वाराणसी. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) के शोधकर्ताओं ने एक अत्याधुनिक और संवेदनशील लेजर-डायरेक्टेड इलेक्ट्रोकेमिकल पेपर एनालिटिकल डिवाइस (LD-ePAD) डिज़ाइन किया है, जो बहु-कार्यात्मक सेंसिंग अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त है. इस शोध टीम का नेतृत्व प्रोफेसर प्रांजल चंद्रा ने किया, जिसमें शोध छात्रों सुप्रतिम महापात्रा और रोहिणी कुमारी ने भी योगदान दिया है. यह पेपरट्रोनिक उपकरण, जो व्यावसायिक रूप से उपलब्ध इलेक्ट्रोड-आधारित उपकरणों के प्रदर्शन के समान है, पर्यावरण के अनुकूल, सस्ता और जैव-नष्ट होने योग्य है.
यह जानकारी देते हुए प्रोफेसर प्रांजल चंद्रा ने बताया कि आईआईटी (BHU) के बायो-फिज़ियोसेंसर और नैनोबायोइंजीनियरिंग प्रयोगशाला में किए गए इस अभूतपूर्व अध्ययन में यह उपकरण चिकित्सा नमूनों में हानिकारक फ्री रैडिकल्स, नदी के पानी में विषाक्त धातुएं, रोगजनक बायोमार्कर्स (जैसे: अल्कलाइन फॉस्फेटेज), खाद्य मिलावटों आदि की अत्यधिक संवेदनशीलता और पुनरावृत्ति के साथ पहचानने की क्षमता है. यह शोध क्लिनिकल डायग्नोस्टिक्स और पर्यावरणीय निगरानी में महत्वपूर्ण कदम है, जो विभिन्न विश्लेषणों की पहचान के लिए एक मंच प्रदान करता है.
ALSO READ: महाकुंभ में योगी कैबिनेट की बैठक, Cm संगम में लगाएंगे डुबकी…
छोटा सिस्टम, स्वास्थ्य केंद्रों में उपयोगी
प्रोफेसर प्रांजल चंद्रा ने बताया कि इस उपकरण का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह सिस्टम बहुत छोटा और जनता द्वारा संचालित करने योग्य है, जिसे सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों या पॉइंट-ऑफ-केयर सेटिंग्स में आसानी से लागू किया जा सकता है, जहां उन्नत डायग्नोस्टिक्स की पहुंच सीमित है. बताया कि पहले की तकनीकों में एकल प्रकार के अणु की पहचान पर जोर दिया जाता था, लेकिन यह नया उपकरण बहु-कार्यात्मक अणुओं की पहचान में सक्षम है. वर्तमान में उपयोग किए जा रहे सिस्टम में विभिन्न एंजाइमों का उपयोग करके विश्लेषणात्मक संकेत उत्पन्न किए जाते हैं, जबकि हमारे पेपर-आधारित प्लेटफार्म में तीन इलेक्ट्रोड प्रणाली का उपयोग किया गया है, जिससे अधिक सटीक और पुनरावृत्त परिणाम प्राप्त होते हैं.
इस उपलब्धि को 18-19 जनवरी को आईआईटी जम्मू में आयोजित “माइक्रोफैब्रिकेशन और बायोसेंसर: एडवांसेज इन डायग्नोस्टिक्स” कार्यशाला में प्रस्तुत किया गया, जिसमें शोधार्थियों को माइक्रोफ्लूडिक चिप निर्माण, बायोसेंसर एकीकरण, और ममलियन सेल कल्चर तथा विश्लेषण पर हाथों-हाथ अनुभव प्रदान किया गया.
इस कार्यशाला में सुप्रतिम महापात्रा ने इस तकनीकी को प्रस्तुत किया और “बेस्ट इनोवेशन अवार्ड” प्राप्त किया.
ALSO READ: Mahakumbh 2025: सनातन धर्म की बुलेट यात्रा पहुंची चित्रकूट, जानें क्या है यात्रा में खास…
तकनीक को कराया पेटेंट
प्रोफेसर चंद्रा और उनकी टीम ने इस नवीन, पर्यावरण अनुकूल, नष्ट होने योग्य, लेजर-एंग्रेव्ड, नैनोइंजीनियरड पेपरट्रोनिक उपकरण का विकास किया है, जिसका अनुमानित बाजार मूल्य मौजूदा उपकरणों से कई गुना कम है. यह तकनीकी न केवल एकल प्रकार के बायोमार्कर की पहचान करने में सक्षम है, बल्कि यह बिना एंजाइमों के भी काम करती है. आईआईटी ने इस तकनीकी का पेटेंट कराया है, और यह शोध “केमिकल इंजीनियरिंग जर्नल” जैसी प्रतिष्ठित अकादमिक पत्रिका में प्रकाशित भी हुआ है. इस तकनीकी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, खासकर जापान के कोबे में आयोजित “ऑर्गेनिक मोलिक्यूलर इलेक्ट्रॉनिक्स” पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में सराहना मिली है. आईआईटी के निदेशक प्रोफेसर अमित पात्रा ने टीम को बधाई दी और कहा, “यह नवाचार ‘आत्मनिर्भर भारत‘ और ‘मेक इन इंडिया‘ की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, जो समाज के लिए सीधे तौर पर लाभकारी है.”