कल से शुरू हो रहा खरमास, जानें इस माह में क्यों वर्जित रहते है मांगलिक कार्य ?

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12 नवंबर से शुरू हुए मांगलिक कार्यक्रमों पर अब एक बार फिर से विराम लगने जा रहा है, इसकी वजह है 15 दिसंबर से लगने जा रहा खरमास. इस साल खरमास 15 दिसंबर से शुरू होकर 14 जनवरी 2025 तक चलने वाला है. साथ ही आपको बता दें कि, इस माह की शुरूआत सूर्य की चल में बदलाव की वजह से होती है. जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है तो, खरमास महीने की शुरूआत होती है.

वही धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस महीने के शुरू होते ही सभी मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है. खरमास के दौरान विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत जैसे किसी भी मांगलिक कार्य को करना वर्जित माना गया है. हालांकि, इस अवधि में जमीन-जायदाद, मकान और वाहन की खरीदारी पर कोई रोक नहीं होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खरमास में सूर्य की गति धीमी हो जाती है, जिसके चलते शुभ कार्यों में सफलता मिलने की संभावनाएं कम हो जाती हैं.

साल में कितनी बार लगता है खरमास ? 

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष खरमास दो बार आता है और इसे विशेष महत्व प्राप्त है.यह समय ऐसा माना जाता है जब किसी भी प्रकार के शुभ और मांगलिक कार्यों को स्थगित कर दिया जाता है. साल का पहला खरमास मार्च-अप्रैल में और दूसरा दिसंबर में होता है. खरमास के दौरान भगवान विष्णु और सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्व होता है. इस समय को आध्यात्मिक साधना और परोपकार के लिए उत्तम माना गया है. आइए, जानते हैं कि खरमास का धार्मिक महत्व क्या है और इस अवधि में किन बातों का पालन करना चाहिए…

कब से कब तक रहेगा खरमास ?

हिंदू पंचांग के अनुसार, खरमास 2024 की शुरुआत 15 दिसंबर को होगी, जब सूर्यदेव धनु राशि में प्रवेश करेंगे, वही सूर्यदेव लगभग एक महीने तक धनु राशि में रहेंगे. इसके बाद, 14 जनवरी 2025 को सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ यह माह समाप्त हो जाएगा. इस दिन से सभी प्रकार के शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो सकेगी.

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खरमास क्या होता है, क्यों वर्जित होते है मांगलिक कार्य ?

खरमास के दौरान सूर्य की स्थिति और प्रकाश कमजोर हो जाते हैं, जिससे शुभ प्रभावों में कमी आती है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य को ऊर्जा, प्रकाश, आत्मा, शक्ति और सभी ग्रहों का राजा माना गया है. सूर्य प्रत्येक राशि में एक महीने तक रहते हैं, लेकिन जब वे धनु और मीन राशि में प्रवेश करते हैं, तो उनकी ऊर्जा कमजोर हो जाती है.

धनु और मीन राशियों के स्वामी ग्रह बृहस्पति हैं. शास्त्रों के अनुसार, जब सूर्य देवगुरु बृहस्पति की इन राशियों में प्रवेश करते हैं, तो वे अपने गुरु की सेवा में रहते हैं. इस स्थिति में सूर्य और बृहस्पति दोनों का बल कमजोर हो जाता है, जिससे शुभ कार्यों में स्थायित्व और सफलता की संभावना घट जाती है. मांगलिक कार्यों में सूर्य और बृहस्पति दोनों का बलवान होना अनिवार्य है. इनकी ऊर्जा में कमी के कारण खरमास के दौरान विवाह, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य निषिद्ध माने जाते हैं. इसीलिए इसे अशुभ समय माना जाता है.

नियम और पूजा-विधि

खरमास के दौरान शुभ और मांगलिक कार्यों को करने से अपेक्षित लाभ नहीं मिलता, इसलिए इन कार्यों से बचा जाता है. हालांकि, इस पवित्र महीने में पूजा-पाठ, कीर्तन, तीर्थ यात्रा, मंत्र जाप, भागवत गीता और रामायण पाठ जैसे धार्मिक कार्य करना अत्यंत शुभ माना गया है. विष्णु भगवान की पूजा और उनकी आराधना से विशेष फल प्राप्त होते हैं. खरमास के समय दान, पुण्य, और जप करने का महत्व है, इन कार्यों से जीवन के कष्ट दूर होते हैं.

भगवान शिव की पूजा और आराधना से भी कष्टों का निवारण होता है. खरमास के दौरान सूर्यदेव को अर्घ्य देना अत्यंत फलदायक माना गया है. सुबह स्नान के बाद, तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें रोली, लाल चंदन और लाल पुष्प डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करें. यह विधि शुभ फल प्रदान करती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है.

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इस दौरान क्या नहीं करना चाहिए

खरमास के समय किसी भी प्रकार के शुभ कार्य, जैसे विवाह, गृह प्रवेश, सगाई, भूमि पूजन या अन्य मांगलिक कार्यों से बचना चाहिए. इस दौरान तामसिक भोजन का सेवन करना भी वर्जित माना गया है. साथ ही, खरमास में किसी के साथ वाद-विवाद या कलह से बचने का विशेष ध्यान रखना चाहिए.

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