 1930 को जब ‘दांडी मार्च’ की शुरुआत हुई, तब राजकुमारी अमृत कौर ने उनके साथ यात्रा की और जेल की सजा भी काटी। 1934 से वह गांधी जी के आश्रम में ही रहने लगीं और उन्हें ‘भारत छोड़ो अंदोलन’ के दौरान भी जेल हुई। अमृत कौर ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की प्रतिनिधि के तौर पर 1937 में पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के बन्नू गई। ब्रिटिश सरकार को यह बात नागवार गुजरी और राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया। मामला यही नहीं रुका क्योंकि 1942 में अंग्रेजों ने उन पर फिर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर जेल में डाल दिया। जहां अंबाला जेल में उनकी तबीयत काफी बिगड़ गई जिसके बाद अंग्रेजों द्वारा उन्हें जेल से निकालकर शिमला के मैनोर्विल हवेली में तीन साल के लिए नजरबंद कर रखा गया।

कैसे बनी पहली स्वास्थ मंत्री

एक दिलचस्प बात यह कि साल 1947 में देश को जब आज़ादी मिली तब राजकुमारी अमृत कौर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के प्रथम मंत्रीमंडल का हिस्सा नहीं थी, लेकिन बाद में महात्मा गांधी की सिफ़ारिश पर उन्हें कैबिनेट में शामिल कर स्वास्थ्य विभाग जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय सौपां गया। सविंधान सभा की सदस्य और देश की प्रथम महिला स्वास्थ्य मंत्री बनी, इसी के साथ ही वह मौलिक अधिकारों की उपसमिति की सदस्य और अल्पसंख्यक पर उपसमिति की सदस्य भी रही। वह अपनी आवाज़ सदैव संवैधानिक सुधार और अधिकारों की बात पर बुलंद रखती थीं। इसी कारण वह संविधान के हर पहलू और आयाम पर सक्रिय रहीं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अमृत कौर साल 1950 में विश्व स्वास्थ्य सभा की अध्यक्ष भी रहीं और इस मुकाम तक पहुंचने वाली वह पहली महिला एवं पहली एशियाई का गौरव प्राप्त किया।

रखी थी एम्स की नीव :-

-जैसा कि आप सभी जानते हैं कि विगत कुछ वर्षों से भारत समेत समूचा विश्व एक वैश्विक महामारी से जूझ रहा है, देश के शीर्ष चिकित्सा निकाय की भूमिका कई मौकों पर चर्चा में रही है। गौरतलब है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को ही एम्स ने इतनी ऊंचाईयों तक पहुंचाया है, यह तो सच है कि एम्स नेहरू सरकार के अधीन आया था लेकिन इसके पीछे असली प्रेरणा शक्ति कौर थी। यही वजह है कि आप जब कभी भी एम्स गए होंगे तो आपने वहां राजकुमारी अमृत कौर के नाम ओपीडी चिकित्सालय और दवाखाना भी जरूर देखा होगा।

– ज्ञात हो कि 18 फरवरी 1956 को राजकुमारी अमृत कौर ने बतौर तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री लोकसभा में एक नया विधेयक पेश किया। इसके लगभग एक दशक पहले 1946 में भारत सरकार के स्वास्थ्य सर्वेक्षण द्वारा स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान के लिए एक प्रमुख केंद्रीय संस्थान के निर्माण की सिफारिश की गई थी। हालांकि इस विचार की बहुत सराहना की गई थी, लेकिन अपर्याप्त फंड एक चिंता का विषय था जिसके कारण अमृत कौर को पर्याप्त धन इकट्ठा करने और भारत के नंबर एक चिकित्सा संस्थान और अस्पताल की नींव रखने में 10 साल का लंबा समय लग गया। दोनों सदनों के सदस्यों की स्वीकृति प्राप्त करते हुए विधेयक तेजी से आगे बढ़ा और उस वर्ष मई तक प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया। और इसी प्रकार से सन 1952 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की आधारशिला रखी गई।

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रिपोर्ट :- विकास चौबे

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