डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के साथ वैश्विक व्यापार में अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए कड़े टैरिफ लगाने की योजना बनाई है. ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत, उन्होंने कई देशों पर टैरिफ बढ़ाए हैं. उनकी यह रणनीति मुख्य रूप से अमेरिका के व्यापारिक साझेदारों- कनाडा, मैक्सिको, चीन और यूरोपीय संघ को प्रभावित कर सकती है. ट्रंप का कहना है कि यह कदम अमेरिका में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है.
ट्रंप टैरिफ को अमेरिकी अर्थव्यवस्था के साथ ही टैक्स रेवेन्यू को भी बढ़ाने के तरीके के रूप में देखते हैं.
टैरिफ क्या है ?
टैरिफ एक प्रकार का कर है जो किसी देश से आयात किए जाने वाले उत्पादों पर लगाया जाता है, ताकि घरेलू उत्पाद सस्ता किया जा सके. इसके साथ ही राजस्व एकत्र किया जा सके और आर्थिक नीतियों को प्रभावी बनाया जा सके. यह कर आमतौर पर उत्पादों को आयात करने वाली फर्म पर लगाया जाता है न कि निर्यात करने वाले देश पर.
उदाहरण के लिए यदि कोई फर्म 50,000 डॉलर प्रति कार कीमत वाली कार आयात करती है और उसपर 25% टैरिफ लगाया जाता है, तो फर्म को हर कार पर 12,500 डॉलर का शुल्क देना होगा.
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टैरिफ का प्रभाव
इसका प्रभाव आयातकों और उपभोक्ताओं दोनों पर पड़ता है.
आयातक पर: लागत बढ़ने से आयात करने वाली कंपनियों पर बोझ पड़ता है.
उपभोक्ताओं पर: कंपनियां टैरिफ की लागत उत्पाद की कीमत में जोड़ देती हैं, जिससे उपभोक्ताओं को ज्यादा भुगतान करना पड़ता है.
वैश्विक व्यापार पर: यह वैश्विक व्यापार को प्रभावित कर सकता है और जवाबी टैरिफ या व्यापारिक संघर्ष का कारण बन सकता है.
कनाडा और मैक्सिको पर 25% टैरिफ
ट्रंप ने चेतावनी दी है कि जब तक ये दोनों देश अमेरिका में अवैध प्रवास और फेंटानिल जैसी ड्रग्स को रोकने के लिए कदम नहीं उठाते, तब तक उनके उत्पादों पर 25% टैरिफ लगाया जाएगा.
आपकों बता दें कि मैक्सिको, जो अपना 83% निर्यात अमेरिका को करता है, इस टैरिफ से बुरी तरह प्रभावित होगा. इसकी जीडीपी में 12.5% की गिरावट का अनुमान है. वहीं कनाडा, जो 76% निर्यात अमेरिका को करता है, उसकी जीडीपी में 7.5% की कमी हो सकती है.
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चीन पर अतिरिक्त 10% ‘दंडात्मक’ टैरिफ
चीन पर ट्रंप ने पहले ही भारी टैरिफ लगाए थे. अब उन्होंने अवैध फेंटानिल बनाने में उपयोग होने वाले केमिकल के निर्यात को लेकर और कड़े टैरिफ की बात कही है.
साल 2018 में अमेरिका के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 20% थी, लेकिन यूएस सेंसस ब्यूरो के मुताबिक, यह घटकर अब 15% से भी कम रह गई है.
वहीं, 2023 तक मैक्सिको चीन को पीछे छोड़ते हुए अमेरिका का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया. मौजूदा समय में मैक्सिको अमेरिका को 476 अरब डॉलर का सामान निर्यात करता है, जबकि चीन का निर्यात 427 अरब डॉलर है.
वहीं अन्य एशियाई देशों जैसे वियतनाम और थाईलैंड को इससे फायदा हुआ है, क्योंकि उन्होंने चीन की जगह ले ली है.
यूरोपीय संघ पर भी टैरिफ ?
ट्रंप का आरोप है कि “यूरोपीय संघ”अमेरिका के साथ बुरा बर्ताव कर रहा है.” उन्होंने इनके उत्पादों पर टैरिफ़ लगाने की भी चेतावनी दी है.
यूरोपीय संघ ने पहले भी अमेरिका के टैरिफ़ का जवाब जींस, व्हिस्की और मोटरसाइकिलों जैसे अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ लगाकर दिया था.
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क्या होगा भरत पर असर?
भारत पर ट्रंप की टैरिफ योजना का सीधा प्रभाव भले ही कम हो, लेकिन यह अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है.
चीन पर टैरिफ बढ़ने से अमेरिकी बाजार में भारत को अपने उत्पादों की आपूर्ति बढ़ाने का अवसर मिल सकता है. अमेरिकी कंपनियां चीन के विकल्प के रूप में भारत को चुन सकती हैं, जिससे देश में विदेशी निवेश और उत्पादन गतिविधियां बढ़ सकती हैं.
हालांकि, ट्रंप ने भारत की उच्च आयात शुल्क नीतियों की आलोचना की है. उन्होंने भारत को “टैरिफ किंग” भी कहा है, जो अमेरिकी उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाता है. यदि अमेरिका भारतीय उत्पादों पर टैरिफ़ बढ़ाता है, तो यह भारतीय निर्यातकों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है. इसके अलावा कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से भारतीय उद्योगों पर प्रभाव पड़ सकता है.
उदाहरण के लिए, अमेरिकी टैरिफ नीतियों के कारण डॉलर की मजबूती से भारतीय रुपये की कमजोरी संभव है, जिससे आयात महंगा होगा और महंगाई बढ़ सकती है.
टैरिफ का अमेरिकी उपभोक्ताओं पर असर
टैरिफ का भार अंततः अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ता है. उच्च कीमतों के कारण अमेरिका में महंगाई बढ़ने का खतरा है. स्टील और एल्यूमीनियम जैसे उद्योगों को फायदा तो हुआ, लेकिन कई मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों में नौकरियां भी चली गईं.
ट्रंप की टैरिफ योजना का असर अमेरिका सहित वैश्विक अर्थव्यवस्था पर व्यापक रूप से पड़ेगा. इससे चीन, कनाडा और मैक्सिको को खास तौर पर नुकसान हो सकता है, जबकि वियतनाम और अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देश नए व्यापार अवसरों का लाभ उठा सकते हैं.