जश्न-ए-आजादी : 70 साल बाद भी आजादी अधूरी है

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देश के पूर्व प्रधानमंत्री और मध्य प्रदेश के ग्वालियर से नाता रखने वाले अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा आजादी के एक दिन पूर्व अर्थात 14 अगस्त, 1947 को लिखी कविता ’15 अगस्त का दिन कहता आजादी अभी अधूरी है’ आज भी उतनी ही प्रासांगिक है, जितनी तब रही होगी। ऐसा इसलिए, क्योंकि खेतों में हल में बैल की जगह किसान जुतने को मजबूर हैं।

बैल की जगह बेटे चलाते हैं हल

आजादी की 70वीं सालगिरह से पहले मध्य प्रदेश के डिंडौरी जिले से एक ऐसी तस्वीर आई है, जो विचलित कर देने वाली है। यहां के मोहनी गांव के किसान गोहर सिंह के पास पहले बैल हुआ करता था, जिसके जरिए वे अपने खेत की हल से जुताई करते थे, मगर बैल के मर जाने पर उन्हें इन दिनों हल में बैल की जगह बेटों और अपने को स्वयं जोतना पड़ रहा है।

पैसा न होने से नहीं खरीद सकते बैल

गोहर सिंह ने संवाददाताओं को बताया कि नागपंचमी के दिन उसका एक बैल मर गया और दूसरा बैल खरीदने के लिए उसके पास पैसा नहीं था, लिहाजा उसने खुद और परिवार के सदस्यों को हल में जोता, क्योंकि उसके पास अन्य कोई और विकल्प नहीं था। धान का रोपा करने के लिए खेत को तैयार करना था, एक बैल के अभाव में वह खुद बैल की जगह हल में जुत गया।

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बताया गया है कि गोहर हल के बैल की जगह एक तरफ खुद लगा रहता है, तो दूसरी ओर अपने बेटों को बदल-बदल कर लगाता रहता है। उसके सामने समस्या यह है कि अगर बैल खरीदने के लिए रकम का इंतजाम करता, तब तक धान के रोपा करने का समय उसके हाथ से निकल जाता।

सरकार के दावे सिर्फ दिखावा

यह हाल उस राज्य के किसान का है, जहां कृषि विकास दर 20 प्रतिशत को पार कर गई है, पांच बार कृषि कर्मण पुरस्कार मिले हैं। इतना ही नहीं सरकार किसानों को तमाम तरह की रियायतें व सुविधाएं देने का दावा करती है। जिन राज्यों में यह सब नहीं है, वहां क्या हाल होगा, अंदाजा लगाना आसान नहीं है।

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डिंडौरी के कृषि विभाग के अनुविभागीय अधिकारी (एसडीओ) एस.आर. अहिरवार ने संवाददाताओं को बताया कि खेत जुताई के लिए आर्थिक मदद दिए जाने की उनके विभाग में योजना है, मगर गोहर ने विभाग से संपर्क ही नहीं किया। इस बात की जानकारी भी मीडिया से हुई है। वहीं दूसरी ओर खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे ने संवाददाताओं को बताया कि संबंधित किसान को बैल खरीदने के लिए 20 हजार रुपये की राशि प्रदान की जा रही है।

डिंडौरी का यह पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी इसी तरह की तस्वीरें सामने आती रही हैं। गोहर को तो सरकार की ओर से बैल खरीदने के लिए 20 हजार रुपये मिल जाएंगे, मगर उन किसानों का क्या होगा, जिनकी समस्या मीडिया तक ही नहीं आ पाती।

पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा था आजादी अभी अधूरी है

पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने 70 वर्ष पहले ही लिख दिया था, “15 अगस्त का दिन कहता आजादी अभी अधूरी है, सपने सच होना बाकी है, रावी की शपथ न पूरी है। कलकत्ते के फुटपाथों पर जो आंधी-पानी सहते हैं, उनसे पूछो पंद्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं।”

आम किसान यूनियन के केदार सिरोही कहते हैं कि राजनीतिक तौर पर तो हम आजाद हो गए, मगर आर्थिक तौर पर नहीं हुए। सरकारों ने कभी भी किसान, गरीब, मजदूर के बारे में नहीं सोचा। पहले किसान मानव और पशुधन से खेती करता था, मगर आर्थिक विपन्नता के चलते किसान पशुधन को बचा नहीं पाया।

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लिहाजा अब सिर्फ मानव श्रम ही उसके पास बचा है। यही कारण है कि हल में बैल नहीं खुद किसान जुतने को मजबूर हैं। देश का किसान समृद्ध होता तो आज उसके पास भी हवाईजहाज होता, मगर सरकारें सिर्फ कार्पोरेट के लिए काम कर रही हैं।

वे आगे व्यंग्य में कहते हैं कि बाबा रामदेव का भला हो, जिन्होंने आर्थिक आजादी की बात की है, इसलिए हम भी आर्थिक आजादी का जिक्र कर सकते हैं, अगर आजादी की बात करेंगे तो उसके अर्थ और मायने कुछ और निकाले जाएंगे। यह बात सही है कि 15 अगस्त का सड़क के फुटपाथ पर सोने, रोज कमाने खाने वालों के लिए ज्यादा मायने नहीं होता, क्योंकि यह दिन भी उनके लिए आम दिनों जैसा ही होता है।

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