विशेष: 10 जनवरी के बजाय 14 सितंबर को क्यों मनाया जाता है हिंदी दिवस, जानिए इसका इतिहास

हिंदी दुनिया की बोले जाने वाली सबसे लोकप्रिय और आसान भाषा है। हिंदी वैदिक संस्कृति की प्रत्यक्ष वंशज भी है।

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हिंदी दुनिया की बोले जाने वाली सबसे लोकप्रिय और आसान भाषा है। हिंदी वैदिक संस्कृति की प्रत्यक्ष वंशज भी है। अंग्रेजी, मैंड्रेन और स्पेनिश के बाद हिंदी दुनिया की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हैं।

हिंदी भाषा को भारत की राजभाषा के रूप में जाना जाता है। हिंदी भाषा के आगे आज कल की युवा पीढ़ी अंग्रेजी भाषा को ज्यादा तबज्जो देने लगे हैं। अंग्रेजी भाषा के बढ़ते चलन को देखते हुए हिंदी भाषा की वास्तविक को बनाये रखने के लिए साल में एक दिन हिंदी दिवस के रुप में मनाया जाता है। जबकि हिंदी भाषा व्यापक रूप से सबसे अधिक और लोकप्रिय भाषाओं में से एक है। भारत में कुल मिलाकर 22 अनुसूचित भाषाएँ हैं, जिनमें से, दो का आधिकारिक तौर पर भारत सरकार के स्तर पर प्रयोग किया जाता है। हिन्दी और अंग्रेजी। मूल भाषा के रूप में 250 मिलियन लोगों द्वारा हिन्दी बोली जाती है और यह दुनिया की चौथी भाषा है।

विश्व हिंदी दिवस:

हिंदी भाषा को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के लिए भारतीय दूतावास हिंदी भाषा को 10 जनवरी के दिन विशेष रूप से मनाते हैं। प्रथम विश्व हिंदी दिवस का आयोजन दस जनवरी 1975 में किया गया था। तब से आज तक विश्व हिंदी दिवस इसी दिन मनाया जाता हैं।

14 सितम्बर 1949:

हिन्दी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है क्योंकि इस दिन 1949 में, भारत की संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी गई हिन्दी को भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया था। लेकिन यह इतनी आसानी से नहीं आया जितना लगता है। आजादी मिलने के बाद लंबे विचार-विमर्श के बाद आखिरकार 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिन्‍दी को राज भाषा बनाने का फैसला लिया गया। भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्‍याय की धारा 343 (1) में हिन्‍दी को राजभाषा बनाए जाने के संदर्भ में कुछ इस तरह लिखा गया है, ‘संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।’ यह निर्णय भारत के संविधान द्वारा 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत, देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया था।

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा:

‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल’

अर्थात्- मातृभाषा की उन्नति बिना किसी भी समाज की तरक्की संभव नहीं है तथा अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा को दूर करना भी मुश्किल है।

पुरस्कार आयोजन:

हिंदी दिवस के अवसर पर छात्रों को हिंदी भाषा के महत्व और इतिहास के बारे में बताया जाता है। हिंदी साहित्य, हिंदी कवियों, लेखकों के लिए, हिंदी को ऊंचे स्तर तक पहुचाने वाले लोगों के सम्मान में हिंदी दिवस पर पुरस्कार का आयोजन भी किया जाता है। हिंदी से जुड़े पुरस्कार, राष्ट्रभाषा कीर्ति पुरस्कार, राष्ट्रभाषा गौरव पुरस्कार भी शामिल हैं।

 

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