चुनावी साल में किसानों की सुध, नई MSP नीति को मिल सकती है मंजूरी

0

बजट में किए गए वादे और किसानों में उपजे असंतोष को शांत करने के लिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए नई व्यवस्था की घोषणा करने जा रही है। इसके तहत किसानों को उत्पादन लागत पर 50 फीसदी प्रॉफिट मार्जिन मिलेगा। केंद्र के खजाने पर इससे 33,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है।

इसका लाभ बाजरा जैसे पोषक अनाज उत्पादकों को भी मिलेगा

मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) की बैठक में आज खरीफ फसलों के समर्थन मूल्य को मंजूरी दी जा सकती है, जो मुख्यतौर पर धान और दालों पर लागू होगा, लेकिन इसका लाभ बाजरा जैसे पोषक अनाज उत्पादकों को भी मिलेगा।

एमएसपी का अतिरिक्त खर्च जीडीपी का 0.2 फीसदी है

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 के बजट भाषण में घोषणा की थी कि केंद्र और राज्य सरकारों के साथ परामर्श कर नीति आयोग एक बेहतर प्रणाली स्थापित करेगा जो यह सुनिश्चित करेगा कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का पूरा लाभ मिले। कैबिनेट नोट के मुताबिक, एमएसपी का अतिरिक्त खर्च जीडीपी का 0.2 फीसदी है।

Also Read :  मैगजीन के कवर पर कहर ढा रही है दिव्यांका का नोज रिंग वाला सेक्सी अंदाज

अतिरिक्त खर्च में धान की हिस्सेदारी 12,300 करोड़ रुपये होगी। चूंकि एफसीआई सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से वितरण के लिए केवल गेहूं और चावल खरीदता है, इसलिए सरकार एक नई व्यवस्था स्थापित करना चाहती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अन्य फसलों के एमएसपी में वृद्धि का लाभ भी किसानों तक पहुंचना सुनिश्चित हो सके।

42 फीसदी और बाजरे में 36 फीसदी का इजाफा होगा

उत्पादन लागत की गणना में सर्वाधिक भार ‘श्रम’ को दिया गया है, जोकि करीब 53 फीसदी है, शेष में खाद, खेती के जानवर, कीटनाशक बीज और सिंचाई है। रागी के एमएसपी में मौजूदा दर के मुकाबले सर्वाधिक 52 फीसदी की वृद्धि होगी। इसके बाद ज्वार के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 42 फीसदी और बाजरे में 36 फीसदी का इजाफा होगा।

तिलहन और मूंग के एमएसपी में भी काफी वृद्धि होगी। अनाज के अलावा दालों की खरीद बड़ी मात्रा में की गई है। खरीफ का मुख्य फसल धान है। संशोधित एमएसपी मौजूदा 1,550 रुपये प्रति क्विंटल से 200 रुपये अधिक होगा। पिछले साल 3.8 करोड़ टन धान की खरीदारी की गई थी। कुछ राज्यों में किसानों को पहले ही उत्पादन लागत से 150 फीसदी या अधिक मिल रही है और इसमें बदलाव नहीं आएगा।

किसानों के प्रदर्शन ने असंतोष को जाहिर किया

पश्चिम बंगाल, असम और महाराष्ट्र जैसे राज्यों को फायदा होगा, जहां उपज और उत्पादकता कम है। खरीद और भंडारण की प्रक्रिया पर अभी काम चल रहा है, सूत्रों के मुताबिक इसमें और तीन महीने का समय लगेगा। अधिक एमएसपी के विचार को 2017 गुजरात चुनाव के बाद तेजी से बढ़ाया गया, जहां किसानों के प्रदर्शन ने असंतोष को जाहिर किया। एमएसपी में वृद्धि से किसानों की आमदनी बढ़ेगी और सरकार को राजनीतिक मजबूती भी प्रदान करेगी।

दालों, तिलहन और कपास की खरीद ‘प्राइस सपॉर्ट स्कीम’ (PSS) के तहत होती है, लेकिन इसमें कई खामियां हैं। मौजूदा समय में किसानों को मूंगफली, सोयाबीन, रागी, मक्का, बाजरा और ज्वार सहित 23 अधूसूचित फसलों पर दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम मिल रहा है। इन उत्पादों की खरीद पर सरकार संबंधित एजेंसियों को घाटे को भी पाटेगी।

वित्तीय निहितार्थ पर प्रधान मंत्री के सामने प्रस्तुति दी है

सूत्रों के अनुसार, नीति आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों ने प्रस्तावित खरीद तंत्र और इसके वित्तीय निहितार्थ पर प्रधान मंत्री के सामने प्रस्तुति दी है। नीति आयोग ने प्रस्ताव दिया है कि राज्यों को तीन मॉडलों का विकल्प दिया जाना चाहिए- बाजार आश्वासन योजना (एमएएस), मूल्य अंतर खरीद योजना (पीडीपीएस) और निजी खरीद एवं स्टॉकिस्ट योजना।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More