…सालों तक रहते हैं लिव-इन में, फिर करते हैं शादी!

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आपसी सहमति से एक-दूसरे के साथ रहने को राजी युवा लिव इन रिलेशनशिप को अपनी आजादी के रूप में देखते हैं। पिछले कुछ सालों में युवाओं में इसे लेकर स्वीकार्यता तेजी से बढ़ी है। फिर भी भारतीय समाज में लिव-इन को स्वीकार नहीं किया जाता है। लोगों का कहना है कि ये विदेशी परंपरा है, वहीं राजस्थान के उदयपुर के पास एक गांव में कई सौ सालों से लोग लिव-इन में रहने की परंपरा निभाते आ रहे हैं। यहां पहले लिव-इन में रहकर बच्चे पैदा करते हैं फिर जाकर बाद में शादी करते हैं।

वर्षों पुरानी परंपरा

उदयपुर जिले के नयावास गांव और उसके आस-पास के इलाके में रहने वाली गरासिया जनजाति की ये परंपरा वर्षों पुरानी है। यहीं के रहने वाले एक बुजुर्ग पाबुरा 80 साल की उम्र में अपनी 70 वर्षीय लिव-इन पार्टनर रुपली से शादी रचाई है। इस शादी की चर्चा जोरों पर है। ऐसे में इस जनजाति की ये परंपरा भी एक बार फिर चर्चा में आ गई है।

लिव-इन के पीछे ये है मान्यता

गरासिया जनजाति में एक पुरानी मान्यता है कि यदि पैसा कमाने और बच्चे पैदा करने से पहले शादी कर ली तो न तो शादी के बाद बच्चे होते हैं और न ही उस व्यक्ति की आमदनी होती है। इस मान्यता के चलते ये आदिवासी पहले मनपसंद साथी के साथ लिव-इन में रहते हैं। यदि इस संबंध से बच्चे होते हैं तो फिर शादी करने की योजना बनाते हैं। यदि उनकी आर्थिक हालात ठीक नहीं हो तो वे लिव-इन में ही रहते हैं, लेकिन शादी नहीं करते है।

दिलों का मेला

लिव-इन पार्टनर खोजने के लिए इन इलाकों में बाकायदा मेला लगता है। जिसमें नाबालिग लड़के और लड़कियां भी अपना पार्टनर चुनते हैं। पार्टनर चुनने के बाद वे मेले से एक दूसरे के साथ भाग जाते हैं और कुछ दिन के बाद वापस घर आते हैं। ऐसे में लड़के वाले लड़की वाले को एक तय रकम देते हैं और फिर लड़की उस लड़के के साथ लिव इन में रहने लगती है। इस मेले को ‘दिलों का मेला’ कहा जाता है।

नहीं होती रेप जैसी घटनाएं

कई बार अधेड़ के साथ किसी नाबालिग को भी आपसी सामंजस्य से लिव-इन में रहते हुए और शादी करते हुए देखा गया है। यहां शादी के नियम इतने सरल हैं कि विधवा का भी विवाह आसानी से हो जाता है। वो भी मेले में अपने मन मुताबिक साथी चुनती है। इस प्रथा के चलते यहां रेप और जबरदस्ती जैसी घटनाएं सुनने को नहीं मिलती हैं।

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