Lathmar Holi 2025: मथुरा के बरसाना में 7 मार्च से होलाष्टक की शुरूआत हो चुकी है. होलाष्टक की शुरूआत होते ही बरसाना में होली के रंगों का उत्सव भी शुरू हो जाता है. जिसके रंग में पूरा बरसाना मस्तमग्न हो उठता है. होली का ये रंगोत्सव बरसाना में पूरे 40 दिनों तक पूरे जश्न और हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है. होली के इस रंगोत्सव को लेकर बरसाना के लोग सज-धज कर ढ़ोल-नगाड़ों की धुन पर नाचते-गाते हैं. कान्हा की नगरी में होली का ये रंग और भी चटकीला लगने लगता है.
बरसाना में रंगोंत्सव का अदभुत नजारा
बरसाना में भक्ति-भाव से भरा ये रंगोंत्सव का नजारा बड़ा ही अदभुत होता है. इसके रंग में रंगा पूरा बरसाना भक्ति-भाव में नजर आता है. कोई कन्हैया की याद में होली रंग में मस्त हो जाता है तो कोई कृष्ण की रास लीलाओं को देख झूम उठता है. ये नजारा देखने में जितना ही खूबसूरत होता है उससे कही ज्यादा बांके बिहार के प्रेम रस का आनंद आता है. यही कारण है कि आज 8 मार्च को बरसाना में होली के इस रंगोत्सव की सुबह से ही धूम मची हुई है. जहां देखो वहां रंग-अबीर गुलाल उड़ाते हुए सभी ब्रजवासी एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते और बांके बिहारी का दर्शन भी करते नजर आ रहे हैं.
बरसाना में होली का रंग उत्सव की हुी शुरूआत
बता दें, होली त्योहार को लेकर देशभर में जोरों-शोरों से तैयारियां चल रही हैं. कृष्ण की नगरी मथुरा से लेकर आस-पास के क्षेत्रों में होली का रंग उत्सव भी शुरू हो चुका है. मथुरा में फागुन यानी कि होली उत्सव की शुरूआत वसंत पंचमी से ही शुरू हो जाती है. जहां कई प्रकार की होली खेली जाती है. ऐसे में बरसाना की लठमार होली बड़ी ही प्रसिद्ध है. जिसका नजारा आज बरसाना में देखा जा सकता है.
बृजवासियों के बरसाना में फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर लठमार होली का त्योहार मनाया जाता है. ऐसे में इस साल भी मशहूर लठमार होली की रौनक बरसाना में सुबह से ही छाई हुई है. हर्षोल्लाास के साथ मनाये जा रहे होली रंगोत्सव का मुख्य आयोजन बरसाना की रंगीली गली में होगा. इस लट्ठमार होली का बड़ा ही महत्व होता है. हर साल होली यानी धुलंडी से पहले मथुरा के बरसाना और नंदगांव के बीच लठमार होली का पर्व मनाया जाता है.
कृष्ण और राधारानी के प्रेम को दर्शाता है लट्ठमार होली
परंपरा के अनुसार, नंदगांव के पुरुष यानी कि हुरियारे और बरसाने की महिलाएं यानी की हुरियारिन लट्ठमार होली में भाग लेते हैं. जहां नंदगांव के हुरियारे सिर पर साफा और कमर में फेंटा बांधकर ढाल लेकर खड़े होते हैं. इस बीच बरसाने की सज-सवरकर महिलाएं अपने चेहरों को पल्लू से ढककर लट्ठ से हुयारों के सिर पर मजाकिया अंदाज में पीटती हैं. ऐसे में पुरुष सिर पर ढाल रखकर हुरियारिनों के इस प्रेम लट्ठ से खुद को बचाते नजर आते हैं.
अगर किसी हुरियारे को लठ छू जाता है, तो उसे सजा के तौर पर महिलाओं के कपड़े पहनकर नाचना पड़ता है. लेकिन, सचमुच ये कोई सजा नहीं सिर्फ रिवाज के तौर पर सब हंसी-मजाक होता है. इस मौके पर नंदगांव के छोरे यानी कि पुरूषों को चिढ़ाने के लिए बरसाना की छोरियां यानी की महिलाएं बड़ा ही सुंदर गीत गाती है. जिसका नजारी किसी प्रेम रस से कम नहीं, इन रिस्मों-रिवाजों को देख ये साफ जाहिर होता है कि हमारे कृष्ण कन्हैया और राधा रानी ने भी ऐसे ही बरसाना में होली का रंग खेला होगा.