पूर्व डीजीपी की पत्नी ‘नीरजा’ जला रही हैं शिक्षा की ज्योति, देखें वीडियो

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यूं तो देश में ना जाने कितने मासूम गरीबी की वजह से शिक्षा की रौशनी से दूर है, और उनके मां-बाप इतने भी नहीं समर्थ हैं कि अपने बच्चों को सिर्फ इतना ही पढ़ा दें कि आने वाले समय में वो उसी शिक्षा की रौशनी से अपने भविष्य के अंधेरे को कम कर सकें। देश की सरकारें गरीबों के लिए सिर्फ अपने जुमलों में ही बड़े-बड़े सपने दिखाती हैं। लेकिन हकीकत बहुत डरावनी है।

 गरीब बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो सके…

जब जिंदगी में जीने की उम्मीदें दम तोड़ने लगती हैं और गरीबी में सिर्फ और सिर्फ मर जाने को जी चाहता है तब ऐसे समय में कोई एक ऐसी रौशनी नजर आती है जिसे देखकर इतनी उम्मीद बंध जाती है कि आगे का रास्ता जरुर रौशनी से जगमगाता हुआ मिलेगा।

मतलब जब कोई साथ देने को तैयार नहीं होता है और सरकार भी सपनों के अलावा कुछ नहीं दे रही होती है उस समय इसी समाज से कुछ ऐसे लोग भी निकल कर सामने आते हैं जो समाज के अंधकार को मिटाने की एक मुहिम छेड़ देते हैं और गरीब बच्चों की जिंदगी में दीपक की वो लौं जलाने की कोशिश में लग जाते हैं जिससे आने वाले समय में उन गरीब बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो सके।

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हम आज कुछ ऐसी ही शख्सियत से आपको रुबरु कराने जा रहे हैं जो बच्चों की जिंदगी में शिक्षा का उजाला भरने की कोशिश कर रही हैं। लखनऊ के गोमतीनगर इलाके में रहने वाली नीरजा द्विवेदी जिनकी उम्र करीब 70 के पार हो चुकी है, और उम्र की इस दहलीज पर आकर भी वो कुछ करने का जज्बा रखती हैं। शायद इसी वजह से आज वो इलाके के गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम कर रही हैं।

नीरजा बताती हैं कि साल 2003 में 15 अगस्त का दिन था और उनके यहां कुछ बच्चे आए तो उन्होंने बच्चों को एक झंडा बनाने को कहा, और बच्चों ने भी बिना हिचकिचाहट के झंडा बनाया, जिसे देखकर उनको लगा कि बच्चों के मन में शिक्षा को लेकर बहुत उत्साह भरा हुआ है।

कई बार पुरस्कृत भी किया जा चुका है

इसी को देखते हुए नीरजा द्विवेदी ने गरीब बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया। नीरजा आगे बताती हैं कि जब उन्होंने बच्चों को पढ़ाना शुरु किया तो सिर्फ 20 बच्चे थे लेकिन धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने लगी और आज के समय में उनके यहां करीब 150 बच्चे से भी ज्यादा पढ़ रहे हैं। इतना ही नहीं नीरजा गरीब बच्चों को पढ़ाने के साथ ही उनको किताब से लेकर कपड़े और पढ़ाई से संबंधित चीजों से भी सहायता करती हैं। नीरजा बच्चों को पढ़ाने के साथ ही साहित्य में भी रुचि रखती हैं और उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं। नीरजा द्विवेदी को समाज सेवा के क्षेत्र में काम करने के लिए कई बार पुरस्कृत भी किया जा चुका है।

बच्चों का जो जवाब था उसे सुनकर वो खुद सन्न रह गईं

एक किस्सा याद करते हुए नीरजा बताती हैं कि जब उन्होंने बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया तो उनके यहां पर तीन बच्चे जो भाई-बहन ते पढ़ने आते थे, लेकिन तीनों में एक दिन में सिर्फ एक ही बच्चा आता था, जब उन्होंने ऐसा होते कई दिनों तक देखा तो उन्होंने उन बच्चों से पूछा कि तुम तीनों में रोज एक ही बच्चा क्यों आता है तो उन बच्चों का जो जवाब था उसे सुनकर वो खुद सन्न रह गईं।

फिलहाल अब वो रिटायर हो चुके हैं…

दरअसल, बच्चे ने बताया कि उनके पास सिर्फ एक जोड़ी कपड़ा है इसलिए एक एक दिन तीनों पहन कर आते हैं इसलिए तीनों साथ कभी नहीं आ पाते हैं, जिसको सुनकर उनकी आंखें भर आईं जिसके बाद उन्होंने तीनों बच्चों को ड्रेस दिलाई। नीरजा द्विवेदी अपने व्यक्तिगत जिंदगी के बारे में बात करते हुए कहा कि वो एक पुलिस अधिकारी बनना चाहती थीं लेकिन उन दिनों लड़कियां पुलिस में भर्ती नहीं होती थीं इसलिए वो पुलिस में नहीं जा सकीं, खुद पुलिस अधिकारी तो नहीं बन सकीं लेकिन उनके माता-पिता ने उनकी शादी एक पुलिस अधिकारी से जरुर कर दी। बता दें कि उनके पति एमसी द्विवेदी एक आईपीएस अधिकारी थे और यूपी जैसे बड़े राज्य के डीजीपी भी रह चुके हैं। फिलहाल अब वो रिटायर हो चुके हैं।

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