जी-4 देशों ने सुरक्षा परिषद में सुधार का मुद्दा उठाया

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भारत समेत जी-4 के सदस्य देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता को एक बार फिर दोहराया है। उन्होंने कहा है कि इसके लिए मसौदा आधारित अंतर सरकारी वार्ताओं की शुरुआत होनी चाहिए।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज बुधवार को अपने समकक्ष जापान के तारो कोनो, ब्राजील के आलॉयसियो नून्स फेरेरा और जर्मनी के सिगमार गेब्रियल के साथ संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र से इतर मिलीं और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों को गति देने के तरीकों पर विचार किया। सभी चारों देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने लिए स्थायी सदस्यता की मांग कर रहे हैं।

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विकासशील देशों की बढ़ती भूमिका और प्रमुख योगदानकर्ताओं का विस्तार शामिल है

बैठक के बाद जारी एक संयुक्त प्रेस बयान में कहा गया है, “संयुक्त राष्ट्र परिषद को अधिक वैध, प्रभावी और प्रातिनिधिक बनाने के लिए जी-4 के मंत्रियों ने परिषद में प्रारंभिक सुधार की आवश्यकता को दोहराया, जिसमें स्थायी और गैर स्थायी श्रेणियों की सदस्यता, कार्य करने के तरीकों में सुधार और परिषद के प्रतिनिधियों के साथ-साथ विकासशील देशों की बढ़ती भूमिका और प्रमुख योगदानकर्ताओं का विस्तार शामिल है।

आज के विश्व को प्रतिबिंबित करने की आवश्यकता है

इसमे कहा गया है, “संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की संख्या 1945 में 51 से अब बढ़कर 193 हो गई है और परिषद की मौजूदा संरचना में बदलती वैश्विक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं किया गया है। ऐसे में मंत्रियों का जोर इस बात पर है कि परिषद को आज की जटिल चुनौतियों से निपटने में सक्षम होने के लिए आज के विश्व को प्रतिबिंबित करने की आवश्यकता है।

चालू 72वें सत्र के दौरान मसौदा आधारित वार्ता शुरू करने का है

बयान में कहा गया है कि 2016 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 71वें सत्र में सह-अध्यक्षों की पहल की सराहना करते हुए चारों मंत्रियों ने उस सत्र के अंत में व्यापक सुधार के सभी पहलुओं पर चर्चा की और उस पर सहमति जताई। सभी 4 देशों ने कहा कि यह समय अगले चरण में जाने और महासभा के चालू 72वें सत्र के दौरान मसौदा आधारित वार्ता शुरू करने का है।

मुकम्मल सुधार के मूल में सुरक्षा परिषद का सुधार निहित है

बयान में कहा गया है, “मंत्रियों ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की प्रतिबद्धता का स्वागत किया है जिसमें उन्होंने ऐसे सुधारों की बात कही है जो संयुक्त राष्ट्र को 21वीं सदी के उपयुक्त बना सके। इस संदर्भ में यह समझना जरूरी है कि संयुक्त राष्ट्र में मुकम्मल सुधार के मूल में सुरक्षा परिषद का सुधार निहित है।

बयान के मुताबिक, उ्न्होंने उन विचारधारा वाले देशों के साथ बातचीत और उनके मूल्यांकन के सहयोग पर आदान-प्रदान किया और इस तथ्य को प्रोत्साहित किया गया कि संयुक्त राष्ट्र के अधिकांश सदस्य देश मसौदा-आधारित वार्ता की शुरुआत का समर्थन करते हैं।

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