कामाख्या के रहस्य जान उड़ जाएंगे होश, यहां गिरी थी मां सती की योनि

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कामाख्या मंदिर को सबसे पुराना शक्तिपीठ माना जाता है और यह देवी मां कामाख्या को समर्पित है। कहा जाता है सती का योनि भाग कामाख्या में गिरा था। असम राज्य में स्थित यह मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ी पर है।

हिंदु धर्म में अगर महिला को पीरिएड्स होते हैं तो वो कोई भी शुभ या धर्म का काम नहीं कर सकती। लेकिन असम में एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां पर पीरिएड के समय में भी महिलाएं मंदिर के अंदर जा सकती हैं। इस मंदिर का नाम है कामाख्या शक्तिपीठ। ये वो मंदिर है, जहां पर देवी की माहवारी के समय पूजा की जाती है। यानी की महिलाएं यहां अपने मासिक के दिनों में जा सकती हैं।

योनि के रुप में की जाती है देवी सती की पूजा

ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र के साथ मां सती को काट दिया था। ऐसा कहा जाता है कि देवी सती का योनि भाग कामाख्या में गिरा था। हिन्दू धर्म और पुराणों के मुताबिक, जहां-जहां सती के अंग या धारण किए हूए वस्त्र और आभूषण गिरे थे वहां पर शक्तिपीठ अस्तित्व में आए।

इस तीर्थस्थल पर देवी सती की पूजा योनि के रुप में की जाती है जबकि यहां पर कोई देवी की मूर्ति नहीं है। यहां पर सिर्फ एक योनि के आकार का शिलाखंड है। जिस पर लाल रंग के गेरू की धारा गिराई जाती है।

दिया जाता है अनोखा प्रसाद

यहां बड़ा ही अनोखा प्रसाद दिया जाता है। दरअसल यहां तीन दिन मासिक धर्म के चलते एक सफेद कपड़ा माता के दरबार में रख दिया जाता है और तीन दिन बाद जब दरबार खुलते है तो कपड़ा लाल रंग में भीगा होता है। जिसे प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है।

माता सती का मासिक धर्म वाला कपड़ा बहुत पवित्र माना जाता है। ये मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक है। मां के सभी शक्ति पीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ को सर्वोत्तम माना गया है। इस कपड़े को अम्बुवाची कपड़ा कहा जाता है। इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।

जानवरों की दी जाती है बलि

यह देश के उन चंद हिंदू मंदिरों में से एक है, जहां पर आज भी जानवरों की बलि दी जाती है। इस मंदिर के पास एक कुंड है जहां पर पांच दिन तक दुर्गा माता की पूजा भी की जाती है और यहां पर हजारों की संख्या में भक्त लोग दर्शन के लिए प्रतिदिन आते हैं।

इस मंदिर में कामाख्या मां को बकरे, कछुए और भैंसों की बलि चढ़ाई जाती है और वहीं कुछ लोग कबूतर, मछली और गन्ना भी मां कामाख्या देवी मंदिर में चढ़ाते हैं। वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि प्राचीनकाल में यहां पर मानव शिशुओं की भी बलि चढ़ाई जाती थी लेकिन समय के साथ अब ये प्रथा बदल गई है। अब यहां पर जानवरों के कान की स्किन का कुछ हिस्सा बलि चिह्न मानकर चढ़ा दिया जाता है। यही नहीं इन जानवरों को वहीं पर छोड़ दिया जाता है।

होती है हर कामना पूरी

मां कामाख्या का पावन धाम तंत्र-मंत्र की साधना के लिए जाना जाता है। कहते हैं कि इस सिद्धपीठ पर हर किसी कामना पूरी होती है। इसीलिए इस मंदिर को कामाख्या कहा जाता है। यहां पर साधु और अघोरियों का तांता लगा रहता है। मंदिर में आपको जगह-जगह पर तंत्र-मंत्र से संबंधित चीजें मिल जाएंगी। अघोरी और तंत्र-मंत्र करने वाले लोग यहीं से इन चीजों को लेकर जाते हैं।

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कामाख्या मंदिर का इतिहास

कामाख्या मंदिर भारत में सबसे पुराने मंदिरों में से एक है और स्वाभाविक रूप से, सदियों का इतिहास इसके साथ जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण आठवीं और नौवीं शताब्दी के बीच हुआ था। भारतीय इतिहास के मुताबिक, 16वीं सदी में इस मंदिर को एक बार नष्ट कर दिया गया था। फिर कुछ सालों बाद बिहार के राजा नारायण नरसिंह द्वारा 17वीं सदी में इस मंदिर का पुन: निर्माण कराया गया।

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