वाराणसी. संत शिरोमणि गुरु रविदास जी की 648वीं जयंती की तैयारियाँ जोरों पर हैं. इस पावन अवसर पर देश-विदेश से श्रद्धालुओं का आना शुरू हो चुका है. संत रविदास जी का जन्म माघ पूर्णिमा के दिन वर्ष 1376 ईस्वी में वाराणसी के गोवर्धनपुर गाँव में हुआ था. उनकी माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) और पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) था.
सीर गोवर्धन में बढ़ती श्रद्धालुओं की भीड़
सीर गोवर्धनपुर में संत रविदास जयंती के उपलक्ष्य में भारी संख्या में श्रद्धालु, सेवादार और अनुयायी एकत्र हो रहे हैं. इस अवसर पर तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया गया है, जिसमें विभिन्न राज्यों के श्रद्धालुओं के लिए विशेष पंडाल लगाए गए हैं. इनमें पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, बिहार, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश सहित अन्य राज्यों के पंडाल शामिल हैं.
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निःशुल्क सेवा – एक अनोखी पहल
गुरु रविदास जयंती के अवसर पर निःशुल्क सेवा के तहत मंदिर के पास एक जूता स्टैंड स्थापित किया गया है. यहाँ श्रद्धालु अपने धूल से सने, पुराने या टूटे हुए जूते-चप्पल रखकर जाते हैं और लौटने पर उन्हें चमकते और मरम्मत किए हुए पाते हैं. सेवा में जुटे भक्तों का मानना है कि दूसरों के जूते साफ करना भी एक पुण्य का कार्य है.
चार वर्षों से जारी निःशुल्क सेवा
सेवा में लगे श्रद्धालु पिछले चार वर्षों से यहाँ आने वाले लोगों के लिए यह कार्य कर रहे हैं. वे किसी से भी इस सेवा के बदले पैसे नहीं लेते. एक मुस्लिम श्रद्धालु ने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उनका चप्पल टूट गया था, जिसे बनवाने के लिए वे यहाँ आए थे. मरम्मत के बाद उन्होंने पैसे देने चाहे, लेकिन सेवा भाव से जुड़े भक्तों ने कोई भी शुल्क लेने से इनकार कर दिया.
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जूते चमकाने और सिलाई की सेवा
श्रद्धालुओं की सुविधा का पूरा ध्यान रखते हुए जूता स्टैंड पर निःशुल्क सेवा प्रदान की जा रही है. यहाँ रखे गए जूतों को न केवल व्यवस्थित रूप से रखा जाता है, बल्कि जो जूते गंदे होते हैं, उन्हें अच्छी तरह से पॉलिश कर चमकाया भी जाता है. यदि किसी का जूता या चप्पल टूट जाता है, तो उसे सिलकर ठीक कर दिया जाता है, जिससे श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो.
श्रद्धालुओं की सेवा में समर्पित भाव
हर वर्ष लाखों श्रद्धालु इस पावन अवसर पर देश-विदेश से आते हैं, जिनकी सुविधा के लिए यह सेवा कार्य किया जाता है. सेवा भाव से जुड़े भक्तों का उद्देश्य यही है कि कोई भी श्रद्धालु किसी भी तरह की कठिनाई का सामना न करे. यह पहल न केवल गुरु रविदास जी की शिक्षाओं का अनुसरण है, बल्कि मानवता की सेवा का भी उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करती है.